अंतरराष्ट्रीय म्युचुअल फंड में निवेश क्यों करें?

Fincash – Mutual Fund App
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7. योजनाएं की विविधता: लोग एसबीआई म्युचुअल फंड, रिलायंस म्युचुअल फंड, आईसीआईसीआई प्रूडेंशियल म्युचुअल फंड की तरह अलग अलग प्रतिष्ठित निधि घरों, और भी बहुत कुछ की अपनी प्राथमिकताओं के अनुसार योजनाओं की एक विस्तृत श्रृंखला से चुन सकते हैं।
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बेहतर रिटर्न के लिए म्युचुअल फंडों के जरिये करें शेयरों में निवेश, जानें इसके फायदे और नुकसान
सबसे पहले तो इस पर विचार करते हैं कि किसी को ग्लोबल इक्विटीज यानी वैश्विक शेयर बाजार में निवेश क्यों करना चाहिए? एक भारतीय उपभोक्ता के रूप में हम कई तरह की उच्च गुणवत्ता वाली वस्तुओं और सेवाओं तक पहुंच का फायदा उठा रहे हैं
जनता से रिश्ता वेबडेस्क| नई दिल्ली, सबसे पहले तो इस पर विचार करते हैं कि किसी को ग्लोबल इक्विटीज यानी वैश्विक शेयर बाजार में निवेश क्यों करना चाहिए? एक भारतीय उपभोक्ता के रूप में हम कई तरह की उच्च गुणवत्ता वाली वस्तुओं और सेवाओं तक पहुंच का फायदा उठा रहे हैं जो भारत से बाहर उत्पादित होती हैं, चाहे वह मोबाइल फोन हो या लग्जरी कार। वैश्विक स्तर पर देखें तो बहुत तरह के इनोवेशन या नवाचार हो रहे हैं जो कि हमारे दिन-प्रतिदिन के जीवन पर असर डाल रहे हैं, विभिन्न तरह के उद्योगों में आमूल बदलाव करने वाले। और इन सबका निवेश के लिहाज से भी निहितार्थ होता है। इस समय की बात करें तो भारतीय शेयर बाजार में बहुत कम इनोवेटर सूचीबद्ध है।
भारत भले ही पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था हो, लेकिन हमारे यहां की बाजार पूंजी करीब 2.1 ट्रिलियन (लाख करोड़) डॉलर ही है, जबकि बाकी दुनिया की बाजार पूंजी 90 ट्रिलियन डॉलर के करीब है। तो आप यदि भारत से बाहर वैश्विक बाजारों में निवेश नहीं करते हैं, तो इसका मतलब यह है कि आप उस अवसर को नजरअंदाज कर रहे हैं जो करीब 43 गुना ज्यादा है। निवेश के साथ जोखिम जुड़ा होता है और इस जोखिम को खत्म नहीं किया जा सकता, लेकिन डायवर्सिफिकेशन यानी विविधीकरण के द्वारा कम जरूर किया जा सकता है। सभी तरह के एसेट (परिसंपत्ति) में निवेश का विविधीकरण करना और किसी एक एसेट में भी विविधीकरण करना जोखिम के प्रबंधन का मूल है।
ग्लोबल फंडों/शेयरों में निवेश से आपको रुपये के अवमूल्यन का फायदा उठाने में भी मदद मिलती है। पिछले 35 साल में रुपया हर साल औसतन 6 फीसदी अवमूल्यित हुआ है। तो यदि आप अपने बेटियों या बेटों को अगले कुछ वर्षों में विदेश में पढ़ाने की तैयारी कर रहे हैं तो आपको बढ़ती फीस और रुपये के अवमूल्यन की वजह से ज्यादा रकम चुकानी पड़ सकती है।
वैश्विक शेयर बाजारों में निवेश भारतीय निवेशकों के लिए तुलनात्मक रूप से नई बात है। यह यात्रा लगभग उसी तरह से है जैसे निवेशक इक्विटी म्युचुअल फंडों में निवेश करता है। अब हमारे देश में निवेशकों का ऐसा वर्ग है जिन्होंने कई चक्र में निवेश किया है और एक अवधारणा के रूप में म्युचुअल फंडों के साथ सहज हैं। वे अब सामान्य संवाद से आगे बढ़ रहे हैं और अपने सलाहकारों से ऐसी रणनीतियों पर बात करने लगे हैं कि इक्विटी और डेट से भी आगे किस तरह से पोर्टफोलियो में विविधता लाई जाए, एक एसेट वर्ग के रूप में किस तरह से करेंसी का फायदा उठाया जाए और ऐसे वैश्विक कारोबारों में कैसे हिस्सेदारी ली जाए जिनका भारतीय स्टॉक एक्सचेंजों में प्रतिनिधित्व नहीं है। अब ज्यादा लोग इस तथ्य को स्वीकार करने लगे हैं कि बाजारों में उतार-चढ़ाव का स्रोत दुनिया में कहीं से भी हो सकता है और आगे के लिए एकमात्र रास्ता यही है कि अपने पोर्टफोलियो का जितना संभव हो सके उतने एसेट वर्ग में विविधीकरण किया जाए। इसी वजह से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर निवेश का आकर्षण बढ़ रहा है।
आइए अब म्युचुअल फंडों के द्वारा वैश्विक इक्विटीज यानी शेयरों में निवेश के नफा-नुकसान पर बात करते हैं। निवेशकों के सामने दो विकल्प होते हैं। 1- सीधे वैश्विक इक्विटीज में निवेश करना। 2-म्युचुअल फंडों में निवेश करना। सीधे वैश्विक शेयरों में निवेश करने के कई फायदे हैं जैसे निवेशक अपनी समझ, सुविधा और सूझबूझ के मुताबिक कुछ चुनींदा शेयरों के पोर्टफोलियो पर अपना ध्यान केंद्रित रख सकता है (एक शेयर से लेकर 10 शेयरों तक)। उसका इसमें पूरा नियंत्रण होता है और यह एक आसान विकल्प लग रहा है। लेकिन इसीलिए यह किसी मंझे हुए निवेशक ही लिए ही है जिसके पास पर्याप्त संसाधन और समय हो।
इसके अलावा, उसके पास ऐसी क्षमताएं होनी चाहिए कि वह ऐसी वैश्विक घटनाओं को पहचान सके और उन पर नजर रख सके जो उसके शेयरों पर असर डाल सकती हैं, ऐसे निवेशक के पास अनुपालन और नियामक मसलों से भी निपटने की क्षमता होनी चाहिए। उदाहरण के लिए इनकम टैक्स रिटर्न (ITR) के शेड्यूल एफए में निवेशकों को अपने पास रहने वाले विदेशी एसेट का विस्तृत ब्योरा देना अनिवार्य होता है। इसी तरह, लिबरलाइज्ड रेमिटेंस स्कीम (LRS) के तहत प्रति व्यक्ति के सालाना 2.5 लाख डॉलर ही भेजने की सीमा तय है।
इनके साथ घरेलू फंड जैसा ही बर्ताव होता हैः इन फंडों में निवेश को उसी तरह से देखा जाता है जैसा किसी घरेलू फंड में निवेश करना। इनके लिए कोई अतिरिक्त नियम-कायदा नहीं है, जैसा कि शेयरों में निवेश के मामले में होता है।
इन पर लिबरलाइज्ड रेमिटेंस स्कीम (LRS) लागू नहीं होता।
इन फंडों का अंतरराष्ट्रीय म्युचुअल फंड में निवेश क्यों करें? प्रबंधन विशेषज्ञों के द्वारा होता हैः इनका प्रबंधन पेशेवर फंड मैनेजर करते हैं जिनके पास शेयरों और पोर्टफोलियो की पहचान, विश्लेषण और उन पर निगरानी रखने की विशेषता, टेक्नोलॉजी और वैश्विक पहुंच होती है।
विविधीकरणः आमतौर पर म्युचुअल फंडों में कई देशों और विभिन्न तरह के उद्योगों से जुड़े कई शेयर होते हैं (एक्टिव फंडों की बात करें तो यह संख्या 30 से 50 शेयरों की होती है), जिनके द्वारा भौगोलिक क्षेत्रों, सेक्टर और मुद्रा की विविधता हासिल होती है।
हालांकि, म्युचुअल फंडों के द्वारा निवेश के कई नुकसान भी हैं, जैसे-लागू एनएवी एक दिन बाद आता है, मुद्रा का जोखिम होता है, तीन साल से कम रखने पर लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन्स टैक्स लग जाता है।
कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि छोटे निवेशकों के लिए म्युचुअल फंडों के द्वारा वैश्विक शेयरों में निवेश करना, सीधे शेयरों में निवेश करने से बेहतर होता है। ज्यादा सलाहकार पहली बार इक्विटी में निवेश करने वाले निवेशकों को डायवर्सिफाइड इक्विटी फंड्स में निवेश करने की सलाह देते हैं। इनमें उन फंडों को पहला विकल्प रखना चाहिए जो कि दुनिया भर में निवेश करते हैं। इसी तरह समझदार हाई नेटवर्थ वाले यानी बड़े निवेशक, जिनके पास पर्याप्त संसाधन हैं और जो सभी तरह की रिपोर्टिंग और रिसर्च को हासिल कर सकते हैं, वे रुपये के प्रभुत्व वाले ग्लोबल फंडों के साथ ही सीधे शेयरों में निवेश कर सकते हैं या अन्य इक्विटी विकल्पों में जो LRS के मुताबिक उनके लिए उपलब्ध हो।
जानिए कैसे करें विदेशी शेयर बाजार में निवेश और पाएं बंपर रिटर्न
नई दिल्ली. निडर निवेशकों के लिए इस दुनिया में अवसरों की भरमार है। भारत का शेयर बाजार तेजी से ऊपर जा रहा है। अभी हाल ही में निफ्टी और सेंसेक्स ने अब तक की वृद्धि के अपने सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं। भारत, विश्व की सबसे तेजी से विकास करने वाली अर्थव्यवस्था में से एक है। लेकिन, दुनिया भर में ऐसे कई अन्य शेयर बाजार भी हैं जो लगभग इसी तरह का रिटर्न दे रहे हैं। उदाहरण के लिए, नैसडैक 100 इंडेक्स - जिसमें दुनिया भर की 100 सबसे बड़ी गैर-वित्तीय कंपनियां शामिल हैं। यह इंडेक्स पिछले पांच साल में दोगुना से भी ज्यादा हो गया है, और लगभग 23त्न रिटर्न दिया है। अब सवाल उठता है कि एक भारतीय निवेशक ऐसे शेयर में कैसे निवेश कर सकता है जिसका मूल्य तेजी से बढ़ रहा है, जैसे अमेजन का। निडर निवेशकों के लिए सौभाग्य की बात है कि एमएफ के जरिए यह आसानी से किया जा सकता है।
अंतरराष्ट्रीय म्युचुअल फंड्स
भारत की परिसंपत्ति प्रबंधन कंपनियां तीन अलग-अलग प्रकार के अंतरराष्ट्रीय फंड्स प्रदान करती हैं। पहले प्रकार के फंड्स वे फंड्स हैं जिनका निवेश सीधे वैश्विक बाजारों में किया जाता है। उसके बाद कुछ फंड्स ऐसे हैं जिन्हें फीडर फंड्स कहा जाता है जिनका निवेश एक मौजूदा वैश्विक फंड में किया जाता है। तीसरे प्रकार के फंड्स ऐसे फंड्स हैं जिनका निवेश तरह-तरह के अंतरराष्ट्रीय फंड्स में किया जाता है। इस श्रेणी में मिलने वाले रिटर्न इतने अलग-अलग क्यों हो सकते हैं इसका एक और कारण है फंड का मकसद। उदाहरण के लिए, कुछ फंड ऐसे होते हैं जिनका निवेश एक विशेष क्षेत्र के आधार पर किया जाता है, उसके बाद कुछ फंड ऐसे भी होते हैं जिनका निवेश विषय-वस्तु जैसे कमोडिटी लिंक्ड फंड्स, गोल्ड बेस्ड फंड्स के आधार पर किया जाता है।
निवेश से पहले देखे फंड का रिकॉर्ड
2016 में, कई फंड्स का रिकॉर्ड बहुत अच्छा था, कुछ गोल्ड और कमोडिटी-लिंक्ड फंड्स से 50त्न से 70त्न तक रिटर्न मिला था, जिनके कारण अंतरराष्ट्रीय फंड श्रेणी में तेजी आने से 16त्न रिटर्न मिला है। लेकिन, इन फंडों के बिना, और सिर्फ इक्विटी आधारित फंडों को ध्यान में रखने से, औसत रिटर्न में गिरावट आने के कारण यह 10त्न से भी नीचे चला गया। ध्यान देने योग्य एक और महत्वपूर्ण बात यह है कि तीन साल की अवधि में उसी गोल्ड और कमोडिटी फंड से निगेटिव या बहुत कम यहां तक कि सिर्फ एक अंक में रिटर्न मिला अंतरराष्ट्रीय म्युचुअल फंड में निवेश क्यों करें? था।
टैक्स देनदारी को सही से समझे
अंतरराष्ट्रीय फंड्स का टैक्सेशन अलग-अलग होता है। हाइब्रिड वैश्विक फंड जो घरेलु कंपनियों में अपनी कोष का कम से कम 65त्न निवेश करते हैं और बाकी विदेशी फंडों पर एक नियमित इक्विटी फंड की तरह टैक्स लगता है जबकि दीर्घकालिक लाभ पर एक साल बाद टैक्स नहीं लगता है। इसलिए निवेश से पहले कितना टैक्स देना होगा इसको पता करें।
रिसर्च कराएगी अच्छी इनकम
कुल मिलाकर, भारत-क्रेंद्रित फंड़स के समूह में एक अंतरराष्ट्रीय म्युचुअल फंड को शामिल करना निवेश प्रेमी निवेशकों के लिए एक बहुत चालाकी भरा कदम साबित हो सकता है। किसी विशेष फंड का चयन करने से पहले पर्याप्त खोजबीन और अलग-अलग फंडों से संबंधित अपने विकल्पों पर सोच-विचार करना न भूलें।
जोखिम और विविधता को समझे
फाइनेंस की दुनिया में, विविधता से आपको अलग-अलग परिसंपत्ति वर्गों, वित्तीय लेखपत्रों या उद्योगों में अपना पैसा लगाकर जोखिम को रोकने में मदद मिलती है। इसलिए इसको जानें।
आपके बच्चे भी कर सकते हैं म्यूचुअल फंड में निवेश, जानिए किन डॉक्युमेंट्स की होती है जरुरत
18 साल से कम उम्र के बच्चे या नाबालिग अपने माता-पिता या पेरेंट्स की मदद से म्यूचुअल फंड में निवेश कर सकते हैं। इसका सीधा सा मतलब है कि निवेश बच्चे के नाम पर किया जाएगा, लेकिन इसका प्रतिनिधित्व माता-पिता या अभिभावक द्वारा होगा।
Minor के नाम पर पेेरेंट्स म्यूचुअल फंड में निवेश कर सकते हैं। 18 वर्ष की आयु पूरी होने के बाद अडल्ट में चेंज कराया जा सकता है। (Photo By Financial Express)
बच्चों में बचत, आर्थिक रूप से स्वतंत्र होने और सोच-समझकर खर्च करने की आदत शुरू से ही डालना काफी अंतरराष्ट्रीय म्युचुअल फंड में निवेश क्यों करें? जरूरी है। रुपयों को लेकर बच्चों से बात करना उतना ही जरूरी है, जितना हेल्दी फूड के बारे में बताना। अगर बच्चों में रुपयों के प्रबंधन की समझ शुरू से पैदा कर दी जाए तो भविष्य में उन्हें किसी तरह की आर्थिक परेशानी का सामना नहीं करना पड़ता है। ऐसे में बच्चों में निवेश की समझ भी बचपन से डालने की काफी जरुरत है। अगर बच्चों इस बारे में स्वाभाविक रूप से बात की जाए तो बेहतर है। ताकि उनमें धीरे-धीरे दिलचस्ती बढ़ सके। बच्चों में निवेश को लेकर जागरुकता के साथ साथ दिलचस्पी बढ़ाने का सबसे बेहतर उपाय है म्यूचुअल फंड। आइए आपको भी बताते हैं कि आखिर बच्चे भी म्यूचुअल फंड में किस तरह से निवेश कर सकते हैं।
म्यूचुअल फंड में निवेश करने वाले बच्चे
आउटलुक मनी से बात करते हुए मास्टर कैपिटल सर्विसेज की सीनियर वाइस प्रेसीडेंट पलका चोपड़ा बताती हैं कि 18 साल से कम उम्र के बच्चे या नाबालिग अपने माता-पिता या पेरेंट्स की मदद से म्यूचुअल फंड में निवेश कर सकते हैं। इसका सीधा सा मतलब है कि निवेश बच्चे के नाम पर किया जाएगा, लेकिन इसका प्रतिनिधित्व माता-पिता या अभिभावक द्वारा होगा। जिन्हें ट्रांजेक्शन पर हस्ताक्षर करने की आवश्यकता होगी। हालांकि, यह बच्चे के स्वामित्व अधिकारों को हनन नहीं करेगा।
इस प्रक्रिया का पालन तब तक करना होता है जब तक कि बच्चा 18 साल का नहीं हो जाता और उसके बाद उसके खाते के स्टेटस एक वयस्क में बदलना पड़ता है। हालांकि, स्टेटस अपने आप नहीं बदलता है। उसके लिए आधिकारिक फंड हाउस को संचार माध्यम से इस बारे में जानकारी देनी होती है। साथ ही, जब तक खाता अवयस्क की श्रेणी में नहीं आता है, तब तक लाभांश की प्राप्ति या रिडेंप्शप से उत्पन्न होने वाले किसी भी टैक्स का भुगतान माता-पिता या अभिभावक को करना होगा। नाबालिगों के नाम पर सभी लाभांश या आय को टैक्सेशप पर्पस के लिए माता-पिता या नामित अभिभावकों की आय के साथ जोड़ा जाएगा। जबकि बच्चा फंड का मालिक है, उसके पास कोई कानूनी जिम्मेदारी नहीं है।
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किन म्युचुअल फंड स्कीम्स में कर सकते हैं निवेश
पलका चोपड़ा के अनुसार म्यूच्यूअल फंड में निवेश के लिए जिस प्रकार सही योजना की तलाश की की जाती है, उसी प्रकार बच्चों की ओर से निवेश की प्रक्रिया भी होती है। दिलचस्प बात यह है कि नाबालिग वयस्कों के लिए उपलब्ध किसी भी म्यूचुअल फंड योजना में निवेश कर सकता है। साथ ही, कुछ योजनाएं विशेष रूप से बच्चों के लिए डिज़ाइन की गई हैं जिन्हें आमतौर पर “हाइब्रिड” या ‘चाइल्ड केयर प्लान’ या ‘चिल्ड्रन गिफ्ट फंड’ के रूप में कैटेगराइज किया जाता है।
इन योजनाओं को आमतौर पर इक्विटी शेयरों में 60 प्रतिशत -70 प्रतिशत के महत्वपूर्ण जोखिम के साथ निश्चित आय प्रतिभूतियों और इक्विटी के मिश्रण के रूप में संरचित किया जाता है। आमतौर पर, जब कोई अपने बच्चे की ओर से निवेश कर रहा होता है, तो उसे तत्काल धन की आवश्यकता नहीं होती है। जबकि कोई डेट सिक्योरिटीज और इक्विटी का एक हाइब्रिड पोर्टफोलियो चुन सकता है, एक अच्छी गुणवत्ता वाली शुद्ध इक्विटी योजना चुनना बेहतर है।
किन डॉक्युमेंट्स की होती है आवश्यकता
नाबालिग का म्यूचुअल फंड फोलियो खोलने के लिए दो महत्वपूर्ण दस्तावेजों की आवश्यकता होती है। सबसे पहले, एक दस्तावेज जो बच्चे और अभिभावक के बीच संबंध स्थापित करता है, अनिवार्य है। यदि अभिभावक माता-पिता हैं, तो जन्म प्रमाण पत्र या माता-पिता के नाम का उल्लेख करने वाला कोई ऐसा दस्तावेज पर्याप्त है। किसी और के मामले में कोर्ट के आदेश की कॉपी जरूरी है।
दूसरे, नाबालिग का जन्म प्रमाण पत्र या उनकी उम्र का प्रमाण आवश्यक है। इसके अतिरिक्त, नाबालिग के माता-पिता या अभिभावक को नियमों के अनुसार केवाईसी-अनुपालन करना होगा। एक बार नाबालिग के वयस्क हो जाने पर उसके नाम पर पूरी केवाईसी प्रक्रिया चलानी होगी। ऐसे मामलों में जहां किसी को अभिभावक को बदलने की आवश्यकता होती है, नए अभिभावक की नियुक्ति के अदालत के आदेश के अलावा वर्तमान अभिभावक से अनापत्ति प्रमाण पत्र (एनओसी) की आवश्यकता होगी।