डॉलर ही क्यों?

करेंसी डॉलर-बेस्ड ही क्यों और कब से?
फॉरेन एक्सचेंज मार्केट में अधिकांश मुद्राओं की तुलना डॉलर से होती है। इसके पीछे द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान हुआ ‘ब्रेटन वुड्स एग्रीमेंट’ है। इसमें एक न्यूट्रल ग्लोबल करेंसी बनाने का प्रस्ताव रखा गया था। हालांकि, तब अमेरिका अकेला ऐसा देश था डॉलर ही क्यों? जो आर्थिक तौर पर मजबूत होकर उभरा था। ऐसे में अमेरिकी डॉलर को दुनिया की रिजर्व करेंसी के तौर पर चुन लिया गया।
जानिए दुनिया क्या डॉलर की ग़ुलाम है?
वर्तमान हालत यह है कि वित्तीय बाजार की पूरी दुनिया पर डॉलर का दबदबा है। वित्तीय बाजार लंदन, न्यूयॉर्क से नियंत्रित हो रहा है लेकिन दुनिया के उत्पादन श्रृंखला पर अमेरिका का दबदबा नहीं है।
ढाई महीने से ज्यादा हो चुके रूस और यूक्रेन की लड़ाई दुनिया के सामने हर दिन कई तरह के सवाल खड़ा कर रही है। एक अहम सवाल डॉलर की ग्लोबल करेंसी के तौर पर मान्यता से जुड़ा (Question related to recognition of dollar as a global currency) है। रूस के तकरीबन 300 बिलियन डॉलर विदेशी मुद्रा भंडार पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। रूस के सेंट्रल बैंक पर प्रतिबंध (sanctions on the central bank of Russia) लगा दिया गया है। यानी रूस चाहकर भी डॉलर में जमा किए गए अपने पैसे का इस्तेमाल नहीं कर सकता है। रूस अपने सेंट्रल बैंक के जरिये दूसरे देश के साथ लेन देन नहीं कर सकता है।
रूस पर लगे प्रतिबंध से उठे सवाल (Questions raised by sanctions on Russia)
डॉलर जारी करने वाला देश भी यही वायदा करता है कि जब भी कोई देश अपनी विदेशी मुद्रा से डॉलर की मांग करेगा तो उसे डॉलर मिल जायेगा। लेकिन रूस पर लगे प्रतिबंध (sanctions on Russia) से यह सवाल उठता है कि क्या वाकई विदेशी मुद्रा भंडार के तौर पर डॉलर का इस्तेमाल करना उचित है? डॉलर को विदेशी मुद्रा भंडार के तौर पर इस्तेमाल करने का मतलब कहीं अप्रत्यक्ष तौर पर अमेरिका की गुलामी स्वीकारना तो नहीं है?
क्या डॉलर ग्लोबल करेंसी है? | Is Dollar a Global Currency?
यह कैसे न्यायोचित हो सकता है कि कोई देश अपने ही पैसा का इस्तेमाल नहीं कर पाए?
मान लिया जाए कि डॉलर ही क्यों? भारत और पाकिस्तान के बीच लम्बे समय तक युद्ध चले, भारत के विदेशी भंडार पर अमेरिका प्रतिबंध लगा दे, तब क्या होगा? यह कुछ जरूरी डॉलर ही क्यों? सवाल है जो डॉलर को ग्लोबल करेंसी के तरह इस्तेमाल करने पर खड़ा हुए हैं?
Dollar Index Explained : डॉलर इंडेक्स का क्या है मतलब, इस पर क्यों नजर रखती है सारी दुनिया?
डॉलर इंडेक्स में भले ही 6 करेंसी शामिल हों, लेकिन इसकी हर हलचल पर सारी दुनिया की नजर रहती है. (File Photo)
What is US Dollar Index and Why it is Important : रुपये में मजबूती की खबर हो या गिरावट की, ब्रिटिश पौंड अचानक कमजोर पड़ने लगे या रूस और चीन की करेंसी में उथल-पुथल मची हो, करेंसी मार्केट से जुड़ी तमाम खबरों में डॉलर इंडेक्स का जिक्र जरूर होता है. अंतरराष्ट्रीय मुद्रा बाजार की हलचल से जुड़ी खबरों में तो रेफरेंस के लिए डॉलर इंडेक्स का नाम हमेशा ही होता है. ऐसे में मन में यह सवाल उठना लाज़मी है कि करेंसी मार्केट से जुड़ी खबरों में इस इंडेक्स को इतनी अहमियत क्यों दी जाती है? इस सवाल का जवाब जानने के लिए सबसे पहले ये जानना जरूरी है कि डॉलर इंडेक्स आखिर है क्या?
डॉलर इंडेक्स क्या है?
डॉलर इंडेक्स दुनिया की 6 प्रमुख करेंसी के मुकाबले अमेरिकी डॉलर की मजबूती या कमजोरी का संकेत देने वाला इंडेक्स है. इस इंडेक्स में उन देशों की मुद्राओं डॉलर ही क्यों? को शामिल किया गया है, जो अमेरिका के सबसे प्रमुख ट्रे़डिंग पार्टनर हैं. इस इंडेक्स शामिल 6 मुद्राएं हैं – यूरो, जापानी येन, कनाडाई डॉलर, ब्रिटिश पाउंड, स्वीडिश क्रोना और स्विस फ्रैंक. इन सभी करेंसी को उनकी अहमियत के हिसाब से अलग-अलग वेटेज दिया गया है. डॉलर इंडेक्स जितना ऊपर जाता डॉलर ही क्यों? है, डॉलर को उतना मजबूत माना जाता है, जबकि इसमें गिरावट का मतलब ये है कि अमेरिकी करेंसी दूसरों के मुकाबले कमजोर पड़ रही है.
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डॉलर इंडेक्स में किस करेंसी का कितना वेटेज?
डॉलर इंडेक्स पर हर करेंसी के एक्सचेंज रेट का असर अलग-अलग अनुपात में पड़ता है. इसमें सबसे ज्यादा वेटेज यूरो का है और सबसे कम स्विस फ्रैंक का.
- यूरो : 57.6%
- जापानी येन : 13.6%
- कैनेडियन डॉलर : 9.1%
- ब्रिटिश पाउंड : 11.9%
- स्वीडिश क्रोना : 4.2%
- स्विस फ्रैंक : 3.6%
हर करेंसी के अलग-अलग वेटेज का मतलब ये है कि इंडेक्स में जिस करेंसी का वज़न जितना अधिक होगा, उसमें बदलाव का इंडेक्स पर उतना ही ज्यादा असर पड़ेगा. जाहिर है कि यूरो में उतार-चढ़ाव आने पर डॉलर इंडेक्स पर सबसे ज्यादा असर पड़ता है.
डॉलर इंडेक्स का इतिहास
डॉलर इंडेक्स की शुरुआत अमेरिका के सेंट्रल बैंक यूएस फेडरल रिजर्व ने 1973 में की थी और तब इसका बेस 100 था. तब से अब तक इस इंडेक्स में सिर्फ एक बार बदलाव हुआ है, जब जर्मन मार्क, फ्रेंच फ्रैंक, इटालियन लीरा, डच गिल्डर और बेल्जियन फ्रैंक को हटाकर इन सबकी की जगह यूरो को शामिल किया गया था. अपने इतने वर्षों के इतिहास में डॉलर इंडेक्स आमतौर पर ज्यादातर समय 90 से 110 के बीच रहा है, लेकिन 1984 में यह बढ़कर 165 तक चला गया था, जो डॉलर इंडेक्स का अब तक का सबसे ऊंचा स्तर है. वहीं इसका सबसे निचला स्तर 70 है, जो 2007 में देखने को मिला था.
डॉलर इंडेक्स में भले ही सिर्फ 6 करेंसी शामिल हों, लेकिन इस पर दुनिया के सभी देशों में नज़र रखी जाती है. ऐसा इसलिए क्योंकि अमेरिकी डॉलर अंतरराष्ट्रीय कारोबार में दुनिया की सबसे महत्वपूर्ण करेंसी है. न डॉलर ही क्यों? सिर्फ दुनिया में सबसे ज्यादा इंटरनेशनल ट्रेड डॉलर में होता है, बल्कि तमाम देशों की सरकारों के विदेशी मुद्रा भंडार में भी डॉलर सबसे प्रमुख करेंसी है. यूएस फेड के आंकड़ों के मुताबिक 1999 से 2019 के दौरान अमेरिकी महाद्वीप का 96 फीसदी ट्रेड डॉलर में हुआ, जबकि एशिया-पैसिफिक रीजन में यह शेयर 74 फीसदी और बाकी दुनिया में 79 फीसदी रहा. सिर्फ यूरोप ही ऐसा ज़ोन है, जहां सबसे ज्यादा अंतरराष्ट्रीय व्यापार यूरो में होता है. यूएस फेड की वेबसाइट के मुताबिक 2021 में दुनिया के तमाम देशों में घोषित विदेशी मुद्रा भंडार का 60 फीसदी हिस्सा अकेले अमेरिकी डॉलर डॉलर ही क्यों? का था. जाहिर है, इतनी महत्वपूर्ण करेंसी में होने वाला हर उतार-चढ़ाव दुनिया भर के सभी देशों पर असर डालता है और इसीलिए इसकी हर हलचल पर सारी दुनिया की नजर रहती है.
EXPLAINER: डॉलर क्यों महंगा हो रहा है और रुपया समेत दुनियाभर की करेंसी फिसल रही है?
EXPLAINER: अभी की महंगाई में डिमांड और सप्लाई दोनों का रोल है. डॉलर का प्रदर्शन इसलिए मजबूत हो रहा है कि, क्योंकि दुनियाभर की इकोनॉमी की हालत खराब है. वहां की करेंसी की वैल्यु भी घट रही है. डॉलर को इससे डबल बेनिफिट मिल रहा है.
पूरी दुनिया की करेंसी इस समय दबाव में है. एकमात्र अमेरिकन डॉलर मजबूती के साथ आगे बढ़ रहा है. डॉलर के मुकाबले रुपया 82 के स्तर को पार कर चुका है. अलग-अलग सर्वे के मुताबिक, यह 83 से 84 के स्तर तक फिसल सकता है. इस साल अब तक रुपए में 10 फीसदी की गिरावट आ चुकी है. ऐसे में यह सवाल उठता है कि आखिर क्या वजह है कि दुनियाभर की करेंसी फिसल रही है, जबकि डॉलर लगातार मजबूत हो रहा है. Credence Wealth Advisors के फाउंडर कीर्तन ए शाह की मदद से इस आर्टिकल में यह भी जानने की कोशिश करेंगे कि दुनिया की दूसरी करेंसी के मुकाबले रुपए का प्रदर्शन कितना मजबूत या कमजोर है.
कोरोना महामारी से हुई इसकी शुरुआत
इसकी शुरुआत साल 2020 में हुआ जब कोरोना वायरस ने दस्तक दिया. महामारी के दौरान हर तरह की आर्थिक गतिविधि रोक दी गई जिसके कारण जीडीपी में गिरावट आई. इसके अलावा बड़े पैमाने पर रोजगार गए और कंपनियों को भारी नुकसान हुआ. आर्थिक गतिविधियों में सुधार के मकसद से दुनियाभर के सेंट्रल बैंकों ने इंट्रेस्ट रेट में कटौती की और लिक्विडिटी बढ़ाने पर फोकस किया. डेवलप्ड इकोनॉमी में इंट्रेस्ट रेट घटकर करीब जीरो पर आ गया है, जबकि रिजर्व बैंक ने रेपो रेट घटाकर 4 फीसदी तक कर दिया था.
कर्ज मिलना आसान हो गया और हर किसी के हाथ में पैसे आ गए. कोरोना महामारी के दौरान शेयर बाजार में जो भारी गिरावट आई थी वह अब लोगों का फेवरेट डेस्टिनेशन बन गया. लिक्विडिटी बढ़ने के बाद सारा पैसा शेयर बाजार और कमोडिटी की तरफ जाने लगा और दोनों रिकॉर्ड हाई पर पहुंच गया. जब इंट्रेस्ट रेट घटता है तो बॉन्ड यील्ड भी घटने लगता है.
डिमांड आधारित डॉलर ही क्यों? है यह महंगाई
यील्ड घट गया, स्टॉक मार्केट और कमोडिटी प्राइस आसमान पर पहुंच गया जिसके कारण महंगाई बढ़ गई. इसे डिमांड आधारित महंगाई कहते हैं. यह ऐसी महंगाई होती है जिसमें एक्सेस डिमांड का सबसे बड़ा रोल होता है. चीन दुनिया का सबसे बड़ा मैन्युफैक्चरर है. उसने कोरोना पर कंट्रोल करने के लिए लॉकडाउन को लंबे समय तक गंभीरता से लागू किया. इसस सप्लाई की समस्या पैदा हो गई. इससे महंगाई को सपोर्ट मिला. फरवरी 2022 में रूस ने यूक्रेन पर हमला कर दिया जिसके कारण कच्चा तेल आसमान पर पहुंच गया. इससे महंगाई की आग को और हवा मिली. यूरोप में गैस की किल्लत पैदा हो गई जिससे भी महंगाई को सपोर्ट मिला.
कुल मिलाकर अभी की महंगाई डिमांड आधारित और यूक्रेन क्राइसिस के कारण सप्लाई आधारित भी है. महंगाई का हाल ये है कि अमेरिका और इंग्लैंड में इंफ्लेशन टार्गेट 2 फीसदी है जो 9-10 फीसदी पर पहुंच गया है. रिजर्व बैंक ने मॉनिटरी पॉलिसी पर नियंत्रण बनाए रखा जिसके कारण 6 फीसदी की महंगाई का लक्ष्य 7 फीसदी के नजदीक है.
मांग में कमी डॉलर ही क्यों? के लिए इंट्रेस्ट रेट में बढ़ोतरी
महंगाई को काबू में लाने के लिए फेडरल रिजर्व, बैंक ऑफ इंग्लैंड, यूरोपियन सेंट्रल बैंक समेत दुनिया के सभी सेंट्रल बैंक इंट्रेस्ट रेट में भारी बढ़ोतरी कर रहे हैं जिससे मांग में कमी आए. इंट्रेस्ट रेट में बढ़ोतरी के कारण फिक्स्ड इनकम के प्रति आकर्षण बढ़ा और शेयर बाजार के प्रति आकर्षण घटा है. इसलिए दुनियाभर के शेयर बाजार में गिरावट है और बॉन्ड यील्ड उछल रहा है.
महंगाई बढ़ने से करेंसी की खरीद क्षमता घट जाती है. डॉलर के मुकाबले दुनिया की तमाम करेंसी में गिरावट आई है. जब कोई सेंट्रल बैंक इंट्रेस्ट रेट बढ़ाता है जो इसका मतलब होता है कि वहां की इकोनॉमी मजबूत स्थिति में है. इकोनॉमी को लेकर मजबूती के संकेत मिलने पर उस देश की करेंसी भी मजबूत हो जाती है. एक्सपर्ट का कहना है कि डॉलर का प्रदर्शन ज्यादा मजबूत दिख रहा है, क्योंकि कोरोना के बाद दुनिया की तमाम इकोनॉमी की हालत तो खराब है ही और उनकी करेंसी की वैल्यु भी घटी है. इसके कारण डॉलर को डबल मजबूती मिल रही है.
रिकॉर्ड निचले स्तर पर रुपया: डॉलर के मुकाबले रुपया 60 पैसे कमजोर होकर 77.50 पर पहुंचा, आने वाले दिनों में ₹79 तक जा सकता है
डॉलर के मुकाबले रुपया रिकॉर्ड निचले स्तर पर पहुंच गया है। रुपया आज 60 पैसे कमजोर होकर 77.50 पर बंद हुआ। रुपया 27 पैसे कमजोर होकर 77.17 पर खुला था दिनभर के कारोबार में 77.52 का निचला स्तर बनाया। इससे पहले शुक्रवार को ये 76.90 पर बंद हुआ था। पिछले दो कारोबारी सत्रों में, रुपया डॉलर के मुकाबले 115 पैसे टूट चुका है।
IIFL सिक्योरिटीज के वाइस प्रेसिडेंट (कमोडिटी एंड करेंसी) अनुज गुप्ता ने कहा, मजबूत अमरीकी डालर, कमजोर एशियाई करेंसीज, तेल की कीमतों समेत अन्य चीजों की महंगाई रुपए में कमजोरी के कारण हैं। आने वाले दिनों में रुपया कमजोर होकर 79 तक पहुंच सकता है।
Rupee vs Dollar: आखिर डॉलर के मुकाबले क्यों गिर रहा है रूपया? [Indian Rupee Fall]
भारतीय रूपया अमेरिकी डॉलर से पहली बार 80 से नीचे गिर गया है। मौजूदा समय में शेयर बाजारों में रुपये ने गिरावट के बीच में गिरने का एक नया रिकॉर्ड बनाया है। रिजर्व बैंक के कड़े प्रयासों के बाद भी रुपया संभल नहीं पा रहा है। 19 जुलाई को शुरूआती कारोबार में Rupee vs Dollar 80 से नीचे गिर गया है। अमेरिकी डॉलर की तुलना में भारतीय रूपया सात पैसे की गिरावट के साथ 80.05 के सबसे निम्न स्तर पर आ गया है। पिछले आठ वर्षों में डॉलर की तुलना में भारतीय रुपया 16.08 रुपये यानी 25.39 प्रतिशत गिर चुका है। Reserve Bank of India (RBI) के आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2014 में 63.33 रुपये प्रति डॉलर विनमय दर थी।
Rupee vs Dollar 2022
आखिर डॉलर के मुकाबले क्यों गिर रहा है रूपया (Rupee vs Dollar) वर्तमान समय में भारतीय रूपया का डॉलर के मुकाबले सबसे बुरा दौर चल रहा है। रूपए की वैल्यू कुछ समय से घटती ही जा रही है। लगातार स्तिथि में रूपया का कम होना शेयर मार्किट में अलग ही रिकॉर्ड बना चुका है। अमेरिकी डॉलर की तुलना में भारतीय डॉलर का इस तरह से कम होना इसका सीधा असर आम आदमी पर होने वाला है। क्युकी रूपया का कम होना मतलब महंगाई में वृद्धि ,यदि महंगाई में वृद्धि होती है तो इसका सीधा असर आम आदमी की जेब पर पड़ता है।
Indian Rupee Fall 2022
आर्टिकल | Rupee vs Dollar |
वर्ष | 2022 |
भारतीय रूपये में कमी | डॉलर के मुकाबले 80 से नीचे |
हानि | भारतीय रूपये गिरने के कारण महंगाई में वृद्धि |
रूपये गिरने का कारण | वैश्विक कारण ,महामारी |
इस वर्ष के शुरूआती समय में भारतीय करेंसी कम हुई है | 7.6 प्रतिशत तक |
रूपये में कमी डॉलर ही क्यों? का सीधा असर | आम आदमी पर |
आखिर डॉलर के मुकाबले क्यों गिर रहा है रूपया?
जैसे की आप सभी लोगो को पता है की यूक्रेन और रसिया युद्ध के चलते भू-राजनितिक संकट और अनिश्चितताओं ने अधिकतर
इकॉनमी खतरे को काफी बढ़ा दिया है। यह इकॉनमी के लिए एक सबसे बड़ा आघात है ,क्युकी अभी कोविड 19 के कारण हुई महामारी के कारण हुई मंदी (recession) से रिकवर हो रही थी लेकिन Russia-Ukraine war के चलते अब और समस्या उत्पन्न हो गयी है।
रूस-यूक्रेन युद्ध के अतिरिक्त हाई ग्लोबल Crude oil Price और बढ़ती मुद्रा प्रसार ने भी ग्लोबल इकॉनमी की समस्याओं को और अधिक बढ़ा दिया है। रूपए के घटते स्तर का एक मुख्य कारण foreign portfolio capital का ऑउटफ्लो भी है foreign portfolio capital इन्वेस्टर्स एफपीआई ने 2022-23 में अब तक इंडियन equity markets से लगभग 14 अरब डॉलर की निकासी की है।
भारतीय रूपए के मुकाबले डॉलर में मजबूती
Rupee vs Dollar– वर्ष 2022 के शुरूआती में अब तक रुपया 7.6 प्रतिशत तक गिर चुका है। भारतीय करेंसी का इस तरह निम्न स्तर में आना इसका सीधा लाभ अमरीकी डॉलर को होगा। इस वर्ष के शुरूआती समय में 8 प्रतिशत की वृद्धि अमेरिकी डॉलर में देखी गयी है। रिजर्व बैंक डॉलर ही क्यों? ऑफ इंडिया द्वारा रेपो रेट में की गयी वृद्धि से भी रूपये में निर्बलता का क्रमबद्धता नहीं रुका है। वह इसलिए क्योंकी देश के जून माह में व्यापार घाटे के रिकॉर्ड हाई लेवल पर पहुंचने के बाद से करंट अकाउंट लॉस बढ़ रहा था।
भारतीय रूपया गिरने के कारण
भारतीय रुपया गिरने का एक प्रमुख है वैश्विक कारण वित्त मंत्री निर्मला सीता रमण ने लोकसभा में कहा है की रूस-यूक्रेन युद्ध के चलते कच्चे तेल के दामों में वृद्धि हुई है। जिसकी वजह से ग्लोबल फाइनेंशियल कंडीशन के कठोर होने की वजह से डॉलर की तुलना में रूपया का स्तर कम हो रहा है। foreign portfolio capital इन्वेस्टरों ने इंडियन शेयर मार्केट से लगभग अरबों डॉलर हासिल कर लिए है, जिसके कारण मुद्रा पर भारी असर हुआ है।