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संभले बाजार

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ट्रैन में चोदा बहन की बुर उसकी मर्ज़ी से-1

Train Mein Choda Bahan Ki Bur Uski Marji Se स्वीटी मेरी सगी बहन है मुझसे लगभग ८ साल छोटी। मेरा नाम गुड्डू है, उम्र २६ साल। मेरे पिताजी चावल और दाल के थोक व्यापारी थे। उनके गुजर जाने के बाद अब मैं उस काम को देखता हूँ। हम किशनगंज बिहार में रहते हैं। मम्मी की मृत्यु चार साल पहले हीं हो गई थी। घर में स्वीटी के अलावे मेरी दो और बहने हैं, २३ साल की प्रभा और २० साल की विभा। प्रभा की शादी हाल हीं में हुई है, विभा अभी बी०ए० कर रही है, जबकि स्वीटी बारहवीं पास की है। १८ साल की स्वीटी पढ़ाई में बहुत तेज है और शुरु से ईंजीनियर बनना चाहती थी। मैं भी उसे प्रोत्साहित करता रहता था सो वो इधर-ऊधर कम्पटीशन देते रहती है। यह कहानी मेरे स्वीटी के बीच हुए चुदाई की शुरूआत की बात आप सब को बताएगी, कैसे और किन हालात में हम दोनों एक दूसरे को चोदने लगे।

पहले मैं अब स्वीटी के बारे में आपको बताऊँ। स्वीटी ५’ की छरहरे बदन की गोरी लड़की है। सुन्दर है, जवान है और खुब जवान है। पढ़ाई के चक्कर में आँखों पर चश्मा लग गया है, फ़िर भी आकर्षक दिखती है और राह चलते लोग एक बार जरूर उसको गौर से देखते हैं हालाँकि वो कभी किसी को लिफ़्ट नहीं देती है। एक साईकिल ले कर वो दिन भर कभी ट्युशन तो कभी कोचिंग में हीं लगी रहती है। खैर कई सोच-विचार के बाद उसका नाम कोचीन के एक ईंजीनियरींग कौलेज की सूची में आ गया और अब हमें एक सप्ताह के भीतर वहाँ उसका नाम लिखवाना था। करीब ३५०० कि०मी० का सफ़र था, एक दिन और दो रात का। शाम को ५ बजे ट्रेन पर बैठिए तो वो रात, फ़िर दिन और फ़िर रात के बाद अगली सुबह करीब ४ बजे पहुँचिए। आनन-फ़ानन में किसी तरह हम लोग को एक आर०ए०सी और एक वेटिन्ग का टिकट मिला ट्रेन में, यानी हम दोनों को एक हीं बर्थ था और हम दूसरे टिकट के लिए इंतजार भी नहीं कर सकते थे।

विभा प्रभा के घर गई हुई थी तब, सो सारी तैयारी भी मुझे हीं करानी पड़ी। सच बताउँ तो इसी तैयारी के समय मुझे पता चला कि मेरी सबसे छोटी बहन कितनी मौड और स्मार्ट है। मेरे लिए वो घर पे हमेशा एक बच्ची जैसी ही थी। स्वीटी का सपना सच होने जा रहा था और वो बहुत खुश थी। दो दिन उसने बाजार से सामान खरीदने में लगाए। एक दिन मैं भी साथ था। उस दिन स्वीटी ने जो सामान खरीदे उसी से मुझे अहसास हुआ कि मेरी सबसे छोटी बहन भी जवान हो गई है।

ऐसा नहीं है कि मैं भोला-भाला हूँ, इस उम्र तक मैं ७-८ लड़की को चोद चुका था। कुछ दोस्त थी, और २ कौल-गर्ल…। पर घर पर बहनों पर कभी ऐसी नजर नहीं डाली थी। कभी सोचा भी नहीं कि बाकी की दुनिया मेरी बहनों के नाम पर मूठ भी मारती होगी। मैंने हमेशा अपनी बहनों को सती-सावित्री हीं माना था। आज की खरीदारी के साथ हीं मैंने अपनी बहन को अब एक मर्द की नजर से देखा तो लगा कि यार यह तो अब पूरा माल हो गई है, १८ साल की उमर, और सही उभारों के साथ एक ऐसा बदन जो किसी भी मर्द को अपना दीवाना बना सकता था। उसकी उस रोज की खरीदारी में लिपिस्टीक, काजल जैसे हल्के मेकअप के सामान के साथ सैनिटरी नैपकिंस और अंडरगार्मेन्ट्स भी था।

मैंने स्वीटी को पहले वैसे कुछ मेकअप करते देखा नहीं था, पर अब जब उसका सच सच होने जा रहा था तो अब शायद वो भी एक लड़की की तरह जीना चाहती थी, पहले वो एक पढ़ाकू लड़की की तरह जीती थी। उसी दिन उसने तीन सेट ब्रा-पैन्टी भी खरीदी जौकी की दूकान से। ८० साईज की लाल, गुलाबी और नीली ब्रा और फ़िर उसी से मौच करता हुआ पैंटी भी। इसके अलावे उसने एक पैकेट स्ट्रींग बीकनी स्टाईल की पैन्टी खरीदी, जिसमें लाल, काली और भूरी ३ पैंटी थी। मुझे तो पता भी नहीं था कि पैंटी की भी इतनी स्टाईल हमारे किशनगंज जैसे शहर में मिलती है। घर लौटते हुए रास्ते में स्वीटी ने वीट हेयर-रिमुवर क्रीम की दो पैक लीं। मैंने टोका भी कि दो एक साथ क्या करोगी, तो उसने कहा कि एक तो यहीं खोल कर युज कर लेगी और बाकि विभा के लिए छोड़ देगी और नया पैक साथ ले जाएगी।

अगली शाम हमें ट्रेन पकड़ना था, और मैं दुकान की जिम्मेदारी स्टाफ़ को समझा चुका था। मैं अपना पैकिंग कर चुका था और बैंक के काम से निकलने वाला था कि स्वीटी आई और मेरे शेविंग किट के बारे में पूछी। मैं एक-दो दिन छोड़ कर शेव करता था सो मैंने किट को सामान में पैक कर दिया था। मैंने झल्लाते हुए पूछा कि वो उसका क्या करेगी, तो बड़ी मासूमियत से स्वीटी ने अपने हाथ ऊपर करके अपने काँख के बाल दिखाए कि यही साफ़ करना है रेजर से। वो एक स्लीवलेस कुर्ती पहने हुए थी। मेरे कुछ कहने से पहले बोली, “इतना बड़ा हो गया है कि क्रीम से ठीक से साफ़ नहीं होगा, सो रेजर से साफ़ करना है, फ़िर इतना बड़ा होने हीं नहीं देंगे। दीदी की शादी के समय साफ़ किए थे अतिंम बार, फ़िर पढ़ाई के चक्कर में मौका हीं नहीं मिला इस सब के लिए।” मैंने भी मुस्कुराते हुए अपना शेविंग किट उसे दे दिया।

शाम को जब मैं घर लौटा तो स्वीटी बिल्कुल बदली हुई थी। उसने अपनी भौं भी सेट कराई थी। और मुझे और दिन से ज्यादा गोरी दिख रही थी। मैंने ये कहा भी तो वो बोली, “सब वीट का कमाल है”। तब मुझे पता चला कि उसने अपने हाथ-पैर आदि से बाल साफ़ किए हुए थे। मैंने हँसते हुए कहा, “दिन भर खाली बाल साफ़ की हो न…”। दिन भर नहीं अभी शाम में दो घन्टे पहले और फ़िर अपने कमरे से एक लपेटा हुआ अखबार ले कर आई और उसको मेरे सामने खोली। उसमें ढ़ेर सारे बाले थे और रूई जिससे वो वीट को पोछी थी। “इतना सब मिल कर काला बनाए हुए था हमको”, वो बोली। मेरी नजर उस अखबार पर थी जहाँ काले-काले खुब सारे बाल थे। मुझे पता चल गया था कि इन बालों में उसकी झाँट भी शामिल है। वो जिस तरह से अपनी बहादुरी दिखा रही थी, मैंने उसको जाँचने के लिए कहा, “इतना तो बाल तुम्हारे काँख में नहीं दिखा था सुबह जब तुम रेजर लेने आई थी?” वो अब थोड़ा संभली, उसको अब अपनी गलती का अंदाजा हुआ था शायद सो वो बोली, “इतना हिसाब किसी लड़की से नहीं लेना चाहिए भैया” और अपनी आँखें गोल-गोल नचा दी और सब डस्टबीन में डालने चली गई।

अगले दिन हम समय से ट्रेन में बैठ गए। ए०सी टू में हमारा सीट था। पूरी बौगी में साऊथ के टुरिस्ट लोग भरे थे, एक पूरी टीम थी जो गौहाटी, आसाम से आ रही थी। पूरी बौगी में हम दोनों भाई-बहन के अलावे एक और परिवार था जो हिन्दी भाषी था। संयोग की उन लोगों की सीट भी हमारे कंपार्टमेन्ट में हीं थी। चार सीट में नीचे की दो और ऊपर की एक उन लोगों की थी और एक ऊपर की हमारी। वो लोग सिलिगुड़ी में रहने वाले माड़वाड़ी थे। पति-पत्नी और एक बेटी जो स्वीटी की उमर की हीं थी। हम सब को तब आश्चर्य हुआ जब पता चला कि वो लड़की भी उसी कौलेज में नाम लिखाने जा रही है जहाँ स्वीटी जा रही है। फ़िर तो परिचय और घना हो गया।

वैसे भी पूरी बौगी में सिर्फ़ हम हीं थे जो आपस में बात कर सकते थे, बाकि के सब तो अलग दुनिया के लोग लग रहे थे, बोल-चाल, खान-पान, रहन-सहन सब से। स्वीटी और उस लड़की गुड्डी (एक और संयोग, मैं गुड्डू और वो गुड्डी) में जल्दी हीं दोस्ती हो गई और वो दोनों ऊपर की सीट पर बैठ कर आराम से बातों में खो गई। मैं नीचे उस बुजुर्ग जोड़े के साथ बात करने लगा। ट्रेन समय से खुल गई और करीब ८:३० बजे हम सब खाना खा कर सोने की तैयारी करने लगे। सफ़र लम्बा था सो उस मड़वाड़ी जोड़े ने अपना कपड़ा बदल लिया था ट्रेन में घुसते हीं। उनकी बेटी भी टायलेट जा कर एक नाईटी पहन कर आ गई तो मैंने भी स्वीटी को कहा की वो भी चेन्ज कर ले।

AIIMS Cyber Attack: 48 हजार हमलों के बाद भी नहीं मिला फूलप्रूफ सिस्टम, नहीं संभले तो मैनुअली करना पड़ेगा काम

दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के ई-हॉस्पिटल सर्वर पर साइबर हमला हुआ है। दो दिन बाद भी स्थिति संभल नहीं पा रही है। ये हालत तो तब हैं, जब यह हमला केवल एक ही संस्थान पर हुआ है। इस हमले के चलते, एम्स में ओपीडी और नमूना संग्रह सेवाओं के अलावा अन्य सभी सेवाएं, मसलन ऑपरेशन प्रक्रिया भी बुरी तरह प्रभावित हुई है। रेनसमवेयर साइबर अटैक के चलते संस्थान का बैकअप सिस्टम भी जवाब दे गया है। सूत्रों का कहना है कि बैकअप सिस्टम को भी निशाना बनाया गया है।

शुरुआती जांच में पता चला है कि साइबर हमले में फाइलों का एक्सटेंशन ही बदल गया। 2017 में यूके के नेशनल हेल्थ सिस्टम ‘एनएचएस’ पर रेनसमवेयर साइबर अटैक हुआ था। करीब दो सप्ताह तक, सारा सिस्टम ठप हो गया था। मैनुअल तरीके से काम करना पड़ा। भारत में चार साल पहले तक 48 हजार से ज्यादा ‘वेनाक्राई रेनसमवेयर अटैक’ डिटेक्ट हुए थे। उसके बाद भी देश में साइबर अटैक से बचने का फूलप्रूफ सिस्टम तैयार नहीं हो सका है।

राष्ट्रीय सुरक्षा सहित इन क्षेत्रों पर पड़ता है असर …

डॉ. मुक्तेश चंद्र (आईपीएस), दिल्ली पुलिस में स्पेशल सीपी के पद से रिटायर हुए हैं। उन्होंने गोवा के डीजीपी और संभले बाजार दिल्ली में स्पेशल सीपी ‘यातायात’ सहित कई अहम पदों पर कार्य किया है। डॉ. मुक्तेश ने आईआईटी दिल्ली से साइबर सिक्योरिटी विषय में पीएचडी की है। उन्होंने सेवा में रहते हुए ब्रिटेन में जाकर ‘चेवेनिंग साइबर सिक्योरिटी फेलोशिप’ के तहत ‘भारत और यूके के साइबर सुरक्षा ढांचे का तुलनात्मक अध्ययन’ विषय पर रिसर्च रिपोर्ट तैयार की थी।

उसके बाद डॉ. मुक्तेश के ‘साइबर सिक्योरिटी’ विषय पर कई लेख प्रकाशित हो चुके हैं। अपने लेख ‘ए केस फॉर नेशनल साइबर सिक्योरिटी स्ट्रेट्जी’ में डॉ. मुक्तेश चंद्र ने लिखा है, ‘क्रिटिकल इंफॉर्मेशन इंफ्रास्ट्रक्चर’ पर हुआ साइबर अटैक राष्ट्रीय सुरक्षा, अर्थव्यवस्था, जन स्वास्थ्य दूसरी अहम सेवाओं को अपनी चपेट में ले लेता है। इन सेवाओं को बहुत दुर्बलता की स्थिति में ला दिया जाता है। मौजूदा समय में साइबर सिक्योरिटी, किसी देश की ‘राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति’ का अभिन्न एवं महत्वपूर्ण हिस्सा है।

साइबर स्पेस के पांचवें डोमेन तक पहुंच गई है लड़ाई

डॉ. मुक्तेश ने बताया, हमने लंबे समय से प्रॉक्सी वॉर के एक भाग के तौर पर आतंकवाद और हिंसा को देखा है। जमीन, समुद्र, हवा और स्पेस के बाद अब वह लड़ाई, साइबर स्पेस के पांचवें डोमेन तक पहुंच गई है। रेनसमवेयर अटैक होते रहते हैं। इनमें यह देखा जाता है कि वे कितने क्रिटिकल होते हैं। हालांकि यह पता लगाना बहुत मुश्किल होता है। 2017 में ब्रिटेन के नेशनल हेल्थ सिस्टम, पर हुए अटैक ने पूरी दुनिया को हिलाकर रख दिया था। यहां तक कि बैकअप डाटा को भी संक्रमित करने का प्रयास किया गया। केवल मुख्य सिस्टम ही नहीं, बल्कि बैकअप भी रेनसमवेयर अटैक का निशाना बनता है। ऐसे हमले के बाद दोबारा से सभी मशीनों को लोड करना पड़ता है। कई बार रेनसमवेयर के तहत बिटक्वॉइन या क्रिप्टो करेंसी में डिमांड भी आती है। पांच साल बाद अगर भारत या दूसरे मुल्कों ने खुद को साइबर अटैक से बचाने के लिए कोई ठोस पहल नहीं की है तो वह चिंताजनक है।

साइबर अटैक से बचने के लिए जरूरी है ये सब

साइबर अटैक से बचने के लिए ‘साइबर हाइजीन’ की प्रक्रिया अपनानी होती है। संस्थान कोई भी हो, वहां पर डाटा बैकअप रोजाना लें। साइबर डिजास्टर मैनेजमेंट, जिसकी एक पूरी ड्रिल होती है, इसके प्रति हर विभाग, संस्थान या कंपनी को अवगत कराया जाए। ये सब तैयारी पहले से ही करनी पड़ती है। क्या एम्स के पास यह सब प्लान था, ये भी एक सवाल है। ये तो केवल एक एम्स पर साइबर हमला हुआ है। अगर दूसरे एम्स, बड़े सरकारी अस्पताल व प्राइवेट संस्थान भी आपस में लिंक हों और तब साइबर अटैक हो जाए, तो उस दौरान की भयावह स्थिति का अंदाजा लगाया जा सकता है। साइबर क्राइम का दायरा, जिस तेजी से बढ़ रहा है, वैसे ही हमें खुद की सुरक्षा बढ़ानी होगी।

पांच सौ करोड़ रुपये तक के जुर्माने के प्रावधान

पेनल्टी सिस्टम को जल्द से जल्द लागू करना होगा। केंद्र सरकार के ‘डिजिटल पर्सनल डाटा प्रोटेक्शन बिल’ में यह प्रावधान किया जा रहा है कि इस तरह के हमले की स्थिति में संबंधित संस्था पर पांच सौ करोड़ रुपये तक का जुर्माना हो सकता है। इस बिल में संस्थान की एक जिम्मेदारी तय की गई है।

साइबर सुरक्षा के लिए एक मजबूत तकनीक अपनानी होगी। इसके लिए बड़े पैमाने पर रणनीति बनाने की जरुरत है। भारत में कई एजेंसी, साइबर अटैक पर काम कर रही हैं। बेहतर होगा कि यह जिम्मेदारी किसी एक संस्था को सौंपी जाए। एम्स पर हुए साइबर अटैक के बाद हमें अपनी नेशनल साइबर सिक्योरिटी रणनीति की घोषणा करना चाहिए।

तीन घंटे में 14 हजार एटीएम से निकाले 1.4 बिलियन येन

इंडियन कंम्यूटर इमरजेंसी रेस्पोंस टीम ने 2016 में साइबर सुरक्षा में सेंध लगाने के 50362 मामले हैंडल किए थे। 31664 से ज्यादा भारतीय वेबसाइट विरूपित हो गई थीं। सिस्टम को संक्रमित बनाने वाले लगभग 10020947 बोट, ट्रैक हुए थे। 2013 में साइबर क्राइम के चलते 24,630 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ था। 2016 में हैकर्स ने मात्र तीन घंटे में जापान के 14 हजार एटीएम से 1.4 बिलियन येन, निकाल लिए थे।

साउथ अफ्रीका के एक बैंक से डाटा चुराकर नकली क्रेडिट कार्ड तैयार किए गए। डेढ़ दशक पहले यूरोप के एस्टोनिया और वहां की संसद पर प्रभाव डालने के लिए बड़े स्तर पर ‘क्रिटिकल इंर्फोमेशन इंफ्रास्ट्रक्चर’ को निशाना बनाया गया। वहां पर तीन सप्ताह साइबर हमलों का असर देखने को मिला। इरान का न्यूक्लियर पावर प्लांट, स्टक्सनेट वायरस से ग्रसित हो गया। यूक्रेन की पावर कंपनियां भी साइबर अटैक से नहीं बच सकी। ‘शूमन’ वायरस ने सऊदी अरब की फर्म ‘अरामको’ के 30 हजार से ज्यादा कंप्यूटरों को संक्रमित कर दिया था। बतौर डॉ. मुक्तेश चंद्र, 2019 तक ‘वेनाक्राई’ रेनसमवेयर ने दुनिया के डेढ़ सौ से अधिक देशों के 230000 कंप्यूटर को संक्रमित कर दिया था।

साइबर स्पेस में घुसने की ताक में ‘आईएसआईएस’ भी

ब्रिटेन की नेशनल हेल्थ सर्विस, स्पेन की टेलीफोनिका फेडेक्स और यूएस ‘क्रिटिकल इंफ्रास्ट्रक्चर आपरेटर’ आदि भी रेनसमवेयर की चपेट में आ चुके हैं। भारत में चार साल पहले तक 48 हजार से ज्यादा ‘वेनाक्राई रेनसमवेयर अटैक’ डिटेक्ट हुए थे। विभिन्न तरह के हैकर समूह, भारतीय स्पेस में सेंध लगाने का प्रयास करते रहते हैं।

भारत के एनर्जी सेक्टर, ट्रांसर्पोटेशन (एयर, सरफेस, रेल एंड वाटर), बैकिंग, वित्त, टेलीकम्युनिकेशन, डिफेंस, स्पेस, लॉ एनफोर्समेंट, सिक्योरिटी, इंटेलिजेंस, सरकार के संवेदनशील संगठन, जन स्वास्थ्य, वाटर सप्लाई, डिस्पोजल, क्रिटिकल मैन्युफैक्चरिंग व ई-गवर्नेंस आदि को साइबर हमलों से बहुत ज्यादा चौकसी बरतनी पड़ती है। आतंकी संगठन ‘आईएसआईएस’ भी साइबर स्पेस में घुसने की कोशिश करते हैं। 2017 में यूके के नेशनल हेल्थ सिस्टम ‘एनएचएस’ पर रेनसमवेयर साइबर अटैक हुआ था। करीब दो सप्ताह तक, सारा सिस्टम ठप हो गया था। मैनुअल तरीके से काम करना संभले बाजार पड़ा।

AIIMS Cyber Attack: 48 हजार हमलों के बाद भी नहीं मिला फूलप्रूफ सिस्टम, नहीं संभले तो मैनुअली करना पड़ेगा काम

दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के ई-हॉस्पिटल सर्वर पर साइबर हमला हुआ है। दो दिन बाद भी स्थिति संभल नहीं पा रही है। ये हालत तो तब हैं, जब यह हमला केवल एक ही संस्थान पर हुआ है। इस हमले के चलते, एम्स में ओपीडी और नमूना संग्रह सेवाओं के अलावा अन्य सभी सेवाएं, मसलन ऑपरेशन प्रक्रिया भी बुरी तरह प्रभावित हुई है। रेनसमवेयर साइबर अटैक के चलते संस्थान का बैकअप सिस्टम भी जवाब दे गया है। सूत्रों का कहना है कि बैकअप सिस्टम को भी निशाना बनाया गया है।

शुरुआती जांच में पता चला है कि साइबर हमले में फाइलों का एक्सटेंशन ही बदल गया। 2017 में यूके के नेशनल हेल्थ सिस्टम ‘एनएचएस’ पर रेनसमवेयर साइबर अटैक हुआ था। करीब दो सप्ताह तक, सारा सिस्टम ठप हो गया था। मैनुअल तरीके से काम करना पड़ा। भारत में चार साल पहले तक 48 हजार से ज्यादा ‘वेनाक्राई रेनसमवेयर अटैक’ डिटेक्ट हुए थे। उसके बाद भी देश में साइबर अटैक से बचने का फूलप्रूफ सिस्टम तैयार नहीं हो सका है।

राष्ट्रीय सुरक्षा सहित इन क्षेत्रों पर पड़ता है असर …

डॉ. मुक्तेश चंद्र (आईपीएस), दिल्ली पुलिस में स्पेशल सीपी के पद से रिटायर हुए हैं। उन्होंने गोवा के डीजीपी और दिल्ली में स्पेशल सीपी ‘यातायात’ सहित कई अहम पदों पर कार्य किया है। डॉ. मुक्तेश ने आईआईटी दिल्ली से साइबर सिक्योरिटी विषय में पीएचडी की है। उन्होंने सेवा में रहते हुए ब्रिटेन में जाकर ‘चेवेनिंग साइबर सिक्योरिटी फेलोशिप’ के तहत ‘भारत और यूके के साइबर सुरक्षा ढांचे का तुलनात्मक अध्ययन’ विषय पर रिसर्च रिपोर्ट तैयार की थी।

उसके बाद डॉ. मुक्तेश के ‘साइबर सिक्योरिटी’ विषय पर कई लेख प्रकाशित हो चुके हैं। अपने लेख ‘ए केस फॉर नेशनल साइबर सिक्योरिटी स्ट्रेट्जी’ में डॉ. मुक्तेश चंद्र ने लिखा है, ‘क्रिटिकल इंफॉर्मेशन इंफ्रास्ट्रक्चर’ पर हुआ साइबर अटैक राष्ट्रीय सुरक्षा, अर्थव्यवस्था, जन स्वास्थ्य दूसरी अहम सेवाओं को अपनी चपेट में ले लेता है। इन सेवाओं को बहुत दुर्बलता की स्थिति में ला दिया जाता है। मौजूदा समय में साइबर सिक्योरिटी, किसी देश की ‘राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति’ का अभिन्न एवं महत्वपूर्ण हिस्सा है।

साइबर स्पेस के पांचवें डोमेन तक पहुंच गई है लड़ाई

डॉ. मुक्तेश ने बताया, हमने लंबे समय से प्रॉक्सी वॉर के एक भाग के तौर पर आतंकवाद और हिंसा को देखा है। जमीन, समुद्र, हवा और स्पेस के बाद अब वह लड़ाई, साइबर स्पेस के पांचवें डोमेन तक पहुंच गई है। रेनसमवेयर अटैक होते रहते हैं। इनमें यह देखा जाता है कि वे कितने क्रिटिकल होते हैं। हालांकि यह पता लगाना बहुत मुश्किल होता है। 2017 में ब्रिटेन के नेशनल हेल्थ सिस्टम, पर हुए अटैक ने पूरी दुनिया को हिलाकर रख दिया था। यहां तक कि बैकअप डाटा को भी संक्रमित करने का प्रयास किया गया। केवल मुख्य सिस्टम ही नहीं, बल्कि बैकअप भी रेनसमवेयर अटैक का निशाना बनता है। ऐसे हमले के बाद दोबारा से सभी मशीनों को लोड करना पड़ता है। कई बार रेनसमवेयर के तहत बिटक्वॉइन या क्रिप्टो करेंसी में डिमांड भी आती है। पांच साल बाद अगर भारत या दूसरे मुल्कों ने खुद को साइबर अटैक से बचाने के लिए कोई ठोस पहल नहीं की है तो वह चिंताजनक है।

साइबर अटैक से बचने के लिए जरूरी है ये सब

साइबर अटैक से बचने के लिए ‘साइबर हाइजीन’ की प्रक्रिया अपनानी होती है। संस्थान कोई भी हो, वहां पर डाटा बैकअप रोजाना लें। साइबर डिजास्टर मैनेजमेंट, जिसकी एक पूरी ड्रिल होती है, इसके प्रति हर विभाग, संस्थान या कंपनी को अवगत कराया जाए। ये सब तैयारी पहले से ही करनी पड़ती है। क्या एम्स के पास यह सब प्लान था, ये भी एक सवाल है। ये तो केवल एक एम्स पर साइबर हमला हुआ है। अगर दूसरे एम्स, बड़े सरकारी अस्पताल व प्राइवेट संस्थान भी आपस में लिंक हों और तब साइबर अटैक हो जाए, तो उस दौरान की भयावह स्थिति का अंदाजा लगाया जा सकता है। साइबर क्राइम का दायरा, जिस तेजी से बढ़ रहा संभले बाजार है, वैसे ही हमें खुद की सुरक्षा बढ़ानी होगी।

पांच सौ करोड़ रुपये तक के जुर्माने के प्रावधान

पेनल्टी सिस्टम को जल्द से जल्द लागू करना होगा। केंद्र सरकार के ‘डिजिटल पर्सनल डाटा प्रोटेक्शन बिल’ में यह प्रावधान किया जा रहा है कि इस तरह के हमले की स्थिति में संबंधित संस्था पर पांच सौ करोड़ रुपये तक का जुर्माना हो सकता है। इस बिल में संस्थान की एक जिम्मेदारी तय की गई है।

साइबर सुरक्षा के लिए एक मजबूत तकनीक अपनानी होगी। इसके लिए बड़े पैमाने पर रणनीति बनाने की जरुरत है। भारत में कई एजेंसी, साइबर अटैक पर काम कर रही हैं। बेहतर होगा कि यह जिम्मेदारी किसी एक संस्था को सौंपी जाए। एम्स पर हुए साइबर अटैक के बाद हमें अपनी नेशनल साइबर सिक्योरिटी रणनीति की घोषणा करना चाहिए।

तीन घंटे में 14 हजार एटीएम से निकाले 1.4 बिलियन येन

इंडियन कंम्यूटर इमरजेंसी रेस्पोंस टीम ने 2016 में साइबर सुरक्षा में सेंध लगाने के 50362 मामले हैंडल किए थे। 31664 से ज्यादा भारतीय वेबसाइट विरूपित हो गई थीं। सिस्टम को संक्रमित बनाने वाले लगभग 10020947 बोट, ट्रैक हुए थे। 2013 में साइबर क्राइम के चलते 24,630 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ था। 2016 में हैकर्स ने मात्र तीन घंटे में जापान के 14 हजार एटीएम से 1.4 बिलियन येन, निकाल लिए थे।

साउथ अफ्रीका के एक बैंक से डाटा चुराकर नकली क्रेडिट कार्ड तैयार किए गए। डेढ़ दशक पहले यूरोप के एस्टोनिया और वहां की संसद पर प्रभाव डालने के लिए बड़े स्तर पर ‘क्रिटिकल इंर्फोमेशन इंफ्रास्ट्रक्चर’ को निशाना बनाया गया। वहां पर तीन सप्ताह साइबर हमलों का असर देखने को मिला। इरान का न्यूक्लियर पावर प्लांट, स्टक्सनेट वायरस से ग्रसित हो गया। यूक्रेन की पावर कंपनियां भी साइबर अटैक से नहीं बच सकी। ‘शूमन’ वायरस ने सऊदी अरब की फर्म ‘अरामको’ के 30 हजार से ज्यादा कंप्यूटरों को संक्रमित कर दिया था। बतौर डॉ. मुक्तेश चंद्र, 2019 तक ‘वेनाक्राई’ रेनसमवेयर ने दुनिया के डेढ़ सौ से अधिक देशों के 230000 कंप्यूटर को संक्रमित कर दिया था।

साइबर स्पेस में घुसने की ताक में ‘आईएसआईएस’ भी

ब्रिटेन की नेशनल हेल्थ सर्विस, स्पेन की टेलीफोनिका फेडेक्स और यूएस ‘क्रिटिकल इंफ्रास्ट्रक्चर आपरेटर’ आदि भी रेनसमवेयर की चपेट में आ चुके हैं। भारत में चार साल पहले तक 48 हजार से ज्यादा ‘वेनाक्राई रेनसमवेयर अटैक’ डिटेक्ट हुए थे। विभिन्न तरह के हैकर समूह, भारतीय स्पेस में सेंध लगाने का प्रयास करते रहते हैं।

भारत के एनर्जी सेक्टर, ट्रांसर्पोटेशन (एयर, सरफेस, रेल एंड वाटर), बैकिंग, वित्त, टेलीकम्युनिकेशन, डिफेंस, स्पेस, लॉ एनफोर्समेंट, सिक्योरिटी, इंटेलिजेंस, सरकार के संवेदनशील संगठन, जन स्वास्थ्य, वाटर सप्लाई, डिस्पोजल, क्रिटिकल मैन्युफैक्चरिंग व ई-गवर्नेंस आदि को साइबर हमलों से बहुत ज्यादा चौकसी बरतनी पड़ती है। आतंकी संगठन ‘आईएसआईएस’ भी साइबर स्पेस में घुसने की कोशिश करते हैं। 2017 में यूके के नेशनल हेल्थ सिस्टम ‘एनएचएस’ पर रेनसमवेयर साइबर अटैक हुआ था। करीब दो सप्ताह तक, सारा सिस्टम ठप हो गया था। मैनुअल तरीके से काम करना पड़ा।

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