अस्थिर शेयर बाजार में कहां करें निवेश?

10 साल में 3 गुना से भी ज्यादा बढ़ गया Gold में Return, जानिए इसकी बड़ी वजह
नई दिल्ली। कोरोना काल जहां काम धंधे सब बंद हो गए हैं। कारोबार पर जगरदस्त चोट लगी है। लोगों के पास कैश की किल्लत बढ़ गई है। करोड़ों लोग बेरोजगार हो गए हैं। ऐसे में आम लोगों को जो कुछ भी जमा पूंजी है उसे निवेश कहां करे सबसे बड़ी समस्या बन गई है। इसका कारण है शेयर बाजार अस्थिरता के दौर से गुजर रहा है। डेट एवं लिक्विड मार्केट भी थोड़ा कमजोर है। फिक्सड इनकम या यूं कहें फिक्सड डिपोजिट की ब्याज दरों में भारी कटौती देखने को मिल चुकी है। ऐसे में अब एक ही ऐसा सेगमेंट बचा है जहां पर निवेश किया जा सकता है और बेहतर रिटर्न की उम्मीद भी की जा सकता है। वो है गोल्ड यानी सोना। इस एक बड़ी वजह है रिटर्न। बाकी सेगमेंट के मुकाबले सोने में रिटर्न बाकियों से 5 से 8 गुना ज्यादा है। बीते एक साल के मुकाबले सोने ने 32 फीसदी से ज्यादा का रिटर्न दिया है। बीते दस सालों में निवेशकों को 3 गुना से ज्यादा का मुनाफा हुआ है। इसलिए कहा भी जाता है कि भारतीयों सोना बेहद पसंद भी है।
इकोनॉमी के अच्छे दिनों के सामने चुनौती बनकर खड़ा है शेयर बाजार का रुख
वित्त मंत्री अरुण जेटली की तरफ से बजट में की गई घोषणाओं ने दलाल स्ट्रीट को निराश किया है. लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन्स पर टैक्स लगाए जाने से और राजकोषीय गिरावट अपेक्षा से ज्यादा रहने का असर शेयर बाजार पर पड़ा है.
विकास जोशी
- नई दिल्ली,
- 08 फरवरी 2018,
- (अपडेटेड 08 फरवरी 2018, 11:39 AM IST)
वित्त मंत्री अरुण जेटली की तरफ से बजट में की गई घोषणाओं ने दलाल स्ट्रीट को निराश किया है. लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन्स पर टैक्स लगाए जाने से और राजकोषीय गिरावट अपेक्षा से ज्यादा रहने का असर शेयर बाजार पर पड़ा है. बजट के बाद वैश्विक कारणों से भी बाजार में गिरावट देखने को मिल रही है, लेकिन मार्केट में लंबे समय तक गिरावट के लिए वैश्विक कारणों से ज्यादा घरेलू स्तर पर इकोनॉमी के सामने उठ रही चुनौतियां ही वजह बनेंगी.
इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि अर्थव्यवस्था के अच्छे दिनों को लाने में बाजार का भी बड़ा हाथ होता है. यही वजह है कि शेयर बाजार में जारी उठापटक इस सरकार के लिए बेहतर भविष्यवाणी नहीं साबित हो रही है.
सरकार भले ही अच्छे दिनों का सपना दिखाती रहे, लेकिन कमजोर और अस्थिर बाजार का असर देश की अर्थव्यवस्था पर जरूर नजर आएगा. यह महंगाई बढ़ाने और आर्थिक सुस्ती का दौर शुरू होने का खतरा पैदा करने समेत अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर कई चुनौतियां खड़ी कर सकता है. बजट के बाद लगे झटकों के बाद शेयर बाजार दो गुटों (सतर्क और आशावादी ) में बंट गया है.
अर्थव्यवस्था के सामने बढ़ती महंगाई, तेल की बढ़ती कीमतें और चालू खाता व वित्तीय घाटा बढ़ने की चुनौती है. ऐसी स्थिति में जहां कुछ निवेशकों को लगता है कि बाजार लघु से मध्य अवधि में परिवर्तनशील रहेगा या फिर नियंत्रण में आ जाएगा. वहीं, कुछ का कहना है कि बाजार में अभी करेक्शन बाकी है और यह और भी नीचे जा सकता है.
लेकिन बाजार अगर यूं ही लंबे समय तक अस्थिर रहता है, तो इसका अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर काफी असर पड़ेगा.
म्युचुअल फंड में निवेश हो सकता है कम
भारत में 2014 के बाद वित्तीय निवेश में बढ़ोतरी आई है. इसकी बदौलत रियल इस्टेट और सोने में निवेश करने की बजाय मध्यम वर्ग ने अब मार्केट में निवेश करना शुरू कर दिया है. इसके लिए उसने म्युचुअल फंड का विकल्प चुना है. खासकर छोटे शहरों की तरफ से निवेश लगातार बढ़ रहा है. यही वजह है कि म्युचुअल फंड इंडस्ट्री का निवेश 2017 में 22 लाख करोड़ को पार कर गया है, जिसमें 1.69 लाख करोड़ रुपये इसी साल में आया है.
फंड मैनेजर्स को डर है कि अगर शेयर बाजार में यूं ही गिरावट का दौर बना रहा, तो इससे म्युचुअल फंड इंडस्ट्री का निवेश 50 फीसदी तक नीचे आ सकता है. घरेलू निवेशक जो अभी इनमें निवेश करने के लिए आगे आ रहे हैं, वे अपना हाथ खींचना शुरू कर सकते हैं. म्युचुअल फंड शेयर बाजार को वैश्विक अनियमितताओं से बचाने में अहम भूमिका निभाता है. कम रिटर्न और ज्यादा टैक्स भी निवेशक को म्युचुअल फंड से दूर खींच सकता है और वह एक बार फिर सोने व रियल इस्टेट में निवेश शुरू कर सकता है.
बाजार में आई तेजी की बदौलत पिछले साल इनिशियल पब्लिक ऑफरिंग्स (IPO) एक नये स्तर पर पहुंची हैं. 2017 में 36 कंपनियों ने आईपीओ के जरिये 67,141 करोड़ रुपये जुटाए हैं. पिछले 10 साल के दौरान यह दूसरा सबसे बड़ा आईपीओ कलेक्शन था. इंडस्ट्री का अनुमान है कि आने वाले दिनों में 48 से भी ज्यादा कंपनियां आईपीओ लाने वाली हैं. लेकिन बाजार में गिरावट का दौर अगर जारी रहता है, तो कंपनियां आईपीओ लाने को लेकर सतर्क हो सकती हैं. इससे 2017 में आईपीओ का जो उच्च स्तर रहा, वह नीचे आ सकता है.
सरकार अगर वित्तीय स्थिति को बेहतर बनाए रखना चाहती है, तो उसे बाजार में स्थिरता की काफी ज्यादा जरूरत है. 2017-18 में सरकार ने अपने विनिवेश के लक्ष्य को पार किया था. यह अब तक के सबसे ज्यादा के स्तर (72,500 करोड़) पर पहुंचा था. उम्मीद है कि सरकार को 1 लाख करोड़ रुपये मिलेंगे. वित्त वर्ष 2018-19 के लिए सरकार ने विनिवेश का लक्ष्य 80 हजार करोड़ रुपये रखा है. जो कि मौजूदा वित्त वर्ष के लक्ष्य से साल-दर-साल की दर से 10 फीसदी ज्यादा है. सरकार अगर अपने इस लक्ष्य को हासिल करना चाहती है, तो उसके लिए बाजार में बढ़त का दौर जरूरी है.
भारतीय शेयर बाजार को हरे निशान के ऊपर रखने में विदेशी निवेशकों की भी बड़ी भूमिका है. उन्होंने ही बाजार में अस्थिर शेयर बाजार में कहां करें निवेश? आई भारी गिरावट से पहले इसे रिकॉर्ड ऊंचाइयों पर पहुंचाया था. इस कारोबारी हफ्ते के पहले दिन सोमवार (5 फरवरी) को अमेरिकी बाजार में 6 साल की सबसे बड़ी गिरावट देखने को मिली. अमेरिकी बाजार में आई गिरावट के लिए बॉन्ड यील्ड बढ़ना जिम्मेदार है. भारत में भी बॉन्ड यील्ड में लगातार बढ़ोतरी हो रही है.
फॉरेन इंस्टीट्यूशनल इन्वेस्टर्स (FIIs) अपने कॉस्ट ऑफ कैपिटल को लेकर काफी ज्यादा संवेदनशील रहते हैं. ऐसे में बढ़ता बॉन्ड यील्ड उनके कॉस्ट ऑफ कैपिटल को बढ़ाता है. इस वजह से उनका भारतीय शेयर बाजार से बाहर निकलने का खतरा पैदा हो सकता है.
आर्थिक मोर्चों की इन चुनौतियों अस्थिर शेयर बाजार में कहां करें निवेश? के बाद आगामी चुनाव भी शेयर बाजार की दिशा तय करने में अहम भूमिका निभा सकते हैं. गुजरात चुनाव और राजस्थान व पश्चिम बंगाल के उपचुनावों के दौरान साबित हो गया कि मार्केट भी चुनावी सरगर्मी से अब सतर्क होने लगा है. आने वाले दिनों में राज्यों में होने वाले चुनाव पर भी बाजार की नजर रहेगी.
छोटे निवेशकों की बात करें, तो लघु से मध्य अवधि में रास्ता थोड़ा मुश्किलों भरा रह सकता है. हालांकि अगर लंबी अवधि के लिए निवेश कर रहे हैं, तो आपके लिए रास्ता काफी ज्यादा आसान हो सकता है.
स्मार्ट निवेश युक्तियाँ: शुरुआती लोगों के लिए निवेश करना अस्थिर शेयर बाजार में कहां करें निवेश? आसान हो गया
आजकल जैसे-जैसे पैसे की क़ीमत बढ़ती जा रही है लोग स्मार्ट इन्वेस्टमेंट टिप्स के गुप्त मंत्र ढूंढते नज़र आ रहे हैं। क्या आप उनमें से एक हैं? लेकिन असल में,निवेश चालाकी से कोई रॉकेट साइंस नहीं है और न ही इसके लिए कोई गुप्त मंत्र हैं। आपको बस खुद अस्थिर शेयर बाजार में कहां करें निवेश? से कुछ सवाल पूछने की जरूरत है। क्या हैपैसे निवेश करने के सर्वोत्तम तरीके? पैसा कहां निवेश करें? आप पैसा क्यों निवेश करना चाहते हैं? क्योंकि आपको वित्तीय सुरक्षा की आवश्यकता है? और उस वित्तीय सुरक्षा को प्राप्त करने का सबसे उपयुक्त तरीका क्या है? यह करने के लिए हैपैसे बचाएं और लंबी अवधि के लिए एक स्मार्ट निवेश करें ताकि भविष्य में आपके पास वित्तीय स्थिरता हो। तो, पैसे का निवेश कैसे शुरू करें?
स्मार्ट इन्वेस्टमेंट टिप्स: जानिए पैसे का निवेश करने का सबसे अच्छा तरीका
निवेश और स्मार्ट निवेश के बीच बहुत पतली रेखा है। इसलिए, सुनिश्चित करें कि आप इसे सही चुनकर सही करते हैंनिवेश योजना. नीचे कुछ स्मार्ट निवेश युक्तियाँ दी गई हैं या साझा करेंमंडी बताए गए टिप्स जो आपको अपने लिए एक बेहतर निवेश विकल्प चुनने में मदद करेंगे।
1. निवेश करने से पहले सर्वश्रेष्ठ धन निवेश को समझें
निवेश शुरू करने से पहले पालन करने वाली पहली स्मार्ट निवेश युक्तियों में से एक है अपने निवेश को समझना। हमें उन उपकरणों में निवेश नहीं करना चाहिए जिन्हें हम नहीं जानते हैं। ऐसा ही होगाम्यूचुअल फंड्स,सोने के बंधन, स्टॉक या सावधि जमा, उन्हें अंदर से समझें और फिर निवेश करें। बता दें, अगर आप म्यूच्यूअल फण्ड में निवेश करने की सोच रहे हैं तो आपको पता होना चाहिए कि म्यूच्यूअल फण्ड क्या है,नहीं हैं, फंड का प्रदर्शन, प्रवेश और निकास भार, वे कैसे संबंधित हैं, म्युचुअल फंड रिटर्न कराधान से कैसे प्रभावित होते हैं और आपको क्यों करना चाहिएम्युचुअल फंड में निवेश.
2. शांत रहें और धन निवेश विकल्पों को जानें
एक बार निवेश करने के अस्थिर शेयर बाजार में कहां करें निवेश? बाद, धैर्यपूर्वक अपने धन के बढ़ने की प्रतीक्षा करें। किसी भी निवेश के लिए, स्वस्थ उत्पादन करने में कुछ समय लगता है। आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि अधिकांश स्मार्ट निवेश वाहन लंबी अवधि के लिए निवेश करने पर पर्याप्त रिटर्न देते हैं। इसलिए, बाजारों के बढ़ने का इंतजार करें और देखें कि आपका पैसा कैसे बढ़ता है।
3. टैक्स सेविंग निवेश शामिल करें
स्मार्ट निवेश करने से पहले एक और महत्वपूर्ण बात पर विचार करना शामिल हैटैक्स सेविंग निवेश आपके पोर्टफोलियो में विकल्प। आप टैक्स ब्रैकेट के अंतर्गत आते हैं या नहीं, इसे शामिल करने की सलाह दी जाती हैकर बचाने वाला आपकी शुरुआती कमाई के दिनों से। कुछ कर बचत निवेशों में शामिल हैं-
ए। राष्ट्रीय पेंशन योजना (एनपीएस)
एनपीएस सभी के लिए खुला है, लेकिन सभी सरकारी कर्मचारियों के लिए अनिवार्य है। एकइन्वेस्टर एनपीएस योजना में न्यूनतम INR 500 प्रति माह या INR 6000 वार्षिक जमा कर सकते हैं। के लिए यह एक अच्छी योजना हैसेवानिवृत्ति योजना साथ ही क्योंकि निकासी के समय कोई प्रत्यक्ष कर छूट नहीं है क्योंकि कर अधिनियम, 1961 के अनुसार राशि कर-मुक्त है।
बी। सार्वजनिक भविष्य निधि (पीपीएफ)
पीपीएफ सबसे लोकप्रिय में से एक हैलंबी अवधि के निवेश साधन भारत में। चूंकि यह भारत सरकार द्वारा समर्थित है, इसलिए यह आकर्षक ब्याज दर के साथ एक सुरक्षित निवेश है। इसके अलावा, यह के तहत कर लाभ प्रदान करता हैधारा 80सी काआयकर अधिनियम, और ब्याज भीआय कर से छूट प्राप्त है।
सी। इक्विटी लिंक्ड सेविंग स्कीम (ईएलएसएस)
एक प्रकार का टैक्स सेविंग निवेश, इक्विटी लिंक्ड सेविंग स्कीम एक इक्विटी डायवर्सिफाइड फंड है जिसमें फंड कॉर्पस का बड़ा हिस्सा या तो इक्विटी या इक्विटी से संबंधित इंस्ट्रूमेंट्स में निवेश किया जाता है। इक्विटी लिंक्ड बचत योजनाएं (ईएलएसएस) स्टॉक एक्सचेंजों में सूचीबद्ध कंपनियों के इक्विटी शेयरों को खरीदकर मुख्य रूप से इक्विटी बाजार में निवेश करें।
म्यूचुअल फंड में निवेश करने वाले जान लें ये तीन रिस्क, फायदे में रहेंगे आप
डायवर्सिफाइड कर अनसिस्टेमेटिक रिस्क को कम किया जा सकता है, जबकि सिर्फ समय सीमा को बढ़ाकर और इक्विटी को पर्याप्त लंबे समय तक होल्ड कर ही सिस्टेमेटिक रिस्क को एक हद तक कम किया जा सकता है.
म्यूचुअल फंड (Mutual Fund) जैसे मार्केट लिंक्ड प्रोडक्ट में निवेश करते समय हम सभी को पहले इसमें हमेशा ही मौजूद रहने वाले जोखिमों को समझना होगा और फिर यह भी समझना होगा कि जोखिम को पूरी तरह से नष्ट या समाप्त नहीं किया जा सकता है, बल्कि इसे केवल कम या ट्रांसफर ही किया जा सकता है. रिस्क को ट्रांसफर करने का सीधा सा मतलब है कि अगर कोई व्यक्ति आवश्यक सीमा तक रिटर्न (Return) प्राप्त करने के लिए अभी जोखिम नहीं लेता है. और अगर प्राप्त राशि सोची गई रकम से कम रह जाती है तो वह बाद में बहुत अधिक जोखिम उठा सकता है. दूसरी ओर जोखिम को कम करने का अर्थ है जहां तक संभव हो इसे कम करना और इस प्रकार परिणाम को सबसे बेहतर स्तर तक ले जाना.
इक्विटी में निवेश करने वाले प्रोडक्ट के लिए दो सबसे चर्चित जोखिम हैं, पहला अनसिस्टेमेटिक रिस्क (सेक्टर या कंपनी पर केंद्रित) और दूसरा सिस्टेमेटिक रिस्ट (पूरे बाजार में निहित जोखिम, उदाहरण के लिए जंग). कई विशेषज्ञ अस्थिरता और जोखिम के बीच के अंतर पर भी प्रकाश डालते हैं. अस्थिरता केवल कीमतों में रोजाना का उतार-चढ़ाव है, जबकि जोखिम को दीर्घकालिक वित्तीय लक्ष्यों या परिणामों को तैयार करने या प्राप्त करने में असमर्थता के रूप में माना जा सकता है. इस प्रकार, इक्विटी को अस्थिर कहा जा सकता है लेकिन शायद वह जोखिम भरा नहीं है, जबकि एक गारंटेड, पारंपरिक, फिक्स इनकम प्रोडक्ट देखने में स्थिर लेकिन अपेक्षाकृत जोखिम भरे हो सकते हैं.
स्ट्रैटेजी से कम करें रिस्क
पीजीआईएम इंडिया म्यूचुअल फंड (PGIM India Mutual Fund) के सीईओ अजीत मेनन ने कहा, अलग-अलग प्रकार के जोखिमों की बात करें तो इक्विटी में शामिल जोखिमों को कम करने के लिए पर्याप्त रणनीतियां हैं. विभिन्न शेयरों, सेक्टर्स, निवेश शैलियों आदि पर पोर्टफोलियो को एक बिंदु तक डायवर्सिफाइड कर अव्यवस्थित जोखिम को कम किया जा सकता है, जबकि सिर्फ समय सीमा को बढ़ाकर और इक्विटी को पर्याप्त लंबे समय तक होल्ड कर ही व्यवस्थित जोखिम को एक हद तक कम किया जा सकता है. ये दोनों विचार पीजीआईएम इंडिया में हमारे पोर्टफोलियो निर्माण प्रक्रिया में शामिल हैं. हम कॉरपोरेट गवर्नेंस मानकों, कमाई के ट्रैक रिकॉर्ड और स्थिरता, दीर्घकालिक परिप्रेक्ष्य और पूंजी दक्षता पर ध्यान केंद्रित करते हैं क्योंकि ये कुछ ऐसे कारक हैं जो यह सुनिश्चित करते हैं कि हमारे पोर्टफोलियो में जोखिम काफी हद तक कम हो.
स्टॉक को चुनने के लिए हमारा दूसरे स्तर का फिल्टर कम डेट टु इक्विटी रेशियो, पिछली साइकिल में सकारात्मक ऑपरेटिंग कैशफ्लो से लेकर हमारे पोर्टफोलियो में अनिवार्य रूप से तैयार डाउनसाइड प्रोटेक्शन पर आधारित होता है. हम पीईजी अनुपात (मूल्य/आय से वृद्धि) जैसे विभिन्न अन्य मापदंडों को देखते हुए इसमें मदद करते हैं. यह हमें बताता है कि हम इस बात को लेकर सचेत हैं कि हम भविष्य के ग्रोथ पोटेंशियल के लिए आज कितना भुगतान कर रहे हैं.
एक हालिया उदाहरण हमारे प्रोसेस को बखूबी बयां करता है, जिसमें कुछ नए युग की टेक कंपनियों के आईपीओ से दूर रहने के कारण हम बड़ी गिरावट से बचने में सफल रहे हैं. सकारात्मक नकदी प्रवाह पर हमारे इन्वेस्टमेंट फिल्टर ने इस मामले में हमारे पक्ष में काम किया है.
बिहेवियर रिस्क
तीसरे प्रकार का जोखिम जिसके बारे में विशेषज्ञ कम ही बात करते हैं, वह है बिहेवियर रिस्क. यह मनी मैनजर्स और इंन्वस्टर्स दोनों के रूप में हमारे पूर्वाग्रहों से संबंधित है. यह हमें डेटा को निष्पक्ष रूप से देखने से रोकता है और इस तरह त्रुटियां पैदा होती हैं. इनकी वजह से कभी-कभी पूंजी का स्थायी नुकसान हो सकता है. बेहतर रिटर्न की उम्मीद में उन शेयरों को होल्ड करने की प्रवृत्ति, जिनके फंडामेंटल में कमी आने के कारण उनके मूल्य में गिरावट आई है, ऐसा ही एक उदाहरण है. लोकप्रिय रूप से इसे डिसपोजीशन इफेक्ट के रूप में जाना जाता है, यहां हम अपने घाटे वाले शेयरों को अपने पोर्टफोलियो में रखते हुए अपने मुनाफे वाले शेयरों को बेचते हैं.
वास्तव में अन्य पहलू भी हैं जो हमारी मदद करते हैं जैसे इक्विटी रिसर्च एनालिस्ट टीम जो कि आंतरिक रूप से अपने विभिन्न दृष्टिकोणों पर चर्चा करती है. यह बिहेवियर रिस्क में कमी लाने के लिए भी काम करती है, क्योंकि यहां विचारों पर विभिन्न प्रकार के दृष्टिकोण रखते हुए काफी गहन चर्चा की जाती है.
एक और चीज जो हमारे दृष्टिकोण में विस्तार लाती है, वह है हमारी ग्लोबल टीमों से मिलने वाला समर्थन और इनपुट. यह मदद हमें वैश्विक स्तर पर घटने वाली घटनाओं को समझने में मदद करता है, और बाजारों पर पड़ने वाले प्रभाव को और भी बारीकी से समझने में मदद करता है. यह सब मिलकर मात्रात्मक फिल्टर के साथ व्यक्तिगत व्यवहार से जुड़े जोखिम को काफी हद तक कम करने करती हैं. इन फिल्टर्स की चर्चा हमने ऊपर की है.