IPO क्या होता है?

आईपीओ की बुनियादी जानकारी
जब कोई कंपनी पहली बार जनता के पास निवेश के लिए प्रस्ताव लेकर जाती है, तो उसे आईपीओ या इनीशियल पब्लिक ऑफरिंग (प्रथम सार्वजनिक प्रस्ताव) कहा जाता है. जन साधारण के लिए कंपनी में निवेश करने का यह पहला मौका होता है. किसी भी नए निवेशक के शुरूआती प्रशनों में एक यह भी होता है कि दरअसल यह आईपीओ है क्या और इसमें निवेश कितना उचित है. डॉट कॉम बबल के दौरान कई निवेशकों ने आईपीओ में शेयर खरीद पहले दिन ही उन्हें ऊँचें दामों पर बेच भारी मुनाफ़ा कमाया। लेकिन इस बुलबुले के फटते पर इन कंपनियों में से अधिकतर ने अपने दीर्घकालिक निवेशकों को निराश किया, और आईपीओ का आकर्षण जन साधारण के लिए समाप्त हो गया. निचे दिए चार पर्मुख भागों IPO क्या होता है? में हम आपको आईपीओ की बुनियादी जानकारी से अवगत कराएंगे.
आईपीओ क्या है
आईपीओ क्या है और उसका जारी करने वाली कंपनी पर क्या असर पड़ता है?
कोई कंपनी आईपीओ क्यों लाती है?
कंपनी के पब्लिक होने के पीछे क्या कारण रहते हैं?
आईपीओ में निवेश करें या नहीं?
आईपीओ कैसे लाया जाता है, अंडरराइटर का इसमें क्या योगदान रहता है और रेड हेरिंग प्रॉस्पेक्टस क्या होता है? फ्लिपिंग और लॉक-अप पीरियड क्या होते हैं?
स्पिन-ऑफ व ट्रैकिंग स्टॉक
स्पिन-ऑफ और ट्रैकिंग स्टॉक परंपरागत आईपीओ से जुड़े हैं. इस भाग में हम इनकी चर्चा करेंगे.
आईपीओ क्या है
कोई कंपनी IPO क्या होता है? जब IPO क्या होता है? पहली बार अपना स्टॉक सार्वजनिक रूप से खरीदने के लिए के लिए उपलब्ध कराती है तो उसे आईपीओ कहते हैं. आईपीओ से पहले कंपनी को “प्राइवेट” (निजी) माना जाता है और निवेशक आमतौर पर संस्थापकों, उनके परिवारों और मित्रों और व्यावसायिक निवेशकों जैसे वेंचर कैपिटलिस्ट्स और एंजेल इन्वेस्टर्स तक सीमित होते है. वैसे तो वैयक्तिक निवेशक प्राइवेट कंपनी के संस्थापकों से निवेश करने के लिए संपर्क कर सकते हैं, पर वे बेचने से इनकार भी कर सकते हैं. दूसरी ओर, आईपीओ के साथ ही कंपनी “पब्लिक” (सार्वजनिक) हो जाती है और उसके शेयर का कम-से-कम एक हिस्सा तो स्टॉक एक्सचेंजों पर उपलब्ध रहता है।
पब्लिक होने पर कंपनी को निजी उद्यमों को मिलने वाले लाभ छोड़ने पड़ते हैं. उदाहरणार्थ, प्राइवेट कंपनी को अपनी वित्तीय और लेखांकन से जुडी अधिकतर जानकारी का खुलासा नहीं करना पड़ता. वहीँ पब्लिक कंपनी को सेबी के दिशानिर्देशों के अनुरूप इस जानकारी को सर्वसाधारण के लिए उपलब्ध कराना होना है। इससे कंपनी के कानूनी और लेखांकन से जुड़े खर्च बढ़ जाते हैं. साथ ही प्रबंधन का महत्वपूर्ण समय शेयरधारकों तक कंपनी से जुडी सारी जानकारी देने में लगता है. इसके अलावा, प्रिंसिपल-एजेंट की समस्या खड़ी हो जाती है और नए शेयरधारकों को मिले मतदान अधिकार के चलते संस्थापकों का नियंत्रण भी छूटने लगता है. कानूनी व विनियामक माप-दंड भी पब्लिक कंपनी के लिए ही अधिक हैं.
कोई कंपनी आईपीओ क्यों लाती है?
इस IPO क्या होता है? सबके बावजूद कंपनियां पब्लिक क्यों होना चाहती हैं? इसका मूल कारण है पब्लिक होने से निवेश करने के लिए जुटाई पूंजी की लागत में आने वाली भारी कमी. यों भी ऋण लेकर या नए निजी निवेशकों के माध्यम से जितना धन जुटाया जा सकता है उससे कई अधिक स्टॉक एक्सचेंज के माध्यम से मिल जाता है, और इस पर ब्याज भी नहीं देना पड़ता. इसके अलावा, बढ़ी हुई जांच और विनियमों के चलते कंपनी की क्रेडिट रेटिंग बेहतर हो जाती है और उनके लिए ऋण पर लगाने वाले ब्याज दर कम हो जाती है.
जब किसी कंपनी के शेयर सार्वजनिक रूप से उपलब्ध होते हैं, तो निवेशकों के लिए द्रवत्व - अर्थात शेयर को नकदी में बदलने की सक्षमता - बढ़ जाती है. इससे कंपनी में निवेश का मूल्यांकन भी आसान हो जाता है क्योंकि यह पता चल जाता है कि शेयर की किस कीमत पर कितने खरीदार उपलब्ध हैं. इन सब से एम्प्लोई स्टॉक ऑप्शन (ईएसओपी) आकर्षक हो जाते हैं और कंपनी शीर्ष प्रतिभा को अपने साथ जोड़े रख पाती हैं.
प्रारंभिक निवेशकों और संस्थापकों के लिए आईपीओ अपनी निवेश से कुछ कमाने का पहला मौका होता है. उन्होंने एक नई कंपनी में निवेश कर जो जोखिम लिया था उसका प्रतिफल अब कुछ शेयर बेच कर उन्हें मिलता है.
आईपीओ में निवेश करें या नहीं?
प्रारंभिक निवेशकों के लिए आईपीओ अति महत्वपूर्ण होता है. इस कारण कोई भी कंपनी तभी इस ओर मुख करती है जब उन्हें इससे सर्वाधिक धन संचय की आशा हो. यही कारण हैं कि आईपीओ ऐसे समय ही लाया जाता है जब कंपनी का भविष्य उज्वल हो और निवेशक इस विकास में प्रतिभागी बनने को उत्साहित हों. आईपीओ के समय निवेशकों को शेयर “आईपीओ प्राइस” पर मिल जाते हैं - आमतौर पर यह शेयर की स्टॉक मार्किट में शुरुआरी कीमत से कम होती है. जब किसी आईपीओ में शेयर की मांग उपलब्ध कराए गए शेयरों से अधिक होती है तो उसे “ओवरसब्सक्राइबड” कहा जाता है. ऐसे आईपीओ में वैयक्तिक निवेशकों के लिए शेयर जुटाना बहुत कठिन हो जाता है. ऐसा क्यों होता है जानने के लिए हमें “अंडरराइटिंग” को समझना होगा.
एक कंपनी के ऋण अथवा इक्विटी सेल द्वारा पूँजी जुटाने के लिए जो तैयारी करनी पड़ती है उसे “अंडरराइटिंग” कहते हैं. आईपीओ लाने का निर्णय लेने के पश्चात कंपनी किसी इन्वेस्टमेंट बैंक को अपना “अंडरराइटर” बनाती हैं. इससे पहले उन्हें एक प्रोफेशनल प्रबंधन टीम को कंपनी का मार्गदर्शन करने के लिए नियुक्त करना होता है. इस प्रक्रिया के लिए लेखापरीक्षित वित्तीय विवरण कि आवश्यकता पड़ती है. कंपनी को
अधिग्रहण विरोधी मापदंड भी बना लेने चाहिए, और इंडिपेंडेंट बोर्ड ऑफ़ डायरेक्टर्स पर केन्द्रित कॉर्पोरेट गवर्नेंस विधि भी इंगित कर लेनी चाहिए. यह भी महत्वपूर्ण है कि बाज़ार का रुझान अनुकूल हो और आईपीओ मंदी के दौर में न आए. साथ ही कंपनी सारे विनियमनों पर खरी उतरनी चाहिए जिससे कोई कानूनी मुश्किल न आ पाए.
फिर इन्वेस्टमेंट बैंक के साथ बैठकर संस्थापक यह तय करते हैं कि पूँजी कितनी इक्कठी की जाएगी, ऋण अथवा इक्विटी में से क्या बाज़ार में उपलब्ध कराया जाएगा और डील कि संरचना कैसी होगी. “फर्म कमिटमेंट” में अंडरराइटर गारंटी देता है कि एक निश्चित न्यूनतम राशि जुटाई जाएगी और उस तक पहुँचाने के लिए बचे हुए शेयर अंडरराइटर खरीदेगा. दूसरी ओर, “बेस्ट एफर्ट अग्रीमेंट” में अंडरराइटर सिक्यूरिटी बेचता भर है, कोई गारंटी नहीं देता कि कितनी राशि जुट पाएगी. आम तौर पर, एक इन्वेस्टमेंट बैंक पूरे समझौते का जोखिम अकेले उठाने के बजाए अंडरचिटर्स का एक कंसोर्टियम बनाता है और कुल शेयर इनमें बाँट दिए जाती हैं. इसके अलावा हर स्टॉक एक्सचेंज के अपने कुछ मापदंड भी होते हैं जिन्हें लिस्टिंग से पहले पूरा करना आवश्यक होता है.
डील पर सारे निर्णयों पर एकमत होने के पश्चात मुख्य अंडररायटर इस प्रस्ताव से सम्बंधित सभी विवरण और वित्तीय IPO क्या होता है? विवरणों, जैसे प्रबंधन पृष्ठभूमि, एकत्रित राशि का उपयोग, अंदरूनी हिस्सेदारी और कंपनी का प्रस्तावित टिकर प्रतीक भर ड्राफ्ट आवेदन तैयार करता है. यह आवेदन रेगुलेटर को प्रस्तुत करने पर वह एक “कूलिंग ऑफ” अवधि प्रस्तावित तय करते हैं जिसमें सारी सामग्री की जांच करता है. तत्पश्चात प्रभावी तिथि जिस पर जन साधारण के सामने प्रस्ताव रखा जाएगा तय की जाती है.
“कूलिंग ऑफ” अवधि में अंडरराइटर “रेड हेरिंग प्रॉस्पेक्टस” बनाता है. यह एक प्रारंभिक प्रॉस्पेक्टस होता है जिसमें प्रस्ताव मूल्य और प्रभावी तिथि को छोड़कर कंपनी व प्रस्ताव के बारे में सारी जानकारी होती है. इस दस्तावेज़ का प्रयोग अंडररायटर और कंपनी द्वारा प्रस्तावित आईपीओ को निवेशकों के सम्मुख मार्केट करने के लिए होता है. उनका उद्देश्य इस प्रस्ताव का प्रचार और रुचि का निर्माण करना होता है। वे अक्सर संस्थागत निवेशकों के लिए में “रोड शो” पर जाते हैं और शेयरों की शुरुआती मांग का आंकते हैं।
आईपीओ फुल फॉर्म : आओ जानें IPO का मतलब क्या होता है…
आईपीओ क्या है ? Initial public offering वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा एक निजी कंपनी अपने स्टॉक को आम जनता को बेचकर सार्वजनिक हो सकती है। एक आईपीओ बाजार से धन जुटाने का एक साधन है। आईपीओ के आवंटित शेयरों को लागू करने और पाने वाले निवेशक कंपनी के शेयरधारक (हिस्से के मालिक) बन जाते हैं।
कंपनियां सार्वजनिक तौर पर नए शेयर जारी करके आईपीओ की मदद से इक्विटी कैपिटल जुटा सकती हैं या मौजूदा शेयरधारक बिना किसी नई पूंजी जुटाए जनता को अपने शेयर बेच सकते हैं।
Q1 : आईपीओ के लिए आवेदन करने के लिए कौन पात्र है?
Ans : कोई भी वयस्क जो कानूनी अनुबंध में प्रवेश करने के लिए सक्षम है, आईपीओ के लिए आवेदन कर सकता है। आईपीओ में निवेश के लिए डीमैट खाता होना आवश्यक है क्योंकि आजकल सभी आबंटन केवल डीमैट रूप में किए जाते हैं।
Q2 :क्या मुझे आईपीओ में निवेश के लिए ट्रेडिंग अकाउंट की भी आवश्यकता है?
Ans : तकनीकी रूप से, आपको आईपीओ में आवेदन करने के लिए ट्रेडिंग खाते की आवश्यकता नहीं है। डीमैट खाता (डीमैट खाता पूर्ण रूप एक डीमैटेरलाइज्ड खाता है) अकेले पर्याप्त होगा।
Q3 : आईपीओ कितने दिनों के लिए खुला रखा जाता है?
Ans : आमतौर पर, कंपनी आईपीओ को 3-4 दिनों की अवधि के लिए खुला रखेगी ताकि निवेशक आईपीओ में आवेदन कर सकें। अंतिम दिन ट्रेडिंग बंद होने से पहले सभी वैध एप्लिकेशन को सिस्टम में लॉग इन करना होगा।
The Author
Aryan Sharma
आर्यन शर्मा Jobalerthindi.com के संपादक की भूमिका में दिखते हैं और यह आपको स्नातक और स्नातकोत्तर प्रवेश परीक्षा से संबंधित इंजीनियरिंग, प्रबंधन और चिकित्सा क्षेत्रों में प्रवेश के लिए एंट्रेंस एग्जाम (Entrance Exam) के बारे में विस्तृत जानकारी देते हैं।
IPO क्या है, IPO Full Form – What is IPO in Hindi
अगर आप शेयर बाजार या म्यूचूअल फंड में इन्वेस्ट करते हैं या इनके बारे में जानकारी जुटा रहे हैं तो आपने कहीं न कहीं से आईपीओ (IPO) का नाम अवश्य सुना होगा लेकिन क्या आप जानते हैं IPO क्या होता है ipo का फुल फॉर्म क्या है What is IPO in Hindi , इस पोस्ट में इन सभी के विषय में विस्तार से जानकारी दी गई है।
IPO क्या है, IPO Full Form – What is IPO in Hindi
IPO का पूरा नाम Initial public offering होता है जिसे हिन्दी में प्रारंभिक सार्वजनिक प्रस्ताव कहा जाता है।
अगर आप शेयर बाजार के बारे में जानकारी रखते हैं तो यह तो आप जानते ही होंगे की शेयर बाजार IPO क्या होता है? या स्टॉक मार्केट में कम्पनियों के शेयर खरीदे और बेचे जाते हैं। लेकिन जब एक कंपनी अपने स्टॉक या शेयर को पहली बार जनता के लिए जारी करता है तो उसे आईपीओ, IPO क्या होता है? इनीशियल पब्लिक ऑफरिंग कहते हैं। अर्थात जब कोई कंपनी पहली बार अपने शेयर को शेयर बाजार में खरीदने के लिए उपलब्ध कराती है उसे आईपीओ कहते है।
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शेयर बाज़ार की हर गिरावट को थामने के लिए भारत सरकार जिस एलआइसी पर भरोसा करती थी. उसी एलआइसी का आइपीओ आ रहा है और हर ख़ास ओ IPO क्या होता है? आम के लिए मौक़ा है कि वो अब इस कंपनी का मालिक, भागीदार या शेयर होल्डर बन जाए जो इस देश की सबसे बड़ी इंश्योरेंस कंपनी है नहीं, भरोसे का सबसे बड़ा प्रतीक भी है.
एलआइसी का प्रतीक चिन्ह यानी लोगो है दो हाथ, तेज़ हवा से दिए को बचाने की मुद्रा में आसपास आधे बंधे और आधे खुले हुए दो हाथ. और उसके नीचे IPO क्या होता है? लिखा है - योगक्षेमं वहाम्यहम्!
यह जीवन बीमा निगम का सूत्र वाक्य है. हालांकि अब ज्यादा मशहूर टैग लाइन है - ज़िंदगी के साथ भी, ज़िंदगी के बाद भी. लेकिन आज भी एलआइसी के लोगो के नीचे आप यह पुराना सूत्र वाक्य लिखा पा सकते हैं. यह गीता के एक श्लोक का हिस्सा है.
गीता के रूप में योगेश्वर कृष्ण ने अर्जुन को जो उपदेश दिया उसके नवें अध्याय में से यह छोटा सा हिस्सा जिसने भी जीवन बीमा निगम के लिए चुना उसकी तारीफ़ करनी चाहिए. इसका अर्थ है कि मैं तुम्हारी पूरी कुशलता का ज़िम्मा लेता हूँ. यानी आपकी पूरी चिंता का बोझ मैं उठा लूंगा. जो तुम्हारे पास है उसकी रक्षा करूंगा और जो नहीं है वो तुम्हें दिलवाऊंगा.
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सबकी नज़रें एलआईसी आइपीओ पर
भारत में करोड़ों लोग एलआइसी पर ऐसा ही भरोसा करते आए हैं. 1956 में देश में बीमा कारोबार का राष्ट्रीयकरण हुआ और लाइफ इंश्योरेंस यानी जीवन बीमा का पूरा कारोबार समेटकर एलआइसी के हवाले किया गया. तब से ही भारत में जीवन बीमा का मतलब एलआइसी ही होता रहा है. बहुत से लोग बोलचाल में कहते भी हैं कि एलआइसी करवा लिया. यानी बीमा करवा लिया.
लेकिन इस वक़्त एलआइसी का मतलब शेयर बाज़ार और सरकार के लिए कुछ और ही है. और शेयर बाज़ार से जुड़े या जुड़ने की इच्छा रखने वाले लोगों के लिए भी. फिर भले ही वो इन्वेस्टमेंट की जर्नी नई शुरू करने वाले हों या फिर बरसों से शेयर बाज़ार में जमे हुए पुराने खिलाड़ी.
सब इंतज़ार में हैं, देश की सबसे बड़ी बीमा कंपनी एलआइसी यानी भारतीय जीवन बीमा निगम के आइपीओ के. और अब यह इंतज़ार खत्म हो रहा है. हालांकि जितना इंतज़ार हुआ, उसके मुक़ाबले फल उतना मीठा नहीं है.
एलआइसी देश की सबसे बड़ी बीमा कंपनी होने के साथ ही देश के सबसे बड़े ज़मींदारों में से भी एक है. देश के हर बड़े छोटे शहर में इसके पास प्राइम प्रॉपर्टी है. पैसा भी इतना है कि यह शेयर बाज़ार को चढ़ाने और गिराने का दम रखती है.
जेफ्रीज़ ने कुछ समय पहले एक रिसर्च नोट निकाला, जिसके हिसाब से लिस्टिंग के बाद एलआइसी की कुल हैसियत 261 अरब डॉलर के क़रीब हो सकती है. सरकार कह चुकी थी कि वो इसका पाँच से 10 पर्सेंट हिस्सा ही बेचने के लिए आइपीओ ला सकती है.
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26 अरब डॉलर IPO क्या होता है? के शेयर
दो देश,दो शख़्सियतें और ढेर सारी बातें. आज़ादी और बँटवारे के 75 साल. सीमा पार संवाद.
10 पर्सेंट भी बिका तो वह 26 अरब डॉलर यानी क़रीब एक लाख 92 हज़ार करोड़ रुपए का इशू होता.
हालांकि, यह बात साफ़ हो चुकी थी कि सरकार एक बार में एलआइसी का पाँच पर्सेंट से ज़्यादा हिस्सा नहीं बेच पाएगी. पांच पर्सेंट का मतलब भी था कि सरकार एलआइसी के 31 करोड़ 72 हज़ार तक शेयर बाज़ार में बेचने के लिए उतारेगी.
इन शेयरों का भाव क्या रखा जाता है, इससे तय होता है कि सरकार को इससे कितना पैसा मिलेगा.
लेकिन तब अनुमान लग रहे थे कि यह रक़म 50 हज़ार करोड़ से एक लाख करोड़ रुपए तक हो सकती है. मगर अब यह सारे अनुमान बेमानी हो चुके हैं. कंपनी का सिर्फ़ साढ़े तीन पर्सेंट हिस्सा बिक्री के लिए आ रहा है और उससे भी सरकार कुल मिलाकर बीस हज़ार 500 करोड़ रुपए से कुछ ऊपर रकम जुटाने की तैयारी में है.
साफ है कि पुराने सारे अनुमानों के मुक़ाबले यह रक़म बहुत कम है और इसका सीधा मतलब तो यही है कि सरकार एलआइसी की हिस्सेदारी काफ़ी सस्ते में बेच रही है. आख़िर सरकार ऐसा क्यों कर रही है?
इसका सीधा जवाब देना तो मुश्किल है लेकिन इतना साफ़ है कि सरकार अब इस मामले को टालने के मूड में नहीं है. जब पहली बार एलआइसी में हिस्सेदारी बेचने का एलान हुआ, तब से अब तक काफ़ी समय बीत चुका है और अब कोरोना संकट और यूक्रेन युद्ध की वजह से एक बार फिर शेयर बाज़ार की परिस्थितियां डांवाडोल सी लग रही हैं.
ऐसे में सरकार के पास दो रास्ते थे. या तो इस इशू को टाल दे और अच्छे दिन आने का इंतज़ार करे. या फिर आइपीओ का आकार और क़ीमत वगैरह ऐसे तय करे कि निवेशकों को दोबारा सोचने की ज़रूरत न रह जाए. शायद यही वजह है कि सरकार ने इस आइपीओ का आकार पाँच पर्सेंट से भी घटाकर साढ़े तीन पर्सेंट पर पहुँचा दिया.
क्या सस्ते में शेयर बेच रही है सरकार
सरकार इससे जितनी रक़म जुटाना चाहती थी अब उससे आधे से भी कम पैसा ही उसे मिल पाएगा. लेकिन इसका मतलब क्या यह नहीं है कि वो कंपनी के शेयर सस्ते में बेच रही है और इसका मतलब यह भी हुआ कि यह एक मौक़ा है, अच्छे शेयर सस्ते में पाने IPO क्या होता है? का?
एंकर इन्वेस्टरों के लिए एलआइसी का आइपीओ दो मई को शुरू हो चुका है और ज़रूरत से दो गुना यानी लगभग तेरह हज़ार करोड़ रुपए तक की अर्जियां एंकर इन्वेस्टरों से आ चुकी हैं.
बाक़ी बचे शेयरों में एलआइसी के पॉलिसीधारकों के लिए दो करोड़ 20 लाख शेयर और एलआइसी के कर्मचारियों के लिए 15 लाख शेयरों का कोटा अलग रखा गया है.
जबकि रीटेल निवेशकों के लिए कुल कोटा लगभग 6.91 करोड़ शेयरों का है. पॉलिसीधारकों में जबर्दस्त उत्साह है और ख़बर है कि 6.48 करोड़ पॉलिसी धारकों ने अपनी पॉलिसी पैन कार्ड से जुड़वा ली हैं.
अगर इनमें से आधे भी आइपीओ में एक लॉट यानी पंद्रह शेयरों के लिए एप्लीकेशन लगाते हैं तो 48 करोड़ से ज्यादा शेयरों के लिए अर्जी लग चुकी होंगी जबकि आइपीओ का कुल आकार ही 22 करोड़ शेयरों से कुछ ऊपर का है.
इसके बावजूद बाज़ार में यह आशंका जताई जा रही है कि रीटेल में तो जितने लोग भी अर्जी लगाएंगे उनको शेयर मिलने लगभग तय ही हैं. इसका दूसरा मतलब यह है कि ऐसे में लिस्टिंग के वक़्त भाव बढ़ने की या तगड़ा फ़ायदा होने की गुंजाइश लगभग नहीं है.
इसका अर्थ यह क़तई नहीं है कि एलआइसी का शेयर ख़रीदने लायक नहीं है. बल्कि यह कि एलआइसी के आइपीओ में अर्ज़ी लगाने से पहले सोच समझकर फ़ैसला करना ज़रूरी है ताकि अगर शेयर मिल जाएं तो आपको पक्का पता हो कि आपको इनका करना क्या है और कितने समय इन्हें अपने पास ही रखना है.
LIC IPO में लगाया पैसा तो लिस्टिंग पर एग्जिट करें या रुके? जानिए, क्या है मार्केट एक्सपर्ट की राय
विशेषज्ञों का कहना है कि अगर आप निवेशक हैं तो लंबी अवधि के लिए फायदेमंद होगा। लंबी अवधि में एलआईसी के शेयर में शानदार रिटर्न मिल सकता है।
Edited by: Alok Kumar @alocksone
Published on: May 09, 2022 15:39 IST
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LIC IPO में निवेश करने का आज आखिरी दिन है। 17 मई को शेयर बाजार में यह आईपीओ सूचीबद्ध होगा। ऐसे में अभी से इस आईपीओ के प्रदर्शन को लेकर कयास लगाए जा रहे हैं। अगर, आपने भी एलआईसी के आईपीओ में निवेश किया है तो मन में यह सवाल उठ रहा होगा कि अगर शेयर अलॉट होता है तो क्या करना चाहिए? क्या लिस्टिंग पर गेन मिले तो एग्जिट करना चाहिए या लंबी अवधि के लिए बने रहना चाहिए? आइए, जानते हैं कि इस मुद्दे पर क्या है बाजार के दिग्गज जानकारों की राय।
लंबी अवधि का लक्ष्य रखकर रुके रहना बेहतर
बाजार में गिरावट जारी है। इससे निवेशकों में डर है। हालांकि, एलआईसी में निवेश करने वाले निवेशकों को इस पर अभी ध्यान देने की जरूरत नहीं है। मार्केट के जानकारों का यह कहना है। विशेषज्ञों का कहना है कि अगर आप निवेशक हैं तो लंबी अवधि के लिए फायदेमंद होगा। लंबी अवधि में एलआईसी के शेयर में शानदार रिटर्न मिल सकता है। कंपनी का कारोबार और बाजार हिस्सेदारी बेहतरीन है। ऐसे में आने वाले समय में शेयर में तेजी देखने को मिलेगी। एक्सपर्ट्स का कहना है कि दो से तीन साल की अवधि में एलआईसी के शेयर अच्छा रिटर्न दे सकते हैं। आने वाले दिनों में कंपनी अपनी क्षमता में और भी बढ़ोतरी कर सकती है।
लिस्टिंग गेन की भी पूरी संभावना
शेयर बाजार केज्यादातर जानकारों का कहना है कि LIC में निवेश का नजरिया लॉन्ग टर्म के लिए रखें। हालांकि, विशेषज्ञों का कहना है कि वैल्युएशन कम होने के कारण इस आईपीओ मेंलिस्टिंग गेन की भी पूरी संभावना है। हालांकि, बंपर लिस्टिंग गेन मिलने की उम्मीद नहीं है। विशेषज्ञों का कहना है कि ग्रे मार्केट में सोमवार को एलआईसी के आईपीओ पर प्रीमियम 36 रुपये है, जो कल के ग्रे मार्केट प्रीमियम (जीएमपी) 60 रुपये से 24 रुपये कम है। उन्होंने कहा कि 92 रुपये के स्तर तक बढ़ने के बाद, एलआईसी आईपीओ जीएमपी लगातार कमजोर हुआ है। इससे जबरदस्त लिस्टिंग की उम्मीद नहीं है। हां, अगर कोई मीडियम टर्म में गेन चाहता है तो इसकी भी पूरी-पूरी संभावना दिख रही है। बाजार में करेक्शन का दौर चल रहा है जिसके कारण कई अन्य स्टॉक भी अट्रैक्टिव रेट्स पर मिल रहे हैं। निवेशकों को ग्रोथ स्टॉक की जगह वैल्यु स्टॉक पर फोकस करना चाहिए।