कमजोर डॉलर

रुपया कमजोर नहीं बल्कि डॉलर मजबूत हो रहा है – वाशिंगटन डीसी में बोलीं निर्मला सीतारमण तो लोगों ने किए ऐसे कमेंट
वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा है कि डॉलर तेजी से मजबूत हो रहा है इसलिए वे करेंसीज कमजोर होंगी, जिसकी तुलना में ये मजबूत हो रहा है।
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण (Express Photo by Tashi Tobgyal)
डॉलर के मुकाबले रूपये में हो रही रिकॉर्ड गिरावट के बाद सरकार पर विपक्ष हमला कर रहा है। पीएम मोदी के पुराने भाषण के जरिये ही उनपर तंज कसा जा रहा है, जबकि मोदी सरकार का कहना है कि रूपये में गिरावट नहीं हो रही है बल्कि डॉलर मजबूत हो रहा है और अन्य देशों की करेंसी की मुकाबले रूपया अच्छी स्थिति में है। वित्त मंत्री ने कहा कि आरबीआई (RBI) रुपये को नीचे जाने से रोकने की पूरी कोशिश कर रहा है।
रूपये की गिरावट पर बोलीं वित्त मंत्री
निर्मला सीतारमण अमेरिका की अपनी आधिकारिक यात्रा पर हैं। वाशिंगटन डीसी में एक प्रेस कांफ्रेंस रिपोर्टर ने उनसे रुपये में हो रही गिरावट को लेकर सवाल किया तो वित्त मंत्री ने कहा कई मैं इसे ऐसे नहीं देखती हूं कि रुपया गिर रहा है, बल्कि ऐसे देखती हूं कि डॉलर मजबूत हो रहा है। डॉलर तेजी से मजबूत हो रहा है इसलिए वे करेंसीज कमजोर होंगी, जिसकी तुलना में ये मजबूत हो रहा है।
वित्त मंत्री के बयान पर लोगों की प्रतिक्रियाएं
वित्त मंत्री के इस बयान के सामने आने के बाद सोशल मीडिया पर लोग अपनी प्रतिक्रियाएं दे रहे हैं। प्रभाकर मिश्र ने लिखा कि फिर तो ठीक है! डॉलर को मजबूत होने से हम कैसे रोक सकते हैं। रोहिणी सिंह ने लिखा कि ‘ठंड नहीं बढ़ रही, हमारी सहने की क्षमता कम हो रही है’ की अपार सफलता के बाद! कुलदीप कादयान ने लिखा कि लो जी हम सबकी नजर में ही फर्क है, रुपया कमजोर नहीं मजबूत है वो तो डॉलर थोड़ा ज्यादा तगड़ा हो गया तो क्या करें, कोई नहीं अपने रुपए को थोड़ा सर्दियों में घी खिलाते हैं ताकि तगड़ा हो जाये।
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आप सांसद राघव चड्ढा ने लिखा ने लिखा कि हमारी इकॉनमी कमजोर नहीं है बल्कि आपकी मज़बूत है। कांग्रेस प्रवक्ता अखिलेश प्रताप सिंह ने लिखा कि तर्क सुनिये, सरकार फेल नहीं हो रही है, इसे ऐसे देखा जाना चाहिए कि मोदी सरकार के बस में ही नहीं है देश की अर्थव्यवस्था सम्भाल पाना। आप विधायक नरेश बालियान ने लिखा कि एक मोदी जी तो इनमें भी हैं। कैसे कैसे लोग इस देश पर शासन कर रहे हैं?
बता दें कि यूएस डॉलर के मुकाबले रुपए की कीमत 82.42 के बराबर हो गई है। निर्मला सीतारमण 11 अक्टूबर से अमेरिका की छह दिवसीय यात्रा पर हैं। अगले साल भारत में आयोजित होने वाले G-20 नेताओं के शिखर सम्मेलन पर वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा कि कि हम ऐसे समय में जी-20 का अध्यक्ष पद ले रहे हैं, जब बहुत सारी चुनौतियां हैं।
युआन कमजोर होने पर डॉलर के मुकाबले मजबूत हुआ भारतीय रुपया, अब इतने हुए रेट
दिन के दौरान स्थानीय मुद्रा की सीमा 82.59 और 82.79 के बीच थी। जबकि अमेरिकी फेडरल रिजर्व के कम दांव के कारण डॉलर में नरमी के कारण शुरुआती कारोबार में घरेलू मुद्रा में तेजी आई, चीनी युआन के गिरने के बाद के दिनों में लाभ कायम नहीं रहा।
चीनी युआन 15 साल के निचले स्तर पर पहुंचा, कमजोर डॉलर क्योंकि शी जिनपिंग अपने नए कार्यकाल में निजी क्षेत्र की तुलना में देश की सरकारी चीजों को अधिक प्राथमिकता देंगे। ऐसी बात सामने निकलकर आई है।
रुपया में इस उम्मीद से भी कुछ मजबूती दिखी कि नए प्रधानमंत्री ऋषि सुनक बाजार में स्थिरता लाएंगे। बता दें कि सुनक यूके के नए पीएम नियुक्त हो गए हैं। नवनियुक्त प्रधानमंत्री ऋषि सुनक ने कहा मैं आर्थिक स्थिरता और विश्वास को अपनी सरकार के एजेंडे में फोकस में रखूंगा। आने वाले दिनों में कठिन फैसले होंगे। लेकिन आपने मुझे कोविड के दौरान लोगों और व्यवसायों की सुरक्षा के लिए सब कुछ करते हुए देखा। जब अब से कहीं अधिक सीमाएं थीं।
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रुपये के कमजोर या मजबूत होने का मतलब क्या है?
अमेरिकी डॉलर को वैश्विक करेंसी इसलिए माना जाता है, क्योंकि दुनिया के अधिकतर देश अंतर्राष्ट्रीय कारोबार में इसी का प्रयोग करते हैं
रुपया कमजोर या मजबूत क्यों होता है?
रुपये की कीमत पूरी तरह इसकी मांग एवं आपूर्ति पर निर्भर करती है. इस पर आयात एवं निर्यात का भी असर पड़ता है. दरअसल हर देश के पास दूसरे देशों की मुद्रा का भंडार होता है, जिससे वे लेनदेन यानी सौदा (आयात-निर्यात) करते हैं. इसे विदेशी मुद्रा भंडार कहते हैं. समय-समय पर इसके आंकड़े रिजर्व बैंक की तरफ से जारी होते हैं.
विदेशी मुद्रा भंडार के घटने और बढ़ने से ही उस देश की मुद्रा पर असर पड़ता है. अमेरिकी डॉलर को वैश्विक करेंसी का रुतबा हासिल है. इसका मतलब है कि निर्यात की जाने वाली ज्यादातर चीजों का मूल्य डॉलर में चुकाया जाता है. यही वजह है कि डॉलर के मुकाबले रुपये की कीमत से पता चलता है कि भारतीय मुद्रा मजबूत है या कमजोर.
अमेरिकी डॉलर को वैश्विक करेंसी इसलिए माना जाता है, क्योंकि दुनिया के अधिकतर देश अंतर्राष्ट्रीय कारोबार में इसी का प्रयोग करते हैं. यह अधिकतर जगह पर आसानी से स्वीकार्य है.
इसे एक उदाहरण से समझें
अंतर्राष्ट्रीय कारोबार में भारत के ज्यादातर बिजनेस डॉलर में होते हैं. आप अपनी जरूरत का कच्चा तेल (क्रूड), खाद्य पदार्थ (दाल, खाद्य तेल ) और इलेक्ट्रॉनिक्स आइटम अधिक मात्रा में आयात करेंगे तो आपको ज्यादा डॉलर खर्च करने पड़ेंगे. आपको सामान तो खरीदने में मदद मिलेगी, लेकिन आपका मुद्राभंडार घट जाएगा.
मान लें कि हम अमेरिका से कुछ कारोबार कर रहे हैं. अमेरिका के पास 68,000 रुपए हैं और हमारे पास 1000 डॉलर. अगर आज डॉलर का भाव 68 रुपये है तो दोनों के पास फिलहाल बराबर रकम है. अब अगर हमें अमेरिका से भारत में कोई ऐसी चीज मंगानी है, जिसका भाव हमारी करेंसी के हिसाब से 6,800 रुपये है तो हमें इसके लिए 100 डॉलर चुकाने होंगे.
अब हमारे विदेशी मुद्रा भंडार में सिर्फ 900 डॉलर बचे हैं. अमेरिका के पास 74,800 रुपये. इस हिसाब से अमेरिका के विदेशी मुद्रा भंडार में भारत के जो 68,000 रुपए थे, वो तो हैं ही, लेकिन भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में पड़े 100 डॉलर भी उसके पास पहुंच गए.
अगर भारत इतनी ही राशि यानी 100 डॉलर का सामान अमेरिका को दे देगा तो उसकी स्थिति ठीक हो जाएगी. यह स्थिति जब बड़े पैमाने पर होती है तो हमारे विदेशी मुद्रा भंडार में मौजूद करेंसी में कमजोरी आती है. इस समय अगर हम अंतर्राष्ट्रीय बाजार से डॉलर खरीदना चाहते हैं, तो हमें उसके लिए अधिक रुपये खर्च करने पड़ते हैं.
कौन करता है मदद?
इस तरह की स्थितियों में देश का केंद्रीय बैंक कमजोर डॉलर RBI अपने भंडार और विदेश से खरीदकर बाजार में डॉलर की आपूर्ति सुनिश्चित करता है.
आप पर क्या असर?
भारत अपनी जरूरत का करीब 80% पेट्रोलियम उत्पाद आयात करता है. रुपये में गिरावट से पेट्रोलियम उत्पादों का आयात महंगा हो जाएगा. इस वजह से तेल कंपनियां पेट्रोल-डीजल के भाव बढ़ा सकती हैं.
डीजल के दाम बढ़ने से माल ढुलाई बढ़ जाएगी, जिसके चलते महंगाई बढ़ सकती है. इसके अलावा, भारत बड़े पैमाने पर खाद्य तेलों और दालों का भी आयात कमजोर डॉलर करता है. रुपये की कमजोरी से घरेलू बाजार में खाद्य तेलों और दालों की कीमतें बढ़ सकती हैं.
यह है सीधा असर
एक अनुमान के मुताबिक डॉलर के भाव में एक रुपये की वृद्धि से तेल कंपनियों पर 8,000 करोड़ रुपये का बोझ पड़ता है. इससे उन्हें पेट्रोल और डीजल के भाव बढ़ाने पर मजबूर होना पड़ता है. पेट्रोलियम उत्पाद की कीमतों में 10 फीसदी वृद्धि से महंगाई करीब 0.8 फीसदी बढ़ जाती है. इसका सीधा असर खाने-पीने और परिवहन लागत पर पड़ता है.
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'रुपया कमजोर नहीं हो रहा, इसका प्रदर्शन काफी अच्छा. डॉलर मजबूत हो रहा है', रुपये की गिरावट पर बोलीं निर्मला सीतारमण
रुपये की डॉलर के मुकाबले लगातार गिरावट पर निर्मला सीतारमण ने अमेरिका में कहा कि रुपया कमजोर नहीं हो रहा और इसे इसे ऐसे देखना चाहिए कि डॉलर मजबूत हो रहा है। उन्होंने कहा कि दूसरी मार्केट करेंसी देखें तो डॉलर की तुलना में रुपया काफी अच्छा कर रहा है।
रुपया कमजोर नहीं हो रहा, डॉलर मजबूत हो रहा है: निर्मला सीतारमण (फोटो-एएनआई)
नई दिल्ली: वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा है कि रुपये ने अन्य उभरती बाजार मुद्राओं की तुलना में काफी बेहतर प्रदर्शन किया है। वित्त मंत्री ने ये टिप्पणी उस समय की है जब लगातार रुपये का भाव डॉलर के मुकाबले गिर रहा है। कमजोर डॉलर रुपया हाल में 82.69 के सर्वकालिक निचले स्तर तक गिर गया था। गिरावट के बारे में बताते हुए निर्मला सीतारमण ने कहा कि ऐसा डॉलर के मजबूत होने के कारण हुआ। उन्होंने कहा कि रुपया कमजोर नहीं हो रहा है।
निर्मला सीतारमण ने वॉशिंगटन में कहा, 'रुपया कमजोर नहीं हो रहा, हमें इसे कमजोर डॉलर ऐसे देखना चाहिए कि डॉलर मजबूत हो रहा है। लेकिन दूसरी मार्केट करेंसी देखें तो रुपया डॉलर की तुलना में काफी अच्छा कर रहा है।'
वित्त मंत्री ने कहा कि भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) यह सुनिश्चित करने पर ध्यान केंद्रित कर रहा था कि बहुत अधिक अस्थिरता न हो, और इसलिए भारतीय मुद्रा के मूल्य को फिक्स करने के लिए बाजार में हस्तक्षेप नहीं कर रहा था।
गिरावट से निपटने के लिए किए जा रहे उपायों पर निर्मला सीतारमण ने कहा, तो जाहिर है, अन्य सभी मुद्राएं भी अमेरिकी डॉलर की मजबूती के सामने प्रदर्शन कर रही हैं। यह तथ्य है कि भारतीय रुपया शायद इस अमरीकी डालर की दरों में बढ़ोतरी के सामने ठीक प्रदर्शन कर रहा है। भारतीय रुपये ने कई अन्य उभरती बाजार मुद्राओं की तुलना में काफी बेहतर प्रदर्शन किया है।'
सीतारमण ने कहा, 'आरबीआई के प्रयास यह देखने के लिए अधिक हैं कि बहुत अधिक अस्थिरता नहीं हो, उसे रुपये के मूल्य को तय करने के लिए बाजार में हस्तक्षेप नहीं करना है। अस्थिरता को नियंत्रित करना ही एकमात्र प्रयास है जिसमें आरबीआई शामिल है और मैंने यह पहले भी कहा है रुपया अपना स्तर प्राप्त कर लेगा।'
सीतारमण ने कहा अमेरिकी डॉलर के लगातार महंगे होते जाने की अहम भूमिका है। उन्होंने कहा कि जनवरी 2022 से ही मुद्रास्फीति छह प्रतिशत के ऊपरी सहिष्णुता स्तर से ऊपर बनी हुई है। विशेषज्ञों के अनुसार, इस साल की शुरुआत में यूक्रेन पर रूसी आक्रमण से उत्पन्न वैश्विक तनाव से शुरू होने वाले प्रतिकूल वैश्विक विकास से अवमूल्यन का ताजा दौर शुरू हुआ है।
ब्लॉग: डॉलर के मुकाबले कमजोर होता रुपया पर दूसरी विदेशी मुद्राओं की तुलना में स्थिति अभी भी बेहतर
इस समय डॉलर के मुकाबले रुपए की कीमत निम्नतम स्तर पर पहुंचकर 80 रुपए के आसपास केंद्रित होने से मुश्किलों का सामना कर रही भारतीय अर्थव्यवस्था और असहनीय महंगाई से जूझ रहे आम आदमी के लिए चिंता का बड़ा कारण बन गई है. हाल ही में प्रकाशित कंटार के ग्लोबल इश्यू बैरोमीटर के अनुसार, रुपए की कीमत में गिरावट और तेज महंगाई के कारण कोई 76 फीसदी शहरी उपभोक्ता अपने जीवन की बड़ी योजनाओं को टालने या छोड़ने पर मजबूर हो रहे हैं. ईंधन, खाने-पीने के सामान की बढ़ती कीमतों के साथ-साथ बढ़ते पारिवारिक खर्चों के चलते, शहरी भारतीय उपभोक्ता अपने बचत खातों में कम पैसा बचा पा रहे हैं.
वस्तुतः डॉलर के मुकाबले रुपए के कमजोर होने का प्रमुख कारण बाजार में रुपए की तुलना में डॉलर की मांग बहुत ज्यादा हो जाना है. वर्ष 2022 की शुरुआत से ही संस्थागत विदेशी निवेशक (एफआईआई) बड़ी संख्या में भारतीय बाजारों से पैसा निकाल रहे हैं. ऐसा इसलिए हुआ है क्योंकि अमेरिका के केंद्रीय बैंक फेडरल रिजर्व के द्वारा अमेरिका में ब्याज दरें बहुत तेजी से बढ़ाई जा रही हैं. साथ ही दुनिया में आर्थिक मंदी के कदम बढ़ रहे हैं
ऐसे में भारतीय शेयर बाजार में निवेश करने के इच्छुक निवेशक अमेरिका में अपने निवेश को ज्यादा लाभप्रद और सुरक्षित मानते हुए भारत की जगह अमेरिका में निवेश को प्राथमिकता दे रहे हैं. ऐसे में डॉलर के सापेक्ष रुपए की मांग में तेजी से गिरावट दर्ज की गई है और डॉलर के मुकाबले रुपया कमजोर हो रहा है.
गौरतलब है कि अभी भी दुनिया में डॉलर सबसे मजबूत मुद्रा है. दुनिया का करीब 85 फीसदी व्यापार डॉलर की मदद से होता है. साथ ही दुनिया के 39 फीसदी कर्ज डॉलर में दिए जाते हैं. इसके अलावा कुल डॉलर का करीब 65 फीसदी उपयोग अमेरिका के बाहर होता है. भारत अपनी क्रूड ऑइल की करीब 80-85 फीसदी जरूरतों के लिए व्यापक रूप से आयात पर निर्भर है.
रूस-यूक्रेन युद्ध के मद्देनजर कच्चे तेल और अन्य कमोडिटीज की कीमतों में वृद्धि की वजह से भारत के द्वारा अधिक डॉलर खर्च करने पड़ रहे हैं. साथ ही देश में कोयला, उवर्रक, वनस्पति तेल, दवाई के कच्चे माल, केमिकल्स आदि का आयात लगातार बढ़ता जा रहा है. ऐसे में डॉलर की जरूरत और ज्यादा बढ़ गई है. स्थिति यह है कि भारत जितना निर्यात करता है, उससे अधिक वस्तुओं और सेवाओं का आयात करता है. इससे देश का व्यापार संतुलन लगातार प्रतिकूल होता जा रहा है.
नि:संदेह डॉलर की तुलना में भारतीय रुपया अत्यधिक कमजोर हुआ है. वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने खुद लोकसभा में यह माना है कि दिसंबर 2014 से अब तक देश की मुद्रा 25 प्रतिशत तक गिर चुकी है. इस वर्ष 2022 में पिछले सात महीनों में ही रुपए में करीब सात फीसदी से अधिक की गिरावट आ चुकी है. फिर भी अन्य कई विदेशी मुद्राओं की तुलना में रुपए की स्थिति बेहतर है.
रुपया ब्रिटिश पाउंड, जापानी येन और यूरो जैसी कई विदेशी मुद्राओं की तुलना में मजबूत हुआ है. भारतीय रुपए की संतोषप्रद स्थिति का कारण भारत में राजनीतिक स्थिरता, भारत से बढ़ते हुए निर्यात, संतोषप्रद विकास दर, भरपूर खाद्यान्न भंडार और संतोषप्रद उपभोक्ता मांग भी है.
नि:संदेह कमजोर होते रुपए की स्थिति से सरकार और रिजर्व बैंक दोनों चिंतित हैं और इस चिंता को दूर करने के लिए यथोचित कदम भी उठा रहे हैं. आरबीआई के गवर्नर शक्तिकांत दास ने 22 जुलाई को कहा कि उभरते बाजारों और विकसित अर्थव्यवस्थाओं की मुद्राओं की तुलना में रुपया अपेक्षाकृत बेहतर स्थिति में है लेकिन फिर भी रिजर्व बैंक ने रुपए में तेज उतार-चढ़ाव और अस्थिरता को कम करने के लिए यथोचित कदम उठाए हैं और आरबीआई द्वारा उठाए गए ऐसे कदमों से रुपए की तेज गिरावट को थामने में मदद मिली है.
आरबीआई ने कहा है कि अब वह रुपए की विनिमय दर में तेज उतार-चढ़ाव की अनुमति नहीं देगा. आरबीआई का कहना है कि विदेशी मुद्रा भंडार का उपयुक्त उपयोग रुपए की गिरावट को थामने में किया जाएगा. 15 जुलाई को समाप्त सप्ताह में देश का विदेशी मुद्रा भंडार 572.71 अरब डाॅलर रह गया है. अब आरबीआई ने विदेशों से विदेशी मुद्रा का प्रवाह देश की और बढ़ाने और रुपए में गिरावट को थामने, सरकारी बांड में विदेशी निवेश के मानदंड को उदार बनाने और कंपनियों के लिए विदेशी उधार सीमा में वृद्धि सहित कई उपायों की घोषणा की है.
यकीनन इस समय रुपए की कीमत में गिरावट को रोकने के लिए और अधिक उपायों की जरूरत है. इस समय डॉलर के खर्च में कमी और डॉलर की आवक बढ़ाने के रणनीतिक उपाय जरूरी हैं. अब रुपए में वैश्विक कारोबार बढ़ाने के मौके को मुट्ठियों में लेना होगा़.
हम उम्मीद करें कि सरकार द्वारा उठाए जा रहे नए रणनीतिक कदमों से जहां प्रवासी भारतीयों से अधिक विदेशी मुद्रा प्राप्त हो सकेंगी, वहीं उत्पाद निर्यात और सेवा निर्यात बढ़ने से भी अधिक विदेशी मुद्रा प्राप्त हो सकेगी और इन सबके कारण डॉलर की तुलना में एक बार फिर रुपया संतोषजनक स्थिति में पहुंचते हुए दिखाई दे सकेगा.