दलाल कौन हैं और वे क्या करते हैं

ईडी ने CM हेमन्त को पूछताछ के लिए क्या बुलाया, झामुमो-कांग्रेस वाले खुद को ऐसे पेश कर रहे हैं, जैसे कोई जंग जीत कर आये हो – दीपक
राज्य के संवैधानिक पद पर बैठे मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन को संवैधानिक संस्थाओं का और न्यायालय का सम्मान करना चाहिए। जब ईडी ने उन्हें पूछताछ के लिए समन जारी किया तो झामुमो और कांग्रेस वालो ने ऐसी राजनीतिक नौटंकी और बयानबाजी की, जैसे वे कोई भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन करके आये हो, आजादी की लड़ाई लड़कर आये हो या जैसे कोई जनता को राहत पहुंचाने वाला कार्य करके आये हो। ये बातें आज भाजपा झारखंड प्रदेश कार्यालय में प्रेस को संबोधित करते हुए प्रदेश अध्यक्ष सह राज्यसभा सांसद दीपक प्रकाश ने कही।
उन्होंने कहा कि राज्य के मुख्यमंत्री को यह याद रखना चाहिये कि वे भ्रष्टाचार में लिप्त हैं, इसलिए ईडी ने उन्हें पूछताछ के लिए बुलाया है। श्री प्रकाश ने कहा कि एक सर्वेक्षण में यह सामने आया है कि पूरे भारत मे झारखंड हत्या के मामले में प्रथम स्थान पर है और विकास के मामले में शून्य पर। आज़ादी के बाद पहली बार किसी राज्य के मुख्यमंत्री को समन भेजा गया है और इससे पूरे राज्य का मस्तिष्क शर्म से नीचे झुक गया है। उन्होंने कहा कि जब ईडी ने मुख्यमंत्री से पूछताछ की तो उन्हें कुछ याद नही आ रहा है। उन्हें ये भी याद नही है कि पंकज मिश्रा, अमित अग्रवाल, पूजा सिंघल, दाहु यादव कौन है?
पिछले 34 महीने से राज्य की हेमन्त सोरेन की सरकार में भ्रष्टाचार चरम पर है, संसाधनों की लूट मची हुई है। यह सरकार काले कारनामे रचने में इतिहास बना रही है। आज पूरे राज्य में राजनीतिक और वितीय अराजकता व्याप्त है। श्री प्रकाश ने कहा कि जब से राज्य में हेमंत सोरेन की सरकार बनी है तब से लेकर आज तक राज्य में लगातार अवैध खनन, टेंडर मैनेज करना जैसी कार्य सरकार के संरक्षण में चल रही है। आज राज्य के किसी भी सरकारी विभाग में हाथ डालने से काजल ही काजल मिलता है। राज्य की हेमंत सोरेन सरकार पूरी तरह से भ्रष्टाचार में लिप्त है, सरकार को सत्ता के दलाल और विचौलिये चला रहे हैं। वे लोग कौन है? उनको कौन संरक्षण दे रहा है। आज यह जानने की जरूरत है।
श्री प्रकाश ने भाजपा द्वारा 7 नवम्बर से लेकर 14 नवम्बर तक हेमन्त हटाओ, झारखण्ड बचाओ की सफलता पर बोलते हुए कहा कि जिस प्रकार से राज्य की जनता का समर्थन और सहभागिता भाजपा के कार्यक्रम में देखने को मिला, वह इस बात का द्योतक है कि राज्य की जनता भ्रष्ट हेमंत सरकार से आजिज आ चुकी है और निजात पाना चाहती है। उन्होंने कहा कि भाजपा ने राज्य के सभी 263 प्रखंडो में जनाक्रोश प्रदर्शन की। जिसमे राज्य भर से 2,34,850 लोगों ने भाग लिया। भाजपा के जिला, प्रखंड, पंचायत एवम बूथ स्तर के कार्यकर्ताओं ने सड़क पर उतर कर लगातार भ्रष्ट हेमन्त सरकार के खिलाफ आंदोलन किया। जिसके चलते उन्हें सरकार की यातनाएं और झूठे मुकदमे का सामना करना भी पड़ा।
श्री प्रकाश ने कहा कि केंद्र सरकार के द्वारा प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना के तहत भेजी जा रही अनाजों का राज्य सरकार के संरक्षण में कालाबाजारी हो रही है। गरीबो के निवाले छीने जा रहे हैं। गरीबों को 12 प्रतिशत अनाज मिलता है और 88 प्रतिशत अनाज की कालाबाजारी हो जाती है। उन्होंने राज्य सरकार पर आरोप लगाते हुए कहा कि केंद्र सरकार की आयुष्मान योजना का नाम बदल कर मुख्यमंत्री आयुष्मान योजना कर दिया गया है। राज्य सरकार का जो हिस्सा अस्पताल को देना होता है, उसे राज्य सरकार अस्पतालों को नही दे रही है, जिसके कारण गरीबों का इलाज नही हो पा रहा है।
उन्होंने रिम्स की हालत पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि भाजपा ने 400 करोड़ रुपया खर्च करके आरएमसीएच को एम्स के तर्ज पर मॉडल हॉस्पिटल बनाया ताकि राज्य की गरीब जनता को स्वास्थ्य सेवा मुहैय्या हो सकें। लेकिन वर्तमान सरकार ने आज उसकी हालत बद से बदतर बना दी है। रोगियों को कोई सुविधा नही मिल रहा है। श्री प्रकाश ने राज्य में कानून व्यवस्था, चरमराई बिजली की स्थिति पर चिंता जाहिर की। उन्होंने कहा कि संथाल परगना और कोल्हान के लोगों को दो से तीन घंटे दलाल कौन हैं और वे क्या करते हैं ही बिजली मिल पा रही है। अस्पताल में टॉर्च के सहारे आपरेशन किया जा रहा है। इससे ज्यादा राज्य का दुर्भाग्य और क्या हो सकता है।
श्री प्रकाश ने नगर निकाय चुनाव में पिछड़ा वर्ग को आरक्षण लाभ नही देने पर सवाल खड़ा करते हुए कहा कि राज्य सरकार एक तरफ तो एसटी, एससी और पिछड़ा वर्ग का मसीहा बनती है, तो वही दूसरी तरफ नगर निकाय के चुनाव में पिछड़ा वर्ग को 27 प्रतिशत का आरक्षण से वंचित कर रही है। एसटी और एससी को आपस में लड़ाने का काम कर रही है। सरकार समाज को बांटों और राज करो की नीति पर काम कर रही है।
उन्होंने कहा कि भाजपा की सरकार ने सन 2000 में गरीब छात्राओं की स्कूल से ड्राप आउट को रोकने के उद्देश्य से साइकिल वितरण की योजना बनाई थी उसे वर्तमान सरकार ने बन्द कर दी है। गरीब आदिवासी और दलित छात्रों को छात्रवृति दी जाती थी लेकिन राज्य सरकार की लापरवाही के कारण आज वो भी नही मिल रहा है।
श्री प्रकाश ने राज्य सरकार को अस्थिर करने के सवाल पर जबाब देते हुए कहा कि भाजपा संविधान के आधार पर चलने तथा लोकतंत्र पर विश्वास करने वाली वाली पार्टी है। भाजपा कभी भी राज्य सरकार को अस्थिर करने की मंशा नही रखती है। आज राज्य की हेमन्त सोरेन की सरकार जिसके गोद में बैठे है जरा उस कांग्रेस की इतिहास को जान ले। उन्होंने कहा कि कांग्रेस ने आजादी के बाद से देश मे 91 बार राष्ट्रपति शासन लगाया। राम मंदिर आंदोलन में भाजपा की जनता के द्वारा चुनी हुई चार राज्यों की सरकार को हटाने का काम किया। अतः हेमन्त सोरेन कांग्रेस के गोद मे बैठकर यह आरोप भाजपा पर न लगाएं। हेमन्त सोरेन भूल जाते है कि उनके पिता शिबू सोरेन को जेल भेजने का काम कांग्रेस की ही सरकार ने की थी।
दलाल कौन हैं और वे क्या करते हैं
Ranchi: झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से इडी के सवाल-जवाब के बाद तीसरे दिन सरकार पर आक्रामक रहने वाली बीजेपी ने मुंह खोला है. भारतीय जनता पार्टी को हेमंत सोरेन और झारखंड मुक्ति मोर्चा का तेवर पसंद नहीं आ रहा है. झारखंड प्रदेश अध्यक्ष दीपक प्रकाश ने इडी पूछताछ के बाद संवाददाता सम्मेलन किया.
दीपक प्रकाश ने मीडिया से कहा कि राज्य के संवैधानिक पद पर बैठे मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन को संवैधानिक संस्थाओं का और न्यायालय का सम्मान करना चाहिए. जब इडी ने उन्हें पूछताछ के लिए समन जारी किया तो झामुमो और कांग्रेस वालो ने ऐसी राजनीतिक नौटंकी और बयान बाजी करने की जैसे वे कोई भ्रस्टाचार के खिलाफ आंदोलन करके आये हो, आजादी की लड़ाई लड़कर आये हो या जैसे कोई जनता को राहत पहुंचाने वाला कार्य करके आये हो.
भाजपा प्रदेश अध्यक्ष ने कहा कि राज्य के मुख्यमंत्री को यह याद रखना चाहिये की वे भ्रस्टाचार में लिफ़्त हैं, इसलिए इडी ने उन्हें पूछताछ के लिए बुलाया है.
श्री प्रकाश ने कहा कि एक सर्वेक्षण में यह सामने आया है कि पूरे भारत मे झारखंड हत्या के मामले में प्रथम स्थान पर है और विकास के मामले में शून्य पर. आज़ादी के बाद पहली बार किसी राज्य के मुख्यमंत्री को समन भेजा गया है और इससे पूरे राज्य का मस्तिष्क शर्म से नीचे झुक गया है.
उन्होंने कहा कि जब इडी ने मुख्यमंत्री से पूछताछ की तो उन्हें कुछ याद नहीं आ रहा है. उन्हें ये भी याद नही है कि पंकज मिश्रा, अमित अग्रवाल,पूजा सिंघल,डाहु यादव कौन है.
राज्य में राजनीतिक और वित्तीय अराजकता व्याप्त
पिछले 34 महीने से राज्य की हेमन्त सोरेन की सरकार में भ्रष्टाचार चरम पर है,संसाधनों की लूट मची हुई है. यह सरकार काले कारनामे रचने में इतिहास बना रही है. आज पूरे राज्य में राजनीतिक और वितीय अराजकता व्याप्त है.
श्री प्रकाश ने कहा कि जब से राज्य में हेमंत सोरेन की सरकार बनी है तब से लेकर आज तक राज्य में लगातार अवैध खनन,टेंडर मैनेज करना जैसी कार्य सरकार के संरक्षण में चल रही है. आज राज्य के किसी भी सरकारी विभाग में हाथ डालने से काजल ही काजल मिलता है. राज्य की हेमंत सोरेन सरकार पूरी तरह से भ्रस्टाचार में लिप्त है सरकार को सत्ता के दलाल और विचौलिये चला रहे है. वे लोग कौन है? उनको कौन संरक्षण दे रहा है. आज यह जानने की जरूरत है.
राज्य की जनता भ्रस्ट हेमन्त सरकार से निजात पाना चाहती है
श्री प्रकाश ने भाजपा द्वारा 7 नवम्बर से लेकर 14 नवम्बर तक हेमन्त हटाओ, झारखण्ड बचाओ की सफलता पर बोलते हुए कहा कि जिस प्रकार से राज्य की जनता का समर्थन और सहभागिता भाजपा के कार्यक्रम में देखने को मिला वह इस बात का द्योतक है कि राज्य की जनता भ्रस्ट हेमंत सरकार से आजिज आ चुकी है और निजात पाना चाहती है.
उन्होंने कहा कि भाजपा ने राज्य के सभी 263 प्रखंडो में जनाक्रोश प्रदर्शन की जिसमे राज्य भर से 2,34,850 लोगों ने भाग लिया. भाजपा के जिला, प्रखंड, पंचायत एवम बूथ स्तर के कार्यकर्ताओं ने सड़क पर उतर कर लगातार भ्रस्ट हेमन्त सरकार के खिलाफ आंदोलन किया. जिसके चलते उन्हें सरकार की यातनाएं और झूठे मुकदमे का सामना करना भी पड़ा.
प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना में मिले अनाज का हुई कालाबाजारी
श्री प्रकाश ने कहा कि केंद्र सरकार के द्वारा प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना के तहत भेजी जा रही अनाजों का राज्य सरकार के संरक्षण में कालाबाजारी हो रही है. गरीबो के निवाले छीने जा रहे हैं. गरीबों को 12 प्रतिशत अनाज मिलता है और 88 प्रतिशत अनाज की कालाबाजारी हो जाती है.
उन्होंने राज्य सरकार पर आरोप लगाते हुए कहा कि केंद्र सरकार की आयुष्मान योजना का नाम बदल कर मुख्यमंत्री आयुष्मान योजना कर दिया गया है. राज्य सरकार का जो हिस्सा अस्पताल को देना होता है उसे राज्य सरकार अस्पतालों को नही दे रही है जिसके कारण गरीबों का इलाज नही हो पा रहा है.
उन्होंने रिम्स की हालत पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि भाजपा ने 400 करोड़ रुपया खर्च करके आरएमसीएच को एम्स के तर्ज पर मॉडल हॉस्पिटल बनाया ताकि राज्य की गरीब जनता को स्वास्थ्य सेवा मुहैय्या हो सके. लेकिन वर्तमान सरकार ने आज उसकी हालत बद से बदतर बना दी है. रोगियों को कोई सुविधा नही मिल रहा है.
श्री प्रकाश ने राज्य में कानून व्यवस्था, चरमराई बिजली की स्थिति पर चिंता जाहिर की. उन्होंने कहा कि संथाल परगना और कोल्हान के लोगों को 2 से 3 घंटे ही बिजली मिल पा रही है. अस्पताल में टॉर्च के सहारे आपरेशन किया जा रहा है. इससे ज्यादा राज्य का दुर्भाग्य और क्या हो सकता है.
नगर निकाय चुनाव में पिछड़ा वर्ग को आरक्षण से वंचित कर रही है सरकार
प्रेसवार्ता में मीडिया प्रभारी शिवपूजन पाठक प्रवक्ता अविनेश कुमार सिंह भी उपस्थित थे.
गुजरातः क्या मोरबी भी भोपाल की कहानी दोहराएगा ?
गुजरात के मोरबी में क्या भोपाल जैसा कुछ दोहराया जाएगा। प्रसिद्ध पत्रकार श्रवण गर्ग ने भोपाल गैस त्रासदी के बाद वहां हुए चुनाव से मोरबी और पूरे गुजरात के चुनाव की तुलना की है। सचमुच, यह चुनाव गुजरात और मोरबी के लोगों की परीक्षा है। जानिए उस वक्त की राजनीति और इस वक्त की राजनीति का हालः
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मोरबी से कौन जीतने वाला है ? क्या भाजपा ही जीतेगी या मतदाता उसे इस बार हराने वाले हैं ? प्रधानमंत्री अगर साहस दिखा देते कि दर्दनाक पुल हादसे की नैतिक ज़िम्मेदारी स्वीकार करते हुए भाजपा मोरबी से अपना कोई उम्मीदवार नहीं खड़ा करेगी तो मतदान के पहले ही मोदी गुजरात की जनता की सहानुभूति अपने पक्ष में कर सकते थे। उन्होंने ऐसा नहीं किया। प्रधानमंत्री भावनाओं में बहकर राजनीतिक फ़ैसले दलाल कौन हैं और वे क्या करते हैं नहीं लेते। वर्तमान के क्रूर राजनीतिक माहौल में इस तरह के नैतिक साहस की उम्मीद किसी भी राजनीतिक दल से नहीं की जा सकती।
स्थापित करने के लिए कि केबल पुल की देखरेख और उसका संचालन करने वाली कंपनी के प्रबंधकों के साथ पार्टी के बड़े नेताओं की कोई साँठगाँठ नहीं थी, मोरबी सीट जीतने के लिए भाजपा अपने सारे संसाधन दाव पर लगा देगी। कंपनी का एक मैनेजर पहले ही दावा कर चुका है कि हादसा ‘ईश्वर की मर्ज़ी’ से हुआ है। पार्टी की जीत का श्रेय प्रधानमंत्री के नेतृत्व को दिया जाने वाला है, ईश्वर की मर्ज़ी को नहीं।
भाजपा ने मोरबी से छह बार के विधायक और पिछले (2017 के) चुनावों के पहले कांग्रेस से भाजपा में भर्ती हुए बृजेश मेरजा की जगह कांतिलाल अमृतिया को टिकिट दिया है। मोरबी का 140 साल पुराना पुल अमृतिया के सामने ही ध्वस्त हुआ था। दुर्घटना के समय के वायरल हुए एक वीडियो में एक शख़्स को ट्यूब पहनकर मच्छू नदी से लोगों की जानें बचाते हुए देखा गया था। बाद में बताया गया कि वह शख़्स अमृतिया ही थे। भाजपा ने अब अमृतिया के कंधों पर मोरबी सीट को बचाने की ज़िम्मेदारी डाल दी है। अमृतिया का वीडियो अगर वायरल नहीं हुआ होता तो मोरबी से चुनाव लड़ने के लिए भाजपा को उम्मीदवार ढूँढना मुश्किल हो जाता।
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लोगों की जानें बचाने वाले को तो भाजपा ने टिकट देकर पुरस्कृत कर दिया पर सरकार द्वारा उन लोगों को दंडित किया जाना अभी बाक़ी है जिनके कारण सैकड़ों मौतें हुईं और अनेक घायल हुए।
मोरबी के भयानक हादसे में 55 बच्चों सहित 143 लोगों की जानें गईं हैं और सैकड़ों अभी भी घायल बताए जाते हैं। ( न्यूज़ पोर्टल ‘द प्रिंट’ ने गुलशन राठौड़ नामक एक महिला की मार्मिक कथा जारी की थी जिसमें बताया गया था कि इस ग़रीब माँ ने घटना के तुरंत बाद किस तरह बदहवास हालत में घर की रोज़ी-रोटी चलाने वाले अठारह और बीस साल की उम्र के अपने दो बेटों की हरेक जगह तलाश की थी। ‘मैं जब कई घंटों तक उन्हें कहीं और नहीं ढूँढ पाई तो मोरबी सिविल अस्पताल के मुर्दाघर पहुँची जहां पाया कि दोनों बेटे लावारिस लाशों की क़तार के बीच बेसुध पड़े हुए हैं और उनकी साँसें अभी चल रहीं हैं। मैंने तुरंत दोनों को पास के एक निजी अस्पताल में इलाज के लिए पहुँचाया। दोनों की रीढ़ की हड्डियों में चोट पहुँची है। मुझे पता नहीं अब हम क्या तो खाएँगे और कैसे मकान का भाड़ा चुकाएँगे’’, गुलशन ने खबर में बताया था।
साल 1984 में दिसंबर 2 और 3 की दरम्यानी रात भोपाल में दुनिया की सबसे बड़ी औद्योगिक दुर्घटना यूनियन कार्बाइड के संयंत्र से ज़हरीली गैस (MIC) लीक हो जाने की हुई थी। इस दुर्घटना के कोई एक महीना पहले ही (31 अक्टूबर) प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की नई दिल्ली में हत्या हो गई थी और लोकसभा चुनावों की घोषणा कर दी गई थी। दिसंबर अंत में देश के साथ भोपाल लोकसभा सीट केलिए भी मतदान होना था। भोपाल का चुनाव स्थगित नहीं किया गया।अर्जुन सिंह तब अविभाजित मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री थे। डॉ शंकरदयाल शर्मा निवर्तमान लोकसभा में भोपाल से कांग्रेस के सांसद थे। कांग्रेस ने डॉ शर्मा के स्थान पर के एन प्रधान को भोपाल से अपना उम्मीदवार बनाया था। त्रासदी के बीच ही चुनाव प्रचार भी सम्पन्न हो गया, मतदान भी हो गया और कांग्रेस ने भोपाल सहित प्रदेश की सभी चालीस सीटें भी जीत लीं। डॉ शर्मा गैस कांड के तीन साल बाद पहले उपराष्ट्रपति और फिर राष्ट्रपति निर्वाचित हो गए।
गैस कांड में जान देने वालों का सरकारी आँकड़ा 2,259 का और ग़ैर-सरकारी आठ हज़ार से ऊपर का है। अपुष्ट आँकड़े 22 से 25 हज़ार मौतों के हैं। कोई पाँच लाख से अधिक लोग घायल और हज़ारों स्थायी रूप से अपंग हो गये थे। मानवीय चूक के कारण हुई इस त्रासदी में मारे गए हज़ारों लोगों की मौत पर इंदिरा गांधी की हत्या से उपजी दलाल कौन हैं और वे क्या करते हैं सहानुभूति भारी पड़ गई थी और कांग्रेस को देशभर में ऐतिहासिक जीत हासिल हुई थी।
भोपाल गैस त्रासदी के लिए अगर यूनियन कार्बाइड प्रबंधन के साथ-साथ अर्जुन सिंह सरकार भी ज़िम्मेदार थी तो मोरबी हादसे के लिए गिनाए जा रहे कारण ‘भगवान की मर्ज़ी’ के अलावा गुजरात सरकार और घड़ी बनाने वाली ओरेवा कंपनी के प्रबंधकों के बीच साँठगाँठ की ओर भी इशारा करते हैं। मोरबी ज़िले में विधानसभा की तीन सीटें हैं। इनमें मोरबी और वांकानेर के अलावा टंकारा की वह सीट भी है जहां आर्य समाज के संस्थापक महर्षि दयानंद सरस्वती का जन्म हुआ था।
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मोरबी की दुर्घटना के बाद भोपाल गैस त्रासदी का हवाला देते हुए चेताया गया था कि लोगों की याददश्त कमज़ोर होती है, वे सब कुछ भूल जाएंगे ! मोरबी में पुल टूटने की घटना और गुजरात में मतदान के बीच भी समय 1984 दिसंबर जितना ही रहने वाला है। तो क्या गुजरात में मतदान सम्पन्न होने तक भोपाल की तरह ही मोरबी का भी सब कुछ भुला दिया जाएगा ? गुलशन राठौड़ और उनके जैसी सैंकड़ों कहानियों समेत !
भोपाल गैस त्रासदी अगले महीने की दो और तीन तारीख़ को अपने आतंक के अड़तीस साल पूरे कर लेगी। त्रासदी के चार महीने बाद मार्च 1985 में जब अर्जुन सिंह के नेतृत्व में मध्य प्रदेश विधानसभा के चुनाव हुए थे तो राज्य में फिर से कांग्रेस की हुकूमत क़ायम हो गई थी। मंत्री बादल गए थे पर दलाल वैसे ही क़ायम रहे। त्रासदी के लिए दोषी किसी भी बड़े आरोपी को सज़ा नहीं मिली । उसके कुछ गुनहगारों की आज भी तलाश की जा सकती है।
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हो सकता है मोरबी की कंपनी में बनने वाली घड़ियों की सुइयाँ साल बदलती रहें और भोपाल की तरह ही पुल दुर्घटना के असली गुनहगारों को भी क़ानून ढूँढता रह जाए ! राजनीति तो संवेदनहीन हो ही चुकी है, क्या मानवीय संवेदनाओं से मतदाताओं के सरोकार भी ख़त्म हो गए हैं ?
अगर यही सत्य है तो फिर लोकतंत्र को भूलकर उस व्यवस्था के लिए तैयार रहना चाहिए जिसकी ओर मोरबी के पुल की देखरेख और संचालन करने वाली कंपनी के प्रमुख ने अपनी गुजराती पुस्तक ‘समस्या अने समाधान’ में इशारा किया है :’ चीन की तरह ही देश में चुनाव बंद कर योग्य व्यक्ति को 15-20 साल का नेतृत्व दीजिए जो हिटलर की तरह डंडा चलाये।’
क्या मोरबी में भी भोपाल होगा ?
भोपाल गैस त्रासदी के लिए अगर यूनियन कार्बाइड प्रबंधन के साथ-साथ अर्जुनसिंह सरकार भी ज़िम्मेदार थी तो मोरबी हादसे के लिए गिनाए जा रहे कारण ‘भगवान की मर्ज़ी’ के अलावा गुजरात सरकार और घड़ी बनाने वाली ओरेवा कंपनी के प्रबंधकों के बीच साँठगाँठ की ओर भी इशारा करते हैं।
मोबाइल में अपने बेटों के चित्र दिखाते हुए महिला
मोरबी से कौन जीतने वाला है ? क्या भाजपा ही जीतेगी या मतदाता उसे इस बार हराने वाले हैं ? प्रधानमंत्री अगर साहस दिखा देते कि दर्दनाक पुल हादसे की नैतिक ज़िम्मेदारी स्वीकार करते हुए भाजपा मोरबी से अपना कोई उम्मीदवार नहीं खड़ा करेगी तो मतदान के पहले ही मोदी गुजरात की जनता की सहानुभूति अपने पक्ष में कर सकते थे। उन्होंने ऐसा नहीं किया। प्रधानमंत्री भावनाओं में बहकर राजनीतिक फ़ैसले नहीं लेते। वर्तमान के क्रूर राजनीतिक माहौल में इस तरह के नैतिक साहस की उम्मीद किसी भी राजनीतिक दल से नहीं की जा सकती।
स्थापित करने के लिए कि केबल पुल की देखरेख और उसका संचालन करने वाली कंपनी के प्रबंधकों के साथ पार्टी के बड़े नेताओं की कोई साँठगाँठ नहीं थी ,मोरबी सीट जीतने के लिए भाजपा अपने सारे संसाधन दाव पर लगा देगी। कंपनी का एक मैनेजर पहले ही दावा कर चुका है कि हादसा ‘ईश्वर की मर्ज़ी’ से हुआ है। पार्टी की जीत का श्रेय प्रधानमंत्री के नेतृत्व को दिया जाने वाला है, ईश्वर की मर्ज़ी को नहीं।
राहुल गांधी सरकार के ख़िलाफ़ जन-आंदोलन खड़ा करेंगे ?
स्मृति शेषः तबस्सुम का होना एक नियामत थी, अब उन जैसा दूसरा कोई नहीं
रोशनी का मजहब और मजहब की रोशनी
लिव-इन पार्टनर श्रद्धा की हत्या और उसके 35 टुकड़े के निहितार्थ
MP अगला पड़ाव, क्या होगा भारत जोड़ो यात्रा के सूत्रधार के गृहराज्य में प्रभाव?
राजनीति की खादी में मखमल और टाट के पैबंद
चुनाव में जीत हो या हार, भ्रष्टाचार सदाबहार
PESA Act से आदिवासी गौरव स्थापित करने की तैयारी
दुनिया का सबसे महाबली देश कर रहा है दलाल कौन हैं और वे क्या करते हैं आटे के संकट का सामना
भाजपा ने मोरबी से छह बार के विधायक और पिछले (2017 के) चुनावों के पहले कांग्रेस से भाजपा में भर्ती हुए बृजेश मेरजा की जगह कांतिलाल अमृतिया को टिकिट दिया है। मोरबी का 140 साल पुराना पुल अमृतिया के सामने ही ध्वस्त हुआ था। दुर्घटना के समय के वायरल हुए एक वीडियो में एक शख़्स को ट्यूब पहनकर मच्छू नदी से लोगों की जानें बचाते हुए देखा गया था।
बाद में बताया गया कि वह शख़्स अमृतिया ही थे। भाजपा ने अब अमृतिया के कंधों पर मोरबी सीट को बचाने की ज़िम्मेदारी डाल दी है। अमृतिया का वीडियो अगर वायरल नहीं हुआ होता तो मोरबी से चुनाव लड़ने के लिए भाजपा को उम्मीदवार ढूँढना मुश्किल हो जाता।
लोगों की जानें बचाने वाले को तो भाजपा ने टिकट देकर पुरस्कृत कर दिया पर सरकार द्वारा उन लोगों को दंडित किया जाना अभी बाक़ी है जिनके कारण सैंकड़ों मौतें हुईं और अनेक घायल हुए।
मोरबी के भयानक हादसे में 55 बच्चों सहित 143 लोगों की जानें गईं हैं और सैंकड़ों अभी भी घायल बताए जाते हैं। ( न्यूज़ पोर्टल ‘द प्रिंट’ ने गुलशन राठौड़ नामक एक महिला की मार्मिक कथा जारी की थी जिसमें बताया गया था कि इस ग़रीब माँ ने घटना के तुरंत बाद किस तरह बदहवास हालत में घर की रोज़ी-रोटी चलाने वाले अठारह और बीस साल की उम्र के अपने दो बेटों की हरेक जगह तलाश की थी।
‘मैं जब कई घंटों तक उन्हें कहीं और नहीं ढूँढ पाई तो मोरबी सिविल अस्पताल के मुर्दाघर पहुँची जहां पाया कि दोनों बेटे लावारिस लाशों की क़तार के बीच बेसुध पड़े हुए हैं और उनकी साँसें अभी चल रहीं हैं। मैंने तुरंत दोनों को पास के एक निजी अस्पताल में इलाज के लिए पहुँचाया।
दोनों की रीढ़ की हड्डियों में चोट पहुँची है। मुझे पता नहीं अब हम क्या तो खाएँगे और कैसे मकान का भाड़ा चुकाएँगे ’’, गुलशन ने खबर में बताया था।
साल 1984 में दिसंबर 2 और 3 की दरम्यानी रात भोपाल में दुनिया की सबसे बड़ी औद्योगिक दुर्घटना यूनियन कार्बाइड के संयंत्र से ज़हरीली गैस (MIC) लीक हो जाने की हुई थी।
इस दुर्घटना के कोई एक महीना पहले ही (31 अक्टूबर) प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की नई दिल्ली में हत्या हो गई थी और लोक सभा चुनावों की घोषणा कर दी गई थी। दिसंबर अंत में देश के साथ भोपाल लोक सभा सीट के लिए भी मतदान होना था।
भोपाल का चुनाव स्थगित नहीं किया गया । अर्जुन सिंह तब अविभाजित मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री थे। डॉ शंकर दयाल शर्मा निवृतमान लोक सभा में भोपाल से कांग्रेस के सांसद थे।
कांग्रेस ने डॉ शर्मा के स्थान पर के एन प्रधान को भोपाल से अपना उम्मीदवार बनाया था। त्रासदी के बीच ही चुनाव प्रचार भी सम्पन्न हो गया , मतदान भी हो गया और कांग्रेस ने भोपाल सहित प्रदेश की सभी चालीस सीटें भी जीत लीं। डॉ शर्मा गैस कांड के तीन साल बाद पहले उपराष्ट्रपति और फिर राष्ट्रपति निर्वाचित हो गए।
गैस कांड में जान देने वालों का सरकारी आँकड़ा 2,259 का और ग़ैर-सरकारी आठ हज़ार से ऊपर का है। अपुष्ट आँकड़े बाईस से पच्चीस हज़ार मौतों के हैं।
कोई पाँच लाख से अधिक लोग घायल और हज़ारों स्थायी रूप से अपंग हो गये थे। मानवीय चूक के कारण हुई इस त्रासदी में मारे गए हज़ारों लोगों की मौत पर इंदिरा गांधी की हत्या से उपजी सहानुभूति भारी पड़ गई थी और कांग्रेस को देशभर में ऐतिहासिक जीत हासिल हुई थी।
भोपाल गैस त्रासदी के लिए अगर यूनियन कार्बाइड प्रबंधन के साथ-साथ अर्जुनसिंह सरकार भी ज़िम्मेदार थी तो मोरबी हादसे के लिए गिनाए जा रहे कारण ‘भगवान की मर्ज़ी’ के अलावा गुजरात सरकार और घड़ी बनाने वाली ओरेवा कंपनी के प्रबंधकों के बीच साँठगाँठ की ओर भी इशारा करते हैं।
मोरबी ज़िले में विधानसभा की तीन सीटें हैं। इनमें मोरबी और वांकानेर के अलावा टंकारा की वह सीट भी है जहां आर्य समाज के संस्थापक महर्षि दयानंद सरस्वती का जन्म हुआ था।
मोरबी की दुर्घटना के बाद भोपाल गैस त्रासदी का हवाला देते हुए चेताया गया था कि लोगों की याददश्त कमज़ोर होती है, वे सब कुछ भूल जाएंगे !
मोरबी में पुल टूटने की घटना और गुजरात में मतदान के बीच भी समय 1984 दिसंबर जितना ही रहने वाला है। तो क्या गुजरात में मतदान सम्पन्न होने तक भोपाल की तरह ही मोरबी का भी सब कुछ भुला दिया जाएगा ? गुलशन राठौड़ और उनके जैसी सैंकड़ों कहानियों समेत !
भोपाल गैस त्रासदी अगले महीने की दो और तीन तारीख़ को अपने आतंक के अड़तीस साल पूरे कर लेगी। त्रासदी के चार महीने बाद मार्च 1985 में जब अर्जुनसिंह के नेतृत्व में मध्य प्रदेश विधानसभा के चुनाव दलाल कौन हैं और वे क्या करते हैं हुए थे तो राज्य में फिर से कांग्रेस की हुकूमत क़ायम हो गई थी।
मंत्री बादल गए थे पर दलाल वैसे ही क़ायम रहे। त्रासदी के लिए दोषी किसी भी बड़े आरोपी को सज़ा नहीं मिली । उसके कुछ गुनहगारों की आज भी तलाश की जा सकती है। हो सकता है मोरबी की कंपनी में बनने वाली घड़ियों की सुइयाँ साल बदलती रहें और भोपाल की तरह ही पुल दुर्घटना के असली गुनहगारों को भी क़ानून ढूँढता रह जाए !
राजनीति तो संवेदनहीन हो ही चुकी है, क्या मानवीय संवेदनाओं से मतदाताओं के सरोकार भी ख़त्म हो गए हैं ? अगर यही सत्य है तो फिर लोकतंत्र को भूलकर उस व्यवस्था के लिए तैयार रहना चाहिए जिसकी कि ओर मोरबी के पुल की देखरेख और संचालन करने वाली कंपनी के प्रमुख ने अपनी गुजराती पुस्तक ‘समस्या अने समाधान’ में इशारा किया है :’ चीन की तरह ही देश में चुनाव बंद कर योग्य व्यक्ति को 15-20 साल का नेतृत्व दीजिए जो हिटलर की दलाल कौन हैं और वे क्या करते हैं तरह डंडा चलाये।’
भोपाल गैस त्रासदी की तरह गुजरात में भी मतदान सम्पन्न होने तक मोरबी पुल हादसे को भुला दिया जाएगा !
Gujrat Election 2022 : भोपाल गैस त्रासदी के लिए अगर यूनियन कार्बाइड प्रबंधन के साथ-साथ अर्जुनसिंह सरकार भी ज़िम्मेदार थी तो मोरबी हादसे के लिए गिनाए जा रहे कारण 'भगवान की मर्ज़ी' के अलावा दलाल कौन हैं और वे क्या करते हैं गुजरात सरकार और घड़ी बनाने वाली ओरेवा कंपनी के प्रबंधकों के बीच साँठगाँठ की ओर भी इशारा करते हैं.
वरिष्ठ संपादक श्रवण गर्ग सवाल कर रहे हैं क्या मोरबी में भी भोपाल होगा?
मोरबी से कौन जीतने वाला है? क्या भाजपा ही जीतेगी या मतदाता उसे इस बार हराने वाले हैं? प्रधानमंत्री अगर साहस दिखा देते कि दर्दनाक पुल हादसे की नैतिक ज़िम्मेदारी स्वीकार करते हुए भाजपा मोरबी से अपना कोई उम्मीदवार नहीं खड़ा करेगी तो मतदान के पहले ही मोदी गुजरात की जनता की सहानुभूति अपने पक्ष में कर सकते थे। उन्होंने ऐसा नहीं किया। प्रधानमंत्री मोदी भावनाओं में बहकर राजनीतिक फ़ैसले नहीं लेते। वर्तमान के क्रूर राजनीतिक माहौल में इस तरह के नैतिक साहस की उम्मीद किसी भी राजनीतिक दल से नहीं की जा सकती।
स्थापित करने के लिए कि केबल पुल की देखरेख और उसका संचालन करने वाली कंपनी के प्रबंधकों के साथ पार्टी के बड़े नेताओं की कोई साँठगाँठ नहीं थी, मोरबी सीट जीतने के लिए भाजपा अपने सारे संसाधन दाव पर लगा देगी। कंपनी का एक मैनेजर पहले ही दावा कर चुका है कि हादसा 'ईश्वर की मर्ज़ी' से हुआ है। पार्टी की जीत का श्रेय प्रधानमंत्री के नेतृत्व को दिया जाने वाला है, ईश्वर की मर्ज़ी को नहीं।
भाजपा ने मोरबी से छह बार के विधायक और पिछले (2017 के) चुनावों के पहले कांग्रेस से भाजपा में भर्ती हुए बृजेश मेरजा की जगह कांतिलाल अमृतिया को टिकिट दिया है। मोरबी का 140 साल पुराना पुल अमृतिया के सामने ही ध्वस्त हुआ था। दुर्घटना के समय के वायरल हुए एक वीडियो में एक शख़्स को ट्यूब पहनकर मच्छू नदी से लोगों की जानें बचाते हुए देखा गया था। बाद में बताया गया कि वह शख़्स अमृतिया ही थे। भाजपा ने अब अमृतिया के कंधों पर मोरबी सीट को बचाने की ज़िम्मेदारी डाल दी है। अमृतिया का वीडियो अगर वायरल नहीं हुआ होता तो मोरबी से चुनाव लड़ने के लिए भाजपा को उम्मीदवार ढूँढ़ना मुश्किल हो जाता।
( चित्र में गुलशन राठौड़ मोबाइल अपने बेटों के चित्र दिखाते हुए)
लोगों की जानें बचाने वाले को तो भाजपा ने टिकट देकर पुरस्कृत कर दिया, पर सरकार द्वारा उन लोगों को दंडित किया जाना अभी बाक़ी है जिनके कारण सैकड़ों मौतें हुईं और अनेक घायल हुए। मोरबी के भयानक हादसे में 55 बच्चों सहित 143 लोगों की जानें गई हैं और सैकड़ों अभी भी घायल बताए जाते हैं। (न्यूज़ पोर्टल 'द प्रिंट' ने गुलशन राठौड़ नामक एक महिला की मार्मिक कथा जारी की थी, जिसमें बताया गया था कि इस ग़रीब माँ ने घटना के तुरंत बाद किस तरह बदहवास हालत में घर की रोज़ी-रोटी चलाने वाले अठारह और बीस साल की उम्र के अपने दो बेटों की हरेक जगह तलाश की थी।)
'मैं जब कई घंटों तक उन्हें कहीं और नहीं ढूँढ़ पाई तो मोरबी सिविल अस्पताल के मुर्दाघर पहुँची जहां पाया कि दोनों बेटे लावारिस लाशों की क़तार के बीच बेसुध पड़े हुए हैं और उनकी साँसें अभी चल रहीं हैं। मैंने तुरंत दोनों को पास के एक निजी अस्पताल में इलाज के लिए पहुँचाया। दोनों की रीढ़ की हड्डियों में चोट पहुँची है। मुझे पता नहीं अब हम क्या तो खाएँगे और कैसे मकान का भाड़ा चुकाएँगे।' गुलशन ने खबर में बताया था।
साल 1984 में दिसंबर 2 और 3 की दलाल कौन हैं और वे क्या करते हैं दरम्यानी रात भोपाल में दुनिया की सबसे बड़ी औद्योगिक दुर्घटना यूनियन कार्बाइड के संयंत्र से ज़हरीली गैस (MIC) लीक हो जाने की हुई थी। इस दुर्घटना के कोई एक महीना पहले ही (31 अक्टूबर) प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की नई दिल्ली में हत्या हो गई थी और लोकसभा चुनावों की घोषणा कर दी गई थी। दिसंबर अंत में देश के साथ भोपाल लोकसभा सीट के लिए भी मतदान होना था। भोपाल का चुनाव स्थगित नहीं किया गया।
अर्जुनसिंह तब अविभाजित मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री थे। डॉ शंकर दयाल शर्मा निवृतमान लोक सभा में भोपाल से कांग्रेस के सांसद थे। कांग्रेस ने डॉ शर्मा के स्थान पर के एन प्रधान को भोपाल से अपना उम्मीदवार बनाया था। त्रासदी के बीच ही चुनाव प्रचार भी सम्पन्न हो गया , मतदान भी हो गया और कांग्रेस ने भोपाल सहित प्रदेश की सभी चालीस सीटें भी जीत लीं। डॉ शर्मा गैस कांड के तीन साल बाद पहले उपराष्ट्रपति और फिर राष्ट्रपति निर्वाचित हो गए।
गैस कांड में जान देने वालों का सरकारी आँकड़ा 2,259 का और ग़ैर-सरकारी आठ हज़ार से ऊपर का है। अपुष्ट आँकड़े बाईस से पच्चीस हज़ार मौतों के हैं। कोई पाँच लाख से अधिक लोग घायल और हज़ारों स्थायी रूप से अपंग हो गये थे। मानवीय चूक के कारण हुई इस त्रासदी में मारे गए हज़ारों लोगों की मौत पर इंदिरा गांधी की हत्या से उपजी सहानुभूति भारी पड़ गई थी और कांग्रेस को देशभर में ऐतिहासिक जीत हासिल हुई थी।
भोपाल गैस त्रासदी के लिए अगर यूनियन कार्बाइड प्रबंधन के साथ-साथ अर्जुनसिंह सरकार भी ज़िम्मेदार थी तो मोरबी हादसे के लिए गिनाए जा रहे कारण 'भगवान की मर्ज़ी' के अलावा गुजरात सरकार और घड़ी बनाने वाली ओरेवा कंपनी के प्रबंधकों के बीच साँठगाँठ की ओर भी इशारा करते हैं। मोरबी ज़िले में विधानसभा की तीन सीटें हैं। इनमें मोरबी और वांकानेर के अलावा टंकारा की वह सीट भी है, जहां आर्य समाज के संस्थापक महर्षि दयानंद सरस्वती का जन्म हुआ था।
मोरबी की दुर्घटना के बाद भोपाल दलाल कौन हैं और वे क्या करते हैं गैस त्रासदी का हवाला देते हुए चेताया गया था कि लोगों की याददाश्त कमज़ोर होती है, वे सब कुछ भूल जाएंगे! मोरबी में पुल टूटने की घटना और गुजरात में मतदान के बीच भी समय 1984 दिसंबर जितना ही रहने वाला है। तो क्या गुजरात में मतदान सम्पन्न होने तक भोपाल की तरह ही मोरबी का भी सब कुछ भुला दिया जाएगा? गुलशन राठौड़ और उनके जैसी सैकड़ों कहानियों समेत!
भोपाल गैस त्रासदी अगले महीने की दो और तीन तारीख़ को अपने आतंक के अड़तीस साल पूरे कर लेगी। त्रासदी के चार महीने बाद मार्च 1985 में जब अर्जुनसिंह के नेतृत्व में मध्य प्रदेश विधानसभा के चुनाव हुए थे तो राज्य में फिर से कांग्रेस की हुकूमत क़ायम हो गई थी। मंत्री बदल गए थे, पर दलाल वैसे ही क़ायम रहे। त्रासदी के लिए दोषी किसी भी बड़े आरोपी को सज़ा नहीं मिली। उसके कुछ गुनहगारों की आज भी तलाश की जा सकती है।
हो सकता है मोरबी की कंपनी में बनने वाली घड़ियों की सुइयाँ साल बदलती रहें और भोपाल की तरह ही पुल दुर्घटना के असली गुनहगारों को भी क़ानून ढूँढता रह जाए! राजनीति तो संवेदनहीन हो ही चुकी है, क्या मानवीय संवेदनाओं से मतदाताओं के सरोकार भी ख़त्म हो गए हैं? अगर यही सत्य है तो फिर लोकतंत्र को भूलकर उस व्यवस्था के लिए तैयार रहना चाहिए जिसकी कि ओर मोरबी के पुल की देखरेख और संचालन करने वाली कंपनी के प्रमुख ने अपनी गुजराती पुस्तक 'समस्या अने समाधान' में इशारा किया है' चीन की तरह ही देश में चुनाव बंद कर योग्य व्यक्ति को 15-20 साल का नेतृत्व दीजिए जो हिटलर की तरह डंडा चलाये।