विदेशी मुद्रा मुद्रा बाजार क्या है?

विदेशी मुद्रा दरों को समझना
जब एक निर्यातक अंतर्राष्ट्रीय व्यापार शुरू करने की योजना बनाता है, तो यह समझना अधिक महत्वपूर्ण हो जाता है कि अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा विनिमय दरों में अंतर कैसे आता है। अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा विनिमय दर (विदेशी मुद्रा दर) दुनिया भर में होने वाली विभिन्न घटनाओं से प्रभावित है। अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा विनिमय दरें प्रकृति में बेहद अप्रत्याशित हैं और तेजी से बदलती रहती हैं।
विनिमय दर जिस पर दो देशों के बीच एक मुद्रा का विनिमय दूसरे देश में किया जा सकता है, विदेशी विनिमय दर के रूप में जाना जाता है। विदेशी विनिमय दर को एफएक्स दर या विदेशी मुद्रा दर के रूप में भी जाना जाता है। उदाहरण के लिए अमेरिका और भारत के बीच मुद्रा की विनिमय दर 1 USD = 62.3849 INR है। बाद में हम विदेशी विनिमय दरों से संबंधित विभिन्न विषयों पर चर्चा करते हैं।
स्पॉट एक्सचेंज रेट
जिस दर पर विदेशी मुद्रा उपलब्ध है उसे स्पॉट एक्सचेंज रेट कहा जाता है। विदेशी मुद्रा का स्पॉट रेट वर्तमान लेनदेन के लिए बहुत उपयोगी है लेकिन यह पता लगाना भी आवश्यक है कि स्पॉट रेट क्या है।
आगे विनिमय दर
विदेशी मुद्रा की खरीद या बिक्री के लिए एक आगे के अनुबंध में प्रबल होने वाली विनिमय दर को फॉरवर्ड रेट कहा जाता है। यह दर अभी तय की गई है लेकिन विदेशी मुद्रा का वास्तविक लेन-देन भविष्य में होता है।
विनिमय दरों के उद्धरण की विधि
मुद्रा बाजार में नए लोगों के लिए मुख्य भ्रम मुद्राओं के उद्धरण के लिए मानक है। इस खंड में, हम मुद्रा उद्धरणों पर जाएँगे और वे मुद्रा जोड़ी ट्रेडों में कैसे काम करेंगे। विनिमय दर उद्धृत करने की दो विधियाँ हैं:
1. प्रत्यक्ष मुद्रा उद्धरण
2. अप्रत्यक्ष मुद्रा भाव
प्रत्यक्ष मुद्रा उद्धरण: इस पद्धति में, घरेलू मुद्रा की परिवर्तनीय मात्रा के खिलाफ विदेशी मुद्रा की निश्चित इकाइयां उद्धृत की जाती हैं। उदाहरण के लिए, अमेरिका में, कनाडाई डॉलर के लिए एक सीधा उद्धरण $ 0.85 = C $ 1 होगा। अब एक बैंक केवल प्रत्यक्ष आधार पर दरों को उद्धृत कर रहा है।
अप्रत्यक्ष मुद्रा उद्धरण: इस पद्धति में, विदेशी मुद्रा की परिवर्तनीय इकाइयों के खिलाफ घरेलू मुद्रा की निश्चित इकाइयों को उद्धृत किया जाता है। उदाहरण के लिए, अमेरिका में कनाडाई डॉलर के लिए एक अप्रत्यक्ष उद्धरण यूएस $ 1 = सी $ 1.17 होगा।
जापानी येन (जेपीएन) के अपवाद के साथ, दशमलव स्थान के बाद अधिकांश मुद्रा विनिमय दरों को चार अंकों में उद्धृत किया जाता है, जिसे दो दशमलव स्थानों के लिए उद्धृत किया जाता है।
एक मुद्रा या तो चल या तय हो सकती है
क्रॉस करेंसी
यदि अमेरिकी मुद्रा को उसके एक घटक के रूप में मुद्रा के बिना दिया जाता है, तो इसे क्रॉस मुद्रा कहा जाता है। सबसे आम क्रॉस करेंसी जोड़े EUR हैं
बोली और पूछो
वित्तीय बाजारों में ट्रेडिंग, जब आप एक मुद्रा जोड़ी का व्यापार कर रहे हैं तो एक बोली मूल्य (खरीदें) और एक पूछ मूल्य (बेचना) है। ये आधार मुद्रा के संबंध में हैं। बोली मूल्य आधार मुद्रा के संबंध में उद्धृत मुद्रा के लिए बाजार कितना भुगतान करेगा। पूछें मूल्य उद्धृत मुद्रा की राशि को संदर्भित करता है जिसे आधार मुद्रा की एक इकाई खरीदने के लिए भुगतान करना पड़ता है। उदाहरण के लिए: USD
फैलता है और पिप्स
स्प्रेड बोली की कीमतों और पूछ मूल्य के बीच का अंतर है। उदाहरण के लिए EUR
फ़ॉरवर्ड या फ़्यूचर्स मार्केट्स में मुद्रा जोड़े
वायदा बाजार में विदेशी मुद्रा को हमेशा अमेरिकी डॉलर के मुकाबले उद्धृत किया जाता है। अन्य मुद्रा की एक इकाई को खरीदने के लिए कितने अमेरिकी डॉलर की आवश्यकता होती है जो मूल्य निर्धारण पर प्रभाव डालती है।
विनिमय दर को प्रभावित करने वाले कारक निम्नानुसार हैं:
उच्च ब्याज दरें
विदेशों में मुद्रा में उच्च ब्याज दर होने से यह अधिक आकर्षक हो जाती है। निवेशक इस मुद्रा को खरीदना पसंद करते हैं क्योंकि वे उस देश में लोगों को पैसा उधार दे सकते हैं और उच्च दरों द्वारा पेश किए गए अतिरिक्त मार्जिन से लाभ कमा सकते हैं। नतीजतन, उच्च दर मांग को बढ़ाती है, जो एक मुद्रा के मूल्य को बढ़ाती है और इसके विपरीत।
मुद्रास्फीति किसी मुद्रा के मूल्य को प्रभावित करती है। कम मुद्रास्फीति आपको अधिक खरीदने की सुविधा देती है। वास्तव में निवेशक इसे पसंद करते हैं क्योंकि वे उस मुद्रा को खरीदना चाहते हैं जो इसके मूल्य को बढ़ाती है और इसके विपरीत।
अर्थव्यवस्था की ताकत
सरकारी ऋण का स्तर
उच्च सरकारी ऋण, मुद्रा का मूल्य कम करें।
व्यापार की शर्तें
व्यापार की शर्तें एक अनुपात है जो निर्यात कीमतों की तुलना आयात कीमतों से करता है। यदि व्यापार की शर्तों में वृद्धि होती है, तो उस देश की निर्यात वृद्धि की मांग का मतलब है कि इसकी मुद्रा की अधिक मांग है, जिससे इसके मूल्य में वृद्धि होती है और इसके विपरीत।
RBI Report: रंग आईं Reserve Bank Of India की कोशिशें, विदेशी मुद्रा भंडार घटने की रफ़्तार हुई कम
2008-09 के वैश्विक वित्तीय संकट के दौरान भंडार 22 प्रतिशत कम हुआ था। यूक्रेन-रूस युद्ध के बाद उत्पन्न उतार-चढ़ाव के दौरान इसमें केवल छह प्रतिशत की कमी आई है।
Written By: Amrish Kumar Yadav @theamrishkumar
Updated on: August 27, 2022 18:41 IST
Photo:PTI RBI
भारतीय रिजर्व बैंक के हस्तक्षेप से मुद्रा बाजार में उतार-चढ़ाव के दौरान विदेशी मुद्रा भंडार घटने की दर में कमी आई है। आरबीआई अधिकारियों के अध्ययन में यह कहा गया है। अध्ययन में 2007 से लेकर रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण मौजूदा समय में उत्पन्न उतार-चढ़ाव को शामिल किया गया है। केंद्रीय बैंक की विदेशी मुद्रा बाजार में हस्तक्षेप की एक घोषित नीति है। केंद्रीय बैंक यदि बाजार में अस्थिरता देखता है, तो हस्तक्षेप करता है। हालांकि, रिजर्व बैंक मुद्रा को लेकर कभी भी लक्षित स्तर नहीं देता है।
आरबीआई के वित्तीय बाजार संचालन विभाग के सौरभ नाथ, विक्रम राजपूत और गोपालकृष्णन एस के अध्ययन में कहा गया है कि 2008-09 के वैश्विक वित्तीय संकट के दौरान भंडार 22 प्रतिशत कम हुआ था। यूक्रेन-रूस युद्ध के बाद उत्पन्न उतार-चढ़ाव के दौरान इसमें केवल छह प्रतिशत की कमी आई है। अध्ययन में कहा गया है कि इसमें व्यक्त विचार लेखकों के हैं और यह कोई जरूरी नहीं है कि यह केंद्रीय बैंक की सोच से मेल खाए।
रिजर्व बैंक विदेशी विदेशी मुद्रा मुद्रा बाजार क्या है? मुद्रा भंडार को लेकर अपने हस्तक्षेप उद्देश्य को प्राप्त करने में सफल रहा है। यह विदेशी मुद्रा भंडार में घटने की कम दर से पता चलता है। अध्ययन के अनुसार, निरपेक्ष रूप से 2008-09 के वैश्विक वित्तीय संकट के कारण मुद्रा भंडार में 70 अरब अमेरिकी डॉलर की गिरावट आई। जबकि कोविड-19 अवधि के दौरान इसमें 17 अरब डॉलर की ही कमी हुई। वहीं रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण इस वर्ष 29 जुलाई तक 56 अरब डॉलर की कमी आई है।
अध्ययन में कहा गया है कि उतार-चढ़ाव को प्रभावित करने वाले प्रमुख तत्वों में ब्याज दर, मुद्रास्फीति, सरकारी कर्ज, चालू खाते का घाटा, जिंसों पर निर्भरता राजनीतिक स्थिरता के साथ-साथ वैश्विक स्तर पर घटनाक्रम शामिल हैं।
लगातार सातवीं बार गिरावट के साथ सामने आए विदेशी मुद्रा भंडार और स्वर्ण भंडार के आंकड़े
राज एक्सप्रेस। देश में जितना भी विदेशी मुद्रा भंडार और स्वर्ण भंडार जमा होता है, उसके आंकड़े समय-समय पर भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) द्वारा जारी किए जाते हैं। इन आंकड़ों में उतार-चढ़ाव होता रहता है, लेकिन पिछले कुछ समय से इसमें लगातार गिरावट ही दर्ज की जा रही है। हालांकि, बीच में विदेशी मुद्रा भंडार (Foreign Exchange Reserves) में कुछ बढ़त दर्ज की गई थी। वहीं, एक बार फिर इसमें बड़ी गिरावट दर्ज की गई है। उधर स्वर्ण भंडार में भी इस बार गिरावट दर्ज हुई है। इस बात का खुलासा RBI द्वारा जारी किए गए ताजा आंकड़ों से हुआ है। बता दें, यदि विदेशी मुद्रा परिस्थितियों में बढ़त दर्ज की जाती है तो, कुल विदेशी विनिमय भंडार में भी बढ़त दर्ज होती है।
विदेशी मुद्रा भंडार के ताजा आंकड़े :
भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) द्वारा जारी ताजा आंकड़ों के अनुसार, भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 22 अप्रैल 2022 समाप्त सप्ताह में 3.271 अरब डॉलर घटकर 600.423 अरब डॉलर पर आ गिरा है। जबकि, इससे पहले 15 अप्रैल 2022 समाप्त सप्ताह में 31.1 करोड़ डॉलर घटकर 603.694 अरब डॉलर पर आ गिरा था। वहीं, उससे पहले भी 8 अप्रैल 2022 को समाप्त सप्ताह में इसमें 2.471 करोड़ डॉलर की गिरावट ही देखने मिली थी और महीने की शुरुआत विदेशी मुद्रा मुद्रा बाजार क्या है? में यानी 1 अप्रैल, 2022 को समाप्त सप्ताह में 11.173 अरब डॉलर घटकर 606.475 अरब डॉलर पा आ गिरा है। जबकि, 25 मार्च 2022 को समाप्त सप्ताह में 2.03 अरब डॉलर घटकर 617.648 अरब डॉलर पर पहुंच गया था। बता दें, विदेशी मुद्रा भंडार में लगातार सातवीं बार गिरावट दर्ज हुई है।
गोल्ड रिजर्व की वैल्यू :
बताते चलें, भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) द्वारा जारी ताजा आंकड़ों के अनुसार, भारत के गोल्ड रिजर्व की वैल्यू में भी पिछले कुछ समय से गिरावट दर्ज की गई थी, लेकिन अब समीक्षाधीन सप्ताह में गोल्ड रिजर्व की वैल्यू 3.77 करोड डॉलर घटकर42.768 अरब डॉलर पर जा पहुंची हैं। हालांकि, इससे पहले भी गोल्ड रिजर्व में गिरावट ही दर्ज की गई थी। रिजर्व बैंक (RBI) ने बताया कि, आलोच्य सप्ताह के दौरान IMF के पास मौजूद भारत के भंडार में मामूली वृद्धि हुई। बता दें, विदेशी मुद्रा संपत्तियों (FCA) में आई गिरावट के चलते विदेशी मुद्रा भंडार में गिरावट आई है। आंकड़ों के अनुसार, शुक्रवार को समाप्त सप्ताह में FCA 2.835 अरब डॉलर घटकर 533.933 अरब डॉलर रह गया। RBI के आंकड़ों के अनुसार, विदेशी मुद्रा परिस्थितियों में बढ़त दर्ज होने की वजह से कुल विदेशी विनिमय भंडार में बढ़त हुई है और विदेशी मुद्रा परिसंपत्तियां, कुल विदेशी मुद्रा भंडार का एक अहम भाग मानी जाती हैं।
आंकड़ों के अनुसार IMF :
रिजर्व बैंक (RBI) के साप्ताहिक आंकड़ों पर नजर डालें तो, विदेशीमुद्रा परिसंपत्तियां, कुल विदेशी मुद्रा भंडार का अहम हिस्सा होती हैं। बता दें, विदेशी मुद्रा परिसंपत्तियों में बढ़कर होने की वजह से मुद्रा भंडार में बढ़त दर्ज की गई है। इस प्रकार अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष (IMF) में देश का मुद्रा भंडार 1.6 करोड़ डॉलर घटकर 5.086 अरब डॉलर पर पहुंच गया। जबकि, IMF में देश का विशेष आहरण अधिकार (SDR) 3.3 करोड़ डॉलर घटकर 18.662 अरब डॉलर पर आ पंहुचा है।
क्या है विदेशी मुद्रा भंडार ?
विदेशी मुद्रा भंडार देश के रिजर्व बैंक ऑफ़ इंडिया द्वारा रखी गई धनराशि या अन्य परिसंपत्तियां होती हैं, जिनका उपयोग जरूरत पड़ने पर देनदारियों का भुगतान करने में किया जाता है। पर्याप्त विदेशी मुद्रा भंडार एक स्वस्थ अर्थव्यवस्था के लिए काफी महत्वपूर्ण होता है। इसका उपयोग आयात को समर्थन देने के लिए आर्थिक संकट की स्थिति में भी किया जाता है। कई लोगों को विदेशी मुद्रा भंडार में बढ़ोतरी का मतलब नहीं पता होगा तो, हम उन्हें बता दें, किसी भी देश की अर्थव्यवस्था के लिए विदेशी मुद्रा भंडार में बढ़ोतरी अच्छी बात होती है। इसमें करंसी के तौर पर ज्यादातर डॉलर होता है यानि डॉलर के आधार पर ही दुनियाभर में कारोबार किया जाता है। बता दें, इसमें IMF में विदेशी मुद्रा असेट्स, स्वर्ण भंडार और अन्य रिजर्व शामिल होते हैं, जिनमें से विदेशी मुद्रा असेट्स सोने के बाद सबसे बड़ा हिस्सा रखते हैं।
विदेशी मुद्रा भंडार के फायदे :
विदेशी मुद्रा भंडार से एक साल से अधिक के आयात खर्च की पूर्ति आसानी से की जा सकती है।
अच्छा विदेशी मुद्रा आरक्षित रखने वाला देश विदेशी व्यापार का अच्छा हिस्सा आकर्षित करता है।
यदि भारत के पास भुगतान के लिए पर्याप्त विदेशी मुद्रा उपलब्ध है तो, सरकार जरूरी सैन्य सामान की तत्काल खरीदी का निर्णय ले सकती है।
विदेशी मुद्रा बाजार में अस्थिरता को कम करने के लिए विदेशी मुद्रा भंडार की प्रभाव पूर्ण भूमिका होती है।
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2 साल के निचले स्तर पर पहुंचा विदेशी मुद्रा भंडार, जानिए देश की सेहत पर क्या असर डालेगा?
भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के शुक्रवार को जारी साप्ताहिक आंकड़ों के अनुसार, 19 अगस्त को समाप्त सप्ताह के दौरान विदेशी मुद्रा भंडार विदेशी मुद्रा मुद्रा बाजार क्या है? में आई गिरावट का मुख्य कारण फॉरेन रिजर्व असेट्स (एफसीए) और गोल्ड रिजर्व्स का कम होना है.
देश का विदेशी मुद्रा भंडार 19 अगस्त को समाप्त सप्ताह में 6.687 अरब डॉलर घटकर 564.053 अरब डॉलर रह गया. यह अक्टूबर, 2020 के बाद पिछले दो साल का निम्नतम स्तर है. हालांकि, एक वैश्विक रेटिंग एजेंसी का कहना है यह पिछले 20 सालों के रिजर्व की तुलना में अधिक ही है.
इससे पहले 12 अगस्त को समाप्त सप्ताह में विदेशी मुद्रा भंडार 2.238 करोड़ डॉलर घटकर 570.74 अरब डॉलर रहा था. भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के शुक्रवार को जारी साप्ताहिक आंकड़ों के अनुसार, 19 अगस्त को समाप्त सप्ताह के दौरान विदेशी मुद्रा भंडार में आई गिरावट का मुख्य कारण फॉरेन रिजर्व असेट्स (एफसीए) और गोल्ड रिजर्व्स का कम होना है.
साप्ताहिक आंकड़ों के मुताबिक, आलोच्य सप्ताह में एफसीए 5.77 अरब डॉलर घटकर 501.216 अरब डॉलर रह गयी. डॉलर में अभिव्यक्त विदेशी मुद्रा भंडार में रखे जाने वाली फॉरेन रिजर्व असेट्स में यूरो, पाउंड और येन जैसी विदेशी मुद्रा मुद्रा बाजार क्या है? गैर-अमेरिकी मुद्राओं में मूल्यवृद्धि अथवा मूल्यह्रास के प्रभावों को शामिल किया जाता है.
आंकड़ों के अनुसार, आलोच्य सप्ताह में स्वर्ण भंडार का मूल्य 70.4 करोड़ डॉलर घटकर 39.914 अरब डॉलर रह गया. समीक्षाधीन सप्ताह में, अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष (आईएमएफ) के पास जमा विशेष आहरण अधिकार (एसडीआर) 14.6 करोड़ डॉलर घटकर 17.987 अरब डॉलर पर आ गया. जबकि आईएमएफ में रखे देश का मुद्रा भंडार भी 5.8 करोड़ डॉलर गिरकर 4.936 अरब डॉलर रह गया.
वहीं, विदेश में अमेरिकी मुद्रा की मजबूती और कच्चे तेल की कीमतों में तेजी के चलते अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपया सोमवार को शुरुआती कारोबार में 31 पैसे टूटकर अब तक के सबसे निचले विदेशी मुद्रा मुद्रा बाजार क्या है? स्तर 80.15 रुपये पर आ गया है. रुपया शुक्रवार को डॉलर के मुकाबले 79.84 पर बंद हुआ था. इससे पहले रुपये का ऑल टाइम लो 80.06 था.
जबकि विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (FPI) ने 1 अगस्त से 26 अगस्त तक भारतीय बाजार में 55,031 करोड़ रुपये का निवेश किया है. इक्विटी बाजार में, विदेशी फंड का प्रवाह 49,254 करोड़ रुपये रहा. यह एफपीआई की इस साल की अब तक की सबसे बड़ी मासिक खरीदारी होगी.
क्या होता है विदेशी मुद्रा भंडार?
विदेशी मुद्रा भंडार को किसी देश की हेल्थ का मीटर माना जाता है. इस भंडार में विदेशी करेंसीज, गोल्ड रिजर्व्स, ट्रेजरी बिल्स सहित अन्य चीजें आती हैं जिन्हें किसी देश की केंद्रीय बैंक या अन्य मौद्रिक संस्थाएं संभालती हैं. ये संस्थाएं पेमेंट बैलेंस की निगरानी करती हैं, मुद्रा की विदेशी विनिमय दर देखती हैं और वित्तीय बाजार स्थिरता बनाए रखती हैं.
विदेशी मुद्रा भंडार में क्या-क्या आता है?
आरबीआई अधिनियम और विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम, 1999 विदेशी मुद्रा भंडार को नियंत्रित करते हैं. इसे चार श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है. पहला और सबसे बड़ा घटक विदेशी मुद्रा संपत्ति है जो कि यह कुल पोर्टफोलियो का लगभग 80 फीसदी है. भारत अमेरिकी ट्रेजरी बिलों में भारी निवेश करता है और देश की विदेशी मुद्रा संपत्ति का लगभग 75 फीसदी डॉलर मूल्यवर्ग की सिक्योरिटीज में निवेश किया जाता है.
इसके बाद गोल्ड में निवेश और आईएमएफ से स्पेशल ड्राइंग राइट्स (एसडीआर) यानी विशेष आहरण अधिकार आता है. सबसे अंत में आखिरी रिजर्व ट्रेंच पोजीशन है.
विदेशी मुद्रा भंडार का उद्देश्य क्या है?
फॉरेन एक्सचेंज रिजर्व्स का सबसे पहला उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि यदि रुपया तेजी से नीचे गिरता है या पूरी तरह से दिवालिया हो जाता है तो आरबीआई के पास बैकअप फंड है. दूसरा उद्देश्य यह है कि यदि विदेशी मुद्रा की मांग में वृद्धि के कारण रुपये का मूल्य घटता है, तो आरबीआई भारतीय मुद्रा बाजार में डॉलर को बेच सकता है ताकि रुपये के गिरने की रफ्तार को रोका जा सके. तीसरा उद्देश्य यह है कि विदेशी मुद्रा का एक अच्छा स्टॉक अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देश के लिए एक अच्छी छवि स्थापित करता है क्योंकि व्यापारिक देश अपने भुगतान के बारे में सुनिश्चित हो सकते हैं.
क्या होगा असर?
अमेरिका स्थित रेटिंग एजेंसी एसएंडपी ग्लोबल रेटिंग्स (S&P Global Ratings) की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि उभरते बाजारों को खाद्य पदार्थों की अधिक कीमतों, अमेरिकी विदेशी मुद्रा मुद्रा बाजार क्या है? डॉलर के प्रभुत्व और टाइट फाइनेंशियल कंडीशंस से बड़े पैमाने पर बाहरी दबाव का सामना करना पड़ रहा है.
उसने कहा है कि इस मामले में भारत कोई अपवाद नहीं है. इन संकटों के साथ ही बड़े पैमाने पर राजकोषीय घाटे और घरेलू स्तर पर महंगाई की अधिक दर का भी सामना करना है. हालांकि, इन सबके बावजूद उसने भारत के हालात को अन्य देशों की तुलना में बेहतर करार दिया है.
सॉवरेन एंड इटरनेशनल पब्लिक फाइनेंश रेटिंग के डायरेक्टर एंड्र्यू वूड ने कहा कि हमने देखा है कि कोविड-19 महामारी शुरुआती दौर के बाद से भारत दुनिया का नेट क्रेडिटर यानी कर्जदाता बन गया है. इसका मतलब यह है कि भारत ने उन जै कठिनाइयों के खिलाफ स्टॉक तैयार कर लिया है, जिसका हम अभी सामना कर रहे हैं.
वहीं, विदेशी मुद्रा भंडार में कमी पर वह कहते हैं कि अगर इन रिजर्व्स को पिछले 20 सालों के रिजर्व्स से तुलना करेंगे तो मामूल अंतर से यह अधिक ही है. इसके अलावा, वुड ने कहा कि उन्हें उम्मीद है कि इस साल के अंत तक विदेशी मुद्रा भंडार मामूली रूप से लगभग 600 अरब डॉलर तक पहुंच जाएगा और अगले कुछ वर्षों में इसी के आसपास बरकरार रहेगा.